मंगलवार, 29 जुलाई 2008

हास्‍य/व्‍यंग्‍य जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के, तहँ तहँ बंटाढार भये...... नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के, तहँ तहँ बंटाढार भये......

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

गोया किस्‍मत को किसी से दुश्‍मनी हो तो क्‍या कहिये । अपने मुरैना पुलिस में एक मंझले सिपाही (हमारे लालू प्रसाद जी सी.एस.पी. कों मंझला सिपाही बोला करते हैं) के न जाने दिन खोटे हैं, कि न जाने ग्रह हाथ धो कर या नहा धो कर उनके पीछे पड़ गये हैं ।

हमारे मंझले सिपाही की मेष राशि है, और मेष राशि में इन दिनों भारी उथलपुथल मची है । मेष राशि वाले अशोक अर्गल ने मेष राशि वाले ठाकुर अमर सिंह से पंगा ले लिया ।

अर्गल को मुरैना आना था, कैसे नहीं आते उनका घर जो दत्‍तपुरा में ठहरा । हमारे कलेक्‍टर साहब ने आफ्टर उपद्रव ठोक ठोक (क्‍या ठोका ये न पूछिये) के कहा कि अरे भाई उनका घर है घर भी नहीं आने दोगे क्‍या ।

टी.आई. के.डी.सोनकिया ने भी जम कर ठोक पीट (क्‍या ठोका पीटा ये न पूछिये) कर कहा ठोक दो सालों पर, हरामजादों पर मामले, इतना भीतर डाल दो कि साले जनम भर याद करें, करो भीतर निकलने नहीं चाहिये बाहर ।

अब भईया अर्गल मो भभ्‍भर मचा आया दिल्‍ली में, हमने भी देखा था टी.वी. पर कइसा नोट लहरा रहा था, इण्‍टरनेशनल हस्‍ती बन रहा था, सरकार गिरा रहा था । पठ्ठे ने ऐसे नोट हवा में उछाले थे जैसे ससुरे एक करोड़ नहीं एक एक के सौ नोट हों, अइसे फेंक आया संसद में जैसे ऐसे और इजने नोटों का तकिया तो उसके नौकर भी नहीं लगाते हों ।

अर्गल पर उस बखत पूरे मुरैना को भयंकर गुस्‍सा आया, लोग बोले, जे तो पगलियाय गयो (ये तो पागल हो गया है) जे तो नोट ऐसे दिखाय रहो है जैसे पैसा कछू होतुई नानें (ये तो नोट इस तरह दिखा रहा है जैसे पैसा कुछ होता ही नहीं ) झां सारो सौ सौ पचास पचास कें काजें मत्‍तो, अब जि करोड़नि फेंकवे चिपटो ऐ । अये ला हमनिई दे दे, अये जा में ते दस लाखई दे दे तो हम तर जागें, अये पागल मुरैना लिआ दस बीसनि के भले हें जागें ।

खैर ये तो '' सीन ऑफ इवेण्‍ट जस्‍ट हैपन्‍ड'' था ।

पर अर्गल दिल्‍ली में क्‍या कर आये, ये उतना महत्‍वपूर्ण नहीं था, खास बात थी कि अब चम्‍बल में क्‍या करेंगें ।

चम्‍बल में जल्‍दी ही अर्गल आउट ऑफ डेट यानि एक्‍सपायर्ड डेट की दवा बन जायेगें । दर असल अर्गल रिजर्व कोटे के हैं, वे बकाया दोंनों भी रिजर्व कोटे से आते हैं जो अर्गल काण्‍ड में शामिल थे । और अब इनकी सीटें नये परिसीमन में खत्‍म होकर सामान्‍य हों गयीं हैं । अब ये अपने अंतिम कार्यकाल की अंतिम घडि़यां गिन रहे हैं । वह तो भला हो यूपीए सरकार का कि इन एक्‍सपायर हो रहे सांसद महोदय के संसदीय दिये में तेल डाल कर कुछ और दिनों का जीवन दान दे दिया वरना अब तक तो एक्‍स्‍पायर हो चुके होते । और अंतकाल प्राप्‍त सांसद सूची में दर्ज हो गये होते ।

पर ये भी उतना महत्‍वपूर्ण नहीं था कि अर्गल का करेंगें । महत्‍वपूर्ण था कि अर्गल मुरैना आयेंगें तो का होगा ।

