बाकी कुछ बचा सो मँहगाई मार गई ....आधी हकीकत आधा फसाना
कड़वा सच
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
आज चारों ओर मंहगाई का हल्ला है, जिधर देखो उधर चिल्लपों मची है, सारे के सारे नेता गला फाड़ के नर्रा रहे हैं । नर्रा क्या डकरा रहे हैं, रोटी कपड़ा और मकान का गाना बजा रहे हैं बजा क्या जनता को सुना रहे हैं , देश का समूचा मीडिया महज भोंपू बन कर रह गया है, अरे भोंपू क्या सार्वजनिक मूत्रालय बन कर रह गया है, जो आता है टायलट कर जाता है, नेता छोटा हो चाहे बड़ा मीडिया भोंपू की तुरही में हल्की सी फूंक मार जाते हैं और मीडिया भनभना कर उनकी फूंक को सुर में बदल कर एम्पलीफाई कर देता है ।
धन्य है जगत नरायन, तुमसे तो नारद अच्छे थे, कम से कम खुद की कारीगरी तो दिखाते थे, अच्छे भले चलते फिरते मीडिया थे । अरे भईया माना विज्ञापन मजबूरी है लेकिन चारण भाट बन जाना तो मजबूरी नहीं हो सकती । जो सरकारों की सेवाओं में यस राजाओं (नेताओं) की चाटुकारिता में सवैये और कवित्त बॉंचने लगे ।
मंहगाई मंहगाई मंहगाई, कहॉं से आयी मंहगायी, बजट में तो कुछ नहीं बढ़ाया गया फिर ये मंहगाई कहॉं से आयी । जब बजट आने से तीन दिन पहले सारे बाजार का माल अण्डरग्राउण्ड हो गया था और सिगरेट माचिस जैसी चीजें ब्लैक में बिक रहीं थीं, तब कोई क्यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई ।
पिछले दस साल में जब सोने के दाम पॉंच हजार से पन्द्रह हजार तक आये तब कोई क्यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई मंहगाई । जब सरकारी अफसरों और नेताओं के वेतन भत्ते पिछले दस साल में दस दफे बढ़े तब कोई क्यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई मंहगाई ।
चम्बल घाटी का मुरैना जिला सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक है, यहॉं सरसों के अखण्ड भण्डार हैं, सरसों से सरसब्ज इस जिले में जब सरसों का तेल 88 रूपये किलो बिका तो कोई क्यों नहीं नर्राया मंहगाई मंहगाई मंहगाई । सरसों के भण्डार तो आज भी इस जिले में किलो टनों में हैं, मगर किसान के यहॉं नहीं सेठजी के यहॉं, बावजूद इसके किसान के हाथ तो मुरैना जिला में अभी भी इतनी सरसों हैं कि कम से कम ग्वालियर चम्बल में तेल के दाम चौथाई पर ले आये । लेकिन सेठजी के गोदाम में तो सरसों के इतने अकूत भण्डार है ( किसे नहीं पता) कि सारे देश में तेल के दाम चौथाई करा दें ।
मुरैना से प्रतिदिन बाहर जाने वाले हजारों टन तेल को रूकवा क्यों नहीं देते नेता जी, अभी हाल पता चल जायेगा कि मंहगाई के पीछे असल राज क्या है । फिर नर्राना मंहगाई मंहगाई मंहगाई । पर कैसे रूकवाओगे नेताजी सेठ जी तो आपकी रिजर्व बैंक भी हैं और वोट बैंक भी । वही सेठजी तेल और सरसों दोनों को ब्लॉक कर के बैठे हैं महाराज ।
ये वही सेठ जी हैं गरीब के दुश्मन सेठों के मसीहा और नेताओं के रिजर्व बैंक, जिन्होंने चन्द साल पहले केन्द्र सरकार से खुले तेल की बिक्री पर रोक लगवा के अपने पाउचों में तेल बेचने की मंजूरी दिला ली थी, तब हम नर्राये थे खूब भभ्भर मचाया था और चम्बल के किसानों को उनके द्वारा ही पैदा की गयी सरसों का तेल खुद पिरवा कर खाने से रोकने और अपनी सरसों का तेल सेठ जी से पिरवा कर पाउच में तीन गुने जादा दामों पर खरीद कर खाने से हमने जैसे तैसे बचाया था । इसके चन्द सालों बाद सेठ जी ने फिर ड्राप्सी शिवपुरी जिले में फैलवायी थी और मुरैना के कलेक्टर से ऊपर ही ऊपर आर्डर निकलवा कर मुरैना जिला में खुले तेल की बिक्री बन्द करवाई थी तथा फिर पाउचों में तेल खपाया था, उस समय खुले बाजार में खुले तेल के दाम थे 28 रूपये किलो और सेठजी के पाउच का तेल था 70 रूपये प्रति किलो, लोगों ने उस भ्रष्ट कलेक्टर के रहते मजबूरी में सेठ जी का तेल झेला, हमने फिर ऊधम भभ्भर मचाया और कलेक्टर बदलते ही सेठजी का आर्डर निरस्त कराया ।
सेठ जी के किसी जमाने में अर्जुन सिंह ( वर्तमान केन्द्रीय मंत्री) जीजा हुआ करते थे, उसके बाद दिग्विजय सिंह भी कुछ समय सेठ जी के जीजा बने रहे, आजकल रूस्तम सिंह (म.प्र. के पंचायत मंत्री ) उनके जीजा हैं या क्या हैं पता नहीं, मगर दोनों की जोड़ी धरम वीर जैसी जोड़ी है, इत्ता पता है ।
सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं इनकी जोड़ी, तोड़े से भई टूटे ना ये धरमवीर की जोड़ी । मुझे ये गाना बहुत पसन्द है । और इस जोड़ी पर फिट भी है ।
सेठजी के गोदाम तेल और सरसों से लबालब हैं नेता जी, सेठजी किलो टनों में तेल रोजाना बाहर भी भेज रहे हैं, उससे ज्यादा अण्डरग्राउण्ड दबाये भी बैठे हैं । दम है तो रोको मंहगाई, सेठ जी का तेल म.प्र. में भी बंटवा दोगे तो प्यारे म.प्र. की मंहगाई गारण्टी से खत्म हो जायेगी । गारण्टी क्या चैलेन्ज से खत्म हो जायेगी । लो एक पता तो बता दिया करो कार्यवाही, इसके बाद फिर और कई पते बतायेंगे और भी माल बतायेंगे, हम घटवायेंगे मंहगाई करो कार्रवाई , फिर उसके बाद नर्राना मंहगाई मंहगाई मंहमाई ।