लोग अर्गल को पूजेंगें कि पन्हियायेंगें । ये टेंशन तो सबको ही खाये जा रहा था । ऊपर से अर्गल की अगवानी के लिये कांग्रेस ने मुँह काला करने का और समाजवादी वालों ने जूतों से मारने का ऐलान करके इस टेंशन का ब्‍लडप्रेशर बहुत हाई कर दिया था । शहर को टेंशन, जिले को टेंशन, चम्‍बल को टेंशन, म.प्र. को टेंशन, प्रशासन को टेंशन, पुलिस को टेंशन, और पत्रकारों को वैसे ही चौबीस घण्‍टे टेंशन रहता है अबकी बार फिर टेंशन ।

टेंशन में टेंशन तब ज्‍यादा हो गया जब मुरैना के मंझले सिपाही को उसी के उसी दिन चार्ज दिलाया गया, अब कहावत है कि जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के..... इधर मंझले सिपाही ने चार्ज लिया उधर अर्गल का आगमन हो गया ।

पहले पहाड़गढ़ में पंगा कर आये थे, ठाकुरों के दुश्‍मन नंबर एक हैं, ठाकुर नजर आते ही मंझले सिपाही की ऑंखों में खून खौल जाता है, और उसका एनकाउण्‍टर ठोक देते हैं, ठाकुर तो समूची सरकार के ही दुश्‍मन हैं, एक दिन पहले चम्‍बल से सारे ठाकुर अफसर और कर्मचारी हटा दिये गये,बाद बकाया सस्‍पैण्‍ड कर डाले, दूसरे दिन ही तीन दर्जन ठाकुरों (तंवरघारीयों) को जिला बदर की सूची निकाल डाली, सो ठाकुर विरोधीयों को तो चार्ज ए बादशाही होना ही थी, यह हैरत की बात नहीं थी । हैरत की बात ये थी कि पठ्ठे ने चार्ज लिया और पंगा भी हुआ और दंगा भी ।

कांग्रेस में जितने भी ठाकुर थे सबके खिलाफ आनन फानन में अपराध भी दर्ज कर दिये । मजे की बात ये कि सबमें अधिकांश लगभग 90 फीसदी ठाकुर ही मुल्जिम बने ।

शहर कोतवाल साहब पहले से ही ठाकुरों के दुश्‍मन थे अब मंझले सिपाही भी ठाकुरों के दुश्‍मन तो जो होना था, अगर शिल्‍पा शेट्टी की सभ्‍य भाषा में कहें तो '' जरा ज्‍यादा ही हो गया ''

पर हमारे मंझले सिपाही का कोई पैर तो देखो, साला कई महीनों से भारी चल रहा है, उनका पॉव भारी होना पूरे पुलिस डिपार्टमेण्‍ट के लिये मुसीबत बन गया है, वे जहॉं भी पॉंव धरते हैं पंगा और दंगा अपने आप ही हो जाता है । बेचारे इतने समय से बगैर नहाये धोये, बगैर मंजन अंजन के घूम रहे हैं कोई तो इलाज बताईये ।

शनिवार, 12 जुलाई 2008

हास्‍य /व्‍यंग्‍य सारा दिन सताते हो, रातों को जगाते हो .... बिजली का त्रिताल और कहरवा जारी, शिव का यह कऊनसा नृत्‍य है

हास्‍य /व्‍यंग्‍य

सारा दिन सताते हो, रातों को जगाते हो .... बिजली का त्रिताल और कहरवा जारी, शिव का यह कऊनसा नृत्‍य है

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

जितेन्‍द्र भाई की एक फिल्‍म का एक गीत है, सारा दिन सताते हो, रातों को जगाते हो, तुम याद बहुत आते हो, इसमें एक लाइन और जोड़ दो तुम गाली खूब खाते हो बस बन गया म.प्र. का हाल ए सूरत । त्रिताल और कहरवा संगीत में तबले या ढोल‍क की ताल होती हैं

अब सुनो कैसे-    

 

एक नेताजी पूरा गला फाड़ के नर्रा रहे थे, कह रहे थे शिव ने ये किया शिव ने वो किया, शिव ने त्रिताल किया शिव ने कहरवा किया, लोगों को घर बेटा हो तो राम भरोसे और बेटी हो तो शिव भरोसे वगैरह वगैरह । पूरा टेंटुआ फाड़ने के बाद भी पण्डित जी की जनता की जमात में सुनवाई नहीं हो रही थी । सीन जम नहीं पा रिया था, मौसम बन नहीं पा रिया था । नेताजी के माथे से पसीना चू रहा था उनकी बाबा रामदेव जैसी काली दाढ़ी से पसीने की धार बहने लगी थी, गोया जनता थी कि तवज्‍जो ही नहीं दे रही थी, चारों ओर चें पों चें पों मची थी ।

मामला था जौरा का, जहॉं सी.एम. और राजनाथ सिंह आने वाले थे । सीन जम नहीं पाने से नेताजी खिसिया रहे थे, उनके हाव भाव बता रहे थे कि वे कित्‍ती इम्‍पोर्टेंट बात कह रहे हैं और ससुरी बेवकूफ पब्लिक सुन ही नहीं रही हैं । नेताजी के महान उद्गारों से मूरख पब्लिक वंचित हो रही है । घुमा फिरा कर वे यह कहना भी नहीं चूक रहे थे कि पता नहीं कब कौन भावी सी.एम. या पी.एम. हो, तब याद आयेगी कि एक भावी सी.एम. या पी.एम. जौरे में बोल गया निपट मूरख सिकरवारी के लोग उसे सुन नहीं पाये, उसके अनमोल वचनों को कैच नहीं कर पाये ।

वे सब पर बोल रहे थे पर बिजली पर नहीं बोल रहे थे, आतंक राज और भय राज पर नहीं बोल रहे थे केवल शिवराज पर बोल रहे थे, पब्लिक सुन नहीं रही थी, सुनने और बोलने में एक गैप था एक डिफ्रेन्‍स था, खिंच रहा था खत्‍म नहीं हो रहा था । जित्‍ता टैम शिवराज और राजनाथ को आने पहुँचने में लग रहा था उत्‍ता पण्डितजी का फिलर भाषण लम्‍बा खिंच रहा था, वे भी बोलते बोलते उकता चुके थे, कभी घड़ी देखते थे कभी आसमान की ओर मुँह उठा कर कुत्‍ते की तरह कान खड़े कर शिवराज और राजनाथ के पुष्‍पक विमान की घड़घड़ाहट टटोलते । पर शिव और राज (शिवराज और राजनाथ) दोनों लापता थे, टैम बढ़ता जा रिया था, और दोनो पठठे जाने कहॉं अटक गये थे, जैसे पूरा टाइम गटक गये थे । नेताजी ने आखिरकार भाषण का ऑरिजनल फिलर कोटा खत्‍म होते ही पिछले सरकार के टैम के भाषण शुरू कर दिया और पहुँच गये स्‍व. इन्दिरा गांधी के ओल्‍ड एज में (एज ऑफ इमरजेन्‍सी) बोले नेता जी इन्दिरा जी ने कही हती कि एक ही जादू , कड़ी मेहनत, पक्‍का इरादा, दूरदृष्टि वगैरह वगैरह अब वे इसकी पण्डिताई वाली व्‍याख्‍या में जुट बैठे ।

वे उतारना तो कांग्रेस की चाह रहे थे लेकिन वे भूल गये और इसकी निन्‍दात्‍मक व्‍याख्‍या करते करते प्रदेश की भाजपा सरकार को धोना शुरू कर दिया । उन्‍हें ध्‍यान ही नहीं रहा कि इस समय प्रदेश में कांग्रेस की नहीं भाजपा की सरकार है । और बोले कि भ्रष्‍टाचार और रिश्‍वत का एक ही जादू है जो कि सरकार कर रही है पहला भ्रष्‍टाचार और रिश्‍वत के लिये दूरदृष्टि रखो, सरकार में बैठे मंत्री और अफसरों को हिदायत है कि कहॉं कहॉं से कैसे कैसे कमाई हो सकती है इसके लिये दूरदृष्टि रखों, फिर बोले कि ठिकाने पता लगते ही कड़ी मेहनत करो और भ्रष्‍टाचार और रिश्‍वत के लिये जम कर कड़ी मेहनत करो, फिर बोले तीसरी बात है पक्‍का इरादा यानि पक्‍का इरादा रखो कि सबकी यानि जनता की ठेसनी है यानि जम कर भ्रष्‍टाचार करना हे और रिश्‍वत ऐंठनी हैं । उनकी इन्‍टरेस्टिंग और मनभावन बातें सुन कर पब्लिक के कान खड़े हो गये, और पिन ड्राप सायलेन्‍स छा गया सब अब नेताजी को सुनने लगे ।

नेताजी भी जनता की नब्‍ज पकड़ गये और समझ गये कि सरकार की बुराई करो तो जनता सुनती है वरना कोई घास भी नहीं डालता, नेताजी को अब जोश आने लगा और पण्डित जी के नेताई तेवर लौटने लगे । मगर अफसोस जैसे ही नेता पण्डित जी का मौसम बनना शरू हुआ तब तक आसमान से घड़घड़ की आवाज आयी मजबूरी में नेताजी को माइक से हटना पड़ा ।

शिव आ गये पर राज नहीं आयें । (हम जैसो गुरूघण्‍टालों को पहले से ही पता था कि अकेले शिव आयेंगें राज नहीं आयेंगे ) नेता लोग जनता को बहला फुसला रहे थे कि राज के पुष्‍पक विमान का ए.सी. फेल हो गया सो नहीं आ पाये, हम मुस्‍करा रहे थे, हमने अपने साथ वालों को पहले ही बता दिया था कि अब तो अकेले शिव ही आयेंगें राज नहीं आयेंगें ।

लोग हमें मान गये, जान गये वाह क्‍या भविष्‍यवाणी करता है पठठा । गोया हुआ ये कि बिजली पर कोई बोला हो न बोला हो पर शिवराज सिंह बोले, बिना लाग लपेट खुलकर बोले, रियलाइज किया माफी मांगीं और घिघियाये कि हॉं हम बिजली नहीं दे पाये इसका हमें ओपन दुख है हम इसके लिये गलतीशुदा हैं माफी मांगते हैं लेकिन अगर वर्षा अच्‍छी हुयी और हमारे बांधो में पानी आ गया तो मेरा वायदा है मैं आपको चौबीसों घण्‍टे बिजली दूंगा, यह मेरी गारण्‍टी है ।

भईया शिवराज साइकिल वाले, जब कांग्रेस की सरकार मध्‍यप्रदेश में थी तो तुम्‍हारी भाजपा लालटेन टांग कर (राष्‍ट्रीय जनता दल का चुनाव चिह्न) घूमती थी और लालटेन रैली लालटेन यात्रा निकाला करती थी, अब यार सरकार में आकर पार्टी चेन्‍ज कर समाजवादी पार्टी की साइकिल हथिया लिये हो, गलत बात है ये, बहुत नाइन्‍साफी है । यार भईया शिवराज साइकिल वाले, क्‍यों समाजवादी पार्टी और राष्‍ट्रीय जनता दल के पीछे पड़े रहते हो उन्‍हीं के चुनाव चिह्न अगर इत्‍ते काम के हैं तो यार ज्‍वाइन क्‍यों नहीं कर लेते सपा या राजद । ससुरा कमल किसी काम की नहीं, जब कहीं काम ही नहीं आता तो फेंको ससुरे को, न तो पेट्रोल बचाने के काम का न बिजली समस्‍या बताने का न और किसी मतलब का । क्‍या यार बाहियात चिह्न है । इससे तो कांग्रेस का पंजा ठीक है कम से कम सभाओं में हाथ उठा कर दिखा तो देते हो । मैं एक दिन फोटो चेक कर रहा था, आपका पंजा हिलता देख मैं समझा शायद कांग्रेस ज्‍वाइन कर लिये हो और लोगों को हाथ का पंजा दिखा कर कांग्रेस के लिये वोट की अपील कर रहे हो । वैसे साइकिल से पेट्रोल बचा कर हेलीकॉप्‍टर में भरवा लेते हो गलत बात है ये, सरासर गलत । 

खैर मैं तो अर्ज ये कर रहा था हुजूर कि आपके वायदे के मुताबिक अब तो ताल तलैया पोखर डबरा, बांध बंधैये सब के सब छकाछक्‍क भर कर ओवर फ्लो मार रहे हैं, पर बिजली अब भी काहे नहीं आयी है । सारा दिन सताते हो, रातों को जगाते हो , तुम याद बहुत आते हो । दिग्विजय सिंह से भी ज्‍यादा । इत्‍ती काटनी थी तो यार दिग्‍गी को ही बना रहने देते कम से कम कह बता के तो काटता था । और टैम पता रहता था कि कब सोना है कब जागना है, कब कम्‍प्‍यूटर बन्‍द करना है कब चालू करना है । तुम्‍हारा तो ठीया ही नहीं है । अरे भईया बांध तो भर गये अब का कर रहे हो सो बताओ । या ये वायदा भी 370 खत्‍म करने या मन्दिर बनवाने जैसा ही है । जैसी भी हो थोड़ा लिखा बहुत समझना, रोटी खाओ तो, पानी बिजली आने के बाद ही पीना ।

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

हास्‍य/व्‍यंग्‍य आज मोहब्‍बत बन्‍द है- एम.पी. पुलिस : कल्‍ला के बाद अमरनाथ का भी कर डाला फर्जी एनकाउण्‍टर

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

आज मोहब्‍बत बन्‍द है- एम.पी. पुलिस : कल्‍ला के बाद अमरनाथ का भी कर डाला फर्जी एनकाउण्‍टर

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

जैसे जैसे मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे वैसे राजनीतिक नूराकुश्‍ती बढ़ती जा रही है, मामला इस हद तक है कि यदि मुद्दा है तो है, नहीं है तो वो भी मुद्दा है । यदि कुछ नहीं है तो मुद्दे गये तेल लेने ससुरा पुतला तो फूं‍क ही डालो ।

कई साल पहले एक फिल्‍म आयी थी नाम था आपकी कसम, फिल्‍म की खास बात थी कि उसके दो गाने बड़े हिट और फिट हैं एक तो 'आज मोब्‍बत बन्‍द है ' दूसरा 'जय जय शिव शंकर, कांटा लगे न कंकर' जरा देखिये इन दो गीतों ने भारत का भविष्‍य ही बता डाला था । 

अभी हाल ही में भाजपा ने बन्‍द करवा डाला, आजकल बन्‍द तो रोजमर्रा के जीवन का अहम हिस्‍सा बन गया है, मध्‍यप्रदेश विशेषकर चम्‍बलवासी हफ्ते में दो तीन दिन बन्‍द का आनंद लेते ही रहते हैं, कभी क्षत्रिय समाज का बन्‍द तो कभी मीणा समुदाय का बन्‍द, कभी ब्राह्मण बन्‍द कराते हैं तो कभी बनिये बन्‍द करा देते हैं, गूजरो ने तो थोक बन्‍द ही करा दिया, कभी कांग्रेस का बन्‍द तो कभी भाजपा का बन्‍द, कभी माकपा का तो कभी भाकपा का कभी सपा का तो कभी बसपा का । ससुरी जित्‍ती जाति हैं जित्‍ते धर्म हैं, जित्‍ते सम्‍प्रदाय हैं, जित्‍ते राजनीतिक दल हैं । सबके सब बन्‍द कराने पर तुल बैठे हैं । जो आवे सो बोले हैं बन्‍द । बन्‍द बन्‍द बन्‍द ।

बनिया सबसे डरता है, व्‍यापारी सबसे घबराता है, दूकानदार सबसे घिघियाता है, गली का कुत्‍ता भी चिल्‍ला दे कि आज बन्‍द तो पूरा समूचा मार्केट अपने आप बन्‍द हो लेता है । बन्‍द नहीं करा तो नुकसान, तोड़ फोड़, लूट लपाट और बेइज्‍जती । बन्‍द करा तो नुकसान । सो लोगों ने आदत डाल ली है कि हफ्ते में अब श्रम विभाग और दूकानदारी अधिनियम की एक छुट्टी के अलावा दो तीन छुट्टी और पड़नी हैं ।

बन्‍द कराना नेताओं का एक क्षत्र अधिकार है, नेता चाहे समाज का हो या राजनीति का सबसे पहले बन्‍द मांगता । बिना बन्‍द लगता ही नहीं कि कुछ हुआ । पता ही नहीं चलता कि कहीं किसी चीज का विरोध हो रहा है या आन्‍दोलन हो रहा है । बन्‍द जीवन का अविभाज्‍य अंग और भारतीय लोकतंत्र की अवधारणा है ।

बन्‍द पर टिके इस भारत के भविष्‍य के बारे में एक और मजेदार बात यह है कि लोग बाजार बन्‍द कर लेते हैं अपनी दूकानों के शटर डाल कर रखते हैं लेकिन उन्‍हें यह नहीं पता होता कि आज किस बात का बन्‍द है, बस पूछो तो कहते हैं कि आज बीजेपी का बन्‍द है आज कांग्रेस का या आज अलां का या फलां का ।

भाजपा ने काहे को बन्‍द कराया था मुरैना वाले बहुतेरो को नहीं पता (असल में बहुत बाद तक मुझे भी नहीं पता था) , मैंने कुछ दूकानदारों से पूछा कि ये कायका बन्‍द था । दूकानदार बोले पता नहीं बीजेपी का बन्‍द था, अमरनाथ अमरनाथ चिल्‍ला रहे थे, समझ नहीं आया कि अमरनाथ को किसने एनकाउण्‍टर कर दिया, कल्‍ला सिकरवार का तो पता है लेकिन ये अमरनाथ पता नहीं किसने ठोक दिया, शायद कांग्रेसीयों ने एनकाउण्‍टर करा होगा तभी बन्‍द करा रहे होंगें । मैंने अपने पुलिस मुखबिरों को फोन लगाया कि भईये ये अमरनाथ का एनकाउण्‍टर किसने कर दिया है बड़ा बन्‍द बन्‍द चल रहा है, मेरे पुलिस मुखबिर मित्र घबराये और बोले गुरू अगर अमरनाथ का भी फर्जी एनकाउण्‍टर हुआ है तो जरूर अमृत लाल मीणा ने ठोका होगा या फिर कैलारस या सबलगढ़ पुलिस ने ठोक दिया होगा । आप सीधे वहीं एस.डी.ओ.पी. को लगा लो । मैंने कई एस.डी.ओ.पी. और टी.आई. से खबर की पुष्टि और विवरण चाहा ससुरे सब के सब धुत्‍त और मस्‍त थे, हर कोई कहता था हमारे थाने के रोजनामचे में नहीं है, दादा जरूर अमृत मीणा ने ठोका होगा । हमारे यहॉं तो पन्‍द्रह दिन बाद रामसहाय गूजर गिरोह के चार आदमी ठोकने हैं, ये अमरनाथ फमरनाथ हमारे थाने के एरिया में कोई वारदात नहीं करता, और न उस पर कोई रिवार्ड है । ग्‍वालियर पुलिस से पूछ कर देख लो शायद टी- अलां फलां पर दर्ज हो, हो सकता है इण्‍टरनेशनल मुजरिम रहा हो और इण्‍टरपोल का रेड कार्नर हो । मैं फोन पर पैसे खर्च कर कर के  और माथा पटक पटक के परेशान था मगर खबर थी कि मिल ही नहीं रही थी ।    

खुद मैंने समझा कि कोई भाजपा नेता अमरनाथ होगा सो उसका भी पुलिस ने कल्‍ला सिकरवार की तरह फर्जी एनकाउण्‍टर कर डाला होगा तो बीजेपी भी क्षत्रिय महासभा की तरह बन्‍द करा रही होगी ।  लेकिन जब पलटकर कांग्रेसीयों ने लफड़ा किया और इन्‍दौर भोपाल में सरकार को रगड़ा तो मुझे टेंशन हुआ कि यार इसका मतलब अमरनाथ कोई ज्‍यादा बड़ा नेता था सो ज्‍यादा भभ्‍भर मच रहा है, मुझे इस बात पर भी शर्म आ रही थी कि इतना बड़ा नेता फर्जी एनकाउण्‍टर हो गया और मैं उसका नाम तक नहीं जानता । उफ मुझे तो डूब ही मरना चाहिये । मैं लालकृष्‍ण से शिवराज तक को जानता हूँ पर अमरनाथ को नहीं जानता, मैंने ठान लिया कि हम मीडिया में काम नहीं कर रहे झकमारी कर रहे हैं, बन्‍द आज से लिखना बन्‍द । सब बाजार बन्‍द कर रहे हैं, अमरनाथ बेचारा कोई बहुत बड़ा बढि़या आदमी होगा निबटा दिया इन पुलिस वालों ने बेचारे को, और हमें कानोंकान खबर भी नहीं हुयी, सो उनके बन्‍द के साथ अपना लिखना बन्‍द ।

बहुत बाद में मुझे पता चला कि मामला बाबा अमरनाथ का था, गुफा वाले अमरनाथ महादेव । अरे भईया वे तो अमर हैं, उन्‍हें कौन निबटा सकता है । पर बाबा को भी अब मीडिया में हाईलाइट होने का चस्‍का लग गया है, कभी लुप्‍त होकर, कभी गुप्‍त होकर तो कभी सुप्‍त होकर हर साल मीडिया की हेडलाइन में जगह पा ही लेते हैं अबकी बार बन्‍द करा कर राजनीति में भी तगड़ी एण्‍ट्री मारी है, हाहाकार और मारामार मचाते हुये, वाह बाबा वाह क्‍या धांसू एण्‍ट्री मारी है । राम जी ने भी मारी थी ऐसी ही धांसू एण्‍ट्री पर वे आउटडेटेड हो गये, बिना मन्दिर के ही क्‍लीन बोल्‍ड हो गये । दूध की मक्‍खी हो गये । बाबा तुम जरा देखना टंगड़ी बचा के खेलना, वरना चुनाव के बाद राम जी से बदतर हालत हो जायेगी । प्रभु आप तो अन्‍तर्यामी हैं, सब जानते हैं, फिर काहे को नेताओं के अण्‍टे में आके पार्टी ज्‍वाइन कर रहे हो, दूर ही रहो प्रभु । अभी सब पार्टी वाले आपके भक्‍त हैं आपके दर्शनों के जोखिम उठाते हैं फिर एक पार्टी को छोड़ दूसरा कोई तुम्‍हारा ना नाम लेवा होगा ना पानी देवा । सबके बने रहो इसी में बड़प्‍पन है । काहे को एक के नाम बदनाम होते हो । प्रभु आपका ठीया वहीं ठीक है, दिल्‍ली, भोपाल, इन्‍दौर से दूर ही रहो तो बेहतर हैं । 

रविवार, 6 जुलाई 2008

हास्‍य/व्‍यंग्‍य दिल पे जरा हाथ रख लो बाबू फिर गंगू बाई की चाल देखो... नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘आनन्‍द’

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

दिल पे जरा हाथ रख लो बाबू फिर गंगू बाई की चाल देखो...

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द' 

उल्‍टे रोजे गले पड़े 

               यूं तो कहावत ये भी है कि उल्‍टे बॉंस बरेली की ओर, लेकिन बात तो कहावत के फिट होने की है । किस्‍सा यूं हैं कि चम्‍बल में चार चोर निकले चोरी करने, रात का बखत था, पुलिस से भी सेटिंग बिठाई हुयी थी, तय था कि जो भी हाथ आयेगा उसमें से फिफ्टी फिफ्टी पुलिस बिटवीन थीव्‍ज डिस्‍ट्रीब्‍यूट होगा, पुलिस ने इस शर्त पर चोरों को चोरी का लायसेन्‍स दे दिया, और उनका कार्यक्षेत्र भी मुकम्‍मल तय कर दिया कि फलां गॉंव के फलॉं खेत से फलां खंती और फलां सड़क के दायरे में ही चोरी करोगे, उससे हट के दूसरे चोरों की सीमा शुरू होगी, दूसरों के एरिया में दखल नहीं दोगे, चोरों ने रजामन्‍दी के साथ लायसेन्‍स युक्‍त हो, अंधेरी रात में अपने शिकार की तलाश शुरू कर दी । चार चोरों में से एक ने जिस घर को ताक तूक कर नक्‍श पैमाना तय किया था, उस घर में उस दिन कोई नया बच्‍चा पैदा हो गया सो सारी रात घर में जागरण बना रहा । अब चोरों के सामने दिक्‍कत ये कि बड़ी मुश्किल से तो एक रात का लायसेन्‍स मिला, उस पर भी दॉंव खाली जा रहा था ।

मुश्किल में फंसे चारों चोर एक झुरमुट में बैठ कर बतियाने लगे, फुसफुसाये और विचार किया कि भैरों बाबा के मन्दिर पर चलते हैं, और वहॉं कुछ तलाशते हैं, कुछ हाथ लग ही जायेगा, और अगर किसी ने देख लिया तो कह देंगें, मन्दिर में भैरों बाबा के दर्शन करने आये हैं ।

चारों चोर भैरों बाबा के मन्दिर पहुँचे, गॉंव का मन्दिर था सो पट पटारी का झंझट नहीं था, एक चोर ने लपक कर बढि़या बड़े घण्‍टे आनन फानन में उतार लिये, दूसरे ने दान पेटी से चिल्‍लर बटोर ली, तीसरे ने मन्दिर के पुजारी के कमरे से काम की चीजें उठाई, पुजारी के कुर्ते की जेबें साफ कीं और चौथा बाहर पहरा देता रहा । काम तमाम कर माल लाद लूद कर चारों चोर खिसक लिये । अभी वे अपने गॉंव की ओर जा ही रहे थे, रास्‍ते में बीहड़ था, बीहड़ पार कर रहे थे कि तभी बगल की नरिया (बरसाती नाला) से आवाज आई, ठहर जाओ नहीं तो छप्‍पन गोली पार हो जायेंगीं । चोर थोड़ा सहमे, ठिठके, किन्‍तु फिर भी हिम्‍मत कर आगे बढ़े । तभी लगभग एक दर्जन लोगों ने उनके चारों ओर घेरा डाल दिया और चोरों को अपनी गिरफ्त में ले लिया । वे चोरों को पकड़ कर अपने अडडे पर अपने चीफ के पास ले गये । हालात और माजरा देख कर चोर समझ गये कि वे डकैतों के चंगुल में फंस चुके हैं ।

डकैतों ने उन चोरों की पकड़ कर ली, यानि अपहरण कर लिया । साथ ही उनके द्वारा चुराया सारा मालमत्‍ता, और जेवर पैसा भी जप्‍त कर लिया । चारों चोरों से दस दस लाख रूपये की फिरौती मांग डाली सो अलग । अब तो चोर भारी संकट में फंस गये ।

चोरों के घर वाले चोरों के घर वापस न पहुंचने से चिन्तित हो गये, पहले समझा कि शायद चोरी करते पकड़ गये होंगें, सो अपनी रिश्‍तेदारी यानि थाने पहुँचे, और दरोगा से बोले कि हमारे घर वाले तो लायसेन्‍स्‍ड चोर थे लेकिन अभी तक घर वापस नहीं पहुंचे, क्‍या वे पकड़े गये हैं । दरोगा ने रोजनामचा चेक किया और बोला नहीं इस थानें में तो उनकी गिरफ्तारी दर्ज नहीं हैं । किसी और थाने के एरिया में तो एण्‍ट्री नहीं मार दी ।

तब तक एक चोर की घरवाली के चोरी के मोबाइल पर घण्‍टी आ गयी, घण्‍टी उसके पति यानि चोर के चोरी वाले मोबाइल से आयी थी, वह बोली 'अजी कहॉं हो तुम, हम बड़े परेशान हैं, ढूंढ़ ढकोर रहे हैं, तुम थाने भी नहीं पहुँचे, दरोगा जी भी टेंशन में हैं, वे समझ रहे हैं कि तुम माल पैसा लेकर रफूचक्‍कर हो गये । चोर उधर से बोला अरी फेमिली, हम बड़े संकट में फंस गये हैं, चोरी तो मन्दिर से हमने कर ली थी और चालीस पचास हजार का माल भी हाथ लग गया था, लेकिन घर लौटते वक्‍त हमारा किडनेप हो गया है, और अब हमें छोड़ने के बदले डकैत दस लाख रूपये मांग रहे हैं । कैसे भी इंतजाम करके हमें छुड़वा लो । और फिर मोबाइल डिस्‍कनेक्‍ट हो गया ।

चोर की बीवी ने दरोगा को बताया कि हमारे हसबैण्‍ड का किडनैप हो गया है और वे बता रहे हैं कि चालीस पचास हजार का माल उनके पास था, चोरी के माल सहित वे किडनैप कर लिये गये हैं । अब कुछ भी करो उन्‍हें छुड़वाओ ।

दरोगा बोला लेकिन उनके एरिया से चोरी की रिपोर्ट तो 90 हजार की आयी है, मन्दिर के पुजारी ने 90 हजार कीमती का माल पैसा चोरी होना बताया है, हमने अभी रिपोर्ट नहीं लिखी है, आवेदन लेकर जॉंच में डाल दिया है । पर ये अपहरण का क्‍या किस्‍सा नाटक है । फिर जो भी हुआ आप समझ गये होंगें, फिरौती देकर अपहृत छूटे यानि उल्‍टे रोजे गले पड़े ।