परिसीमन का साया और नेताओं की बैचैनी, इक पहलवान अम्बाले का इक पहलवान पटियाले का
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
करवट – 2 श्रंखलाबद्ध आलेख
पिछले अंक से जारी ...
चन्दन चाचा के बाड़े में ... यह एक मशहूर कविता है जो पहले हमारे कोर्स में चलती थी जब हम स्कूल में थे, इसमें नागपंचमी के अवसर पर होने वाली कुश्ती दंगल के बारे में रोचक एवं मनोहारी चित्रण है ।
परिसीमन से गर्मायी राजनीति के चलते अंचल इस समय राजनीति का चन्दन चाचा का अखाड़ा बन गया है । यूं तो चम्बल घाटी में कई चन्दन चाचा हैं, मेरे गांव में भी एक चन्दन चाचा हैं, अब वे काफी वृद्ध हो चुके हैं लेकिन मैं उनका सबसे प्यारा बेटा यानि पहलवान रहा हूँ । लेकिन राजनीति एक ऐसी कुश्ती है कि जिसके पहलवान हम जैसे नहीं कुछ और ही किस्म के लोग हुआ करते हैं । राजनीति के पहलवान दूध घी और बादाम से नहीं बल्कि सुरा सुन्दरी और धुँआ पानी तथा बड़ी तगड़ी कार गाड़ीयों से नापे जाते हैं । अब भुजबल की नहीं बाहुबल की ताकत से अंदाज लगाया जाता है कि अमुक राजनीतिक दल का अमुक पहलवान कैसा खेलेगा । अब भलमनसाहत से नहीं गुण्डापन से लोकप्रियता का आकलन किया जाता है । वगैरह वगैरह यह भी पार्टीयों के लिये जानना जरूरी है कि जीतने के बाद कित्ते कमा सकेगा कित्ते खिला सकेगा । यूं कि कुल मिला कर राजनीति का चयन क्राइटिरिया कुछ अलग किस्म का होता है । चमचागिरी के अव्वल उस्ताद और वर्षों तक किसी बड़े नेता के यहॉं ढोक लगाते रहे हों तथा टिकिट मांगने जाते वक्त आपके साथ कितने वाहन और कितनी भीड़ है, इससे दिल्ली और भोपाल में बैठे बड़े नेताजी अंदाज लगाते हैं कि आप चुनाव जीत सकते हैं कि नहीं ।
मेरे एरिया के नेता सुपरहिट शोले फिल्म की तरह कुछ इस किस्म का मसाला अभी से इकठठा करना शुरू कर दिये हैं ।
इस देश में जहॉं छुटभैये नेताओं की कमी नहीं तो छुटभैयों के चमचों की भी कोई कमी नहीं है ।
एक कहावत है कि बरसात गिरते ही हर छोटा बड़ा गढढा पानी की चन्द बूंदों का आयतन पाते ही खुद को ताल तलैयां और सागरों से तौलने लगता है , बिल्कुल इसी तरह नेता जी (नये नेता जी) जैसे नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है या ज्यादा अल्लाह चिल्लाता है नये नेता जी मतलब वे नेता जी जो किसी छुटभैये के चमचे बनकर उसके दरबार में सुबह शाम की हाजरी बजाने को ही राजनीतिज्ञ होना समझते हैं और उनके साथ जाकर बनियों हलवाईयों तथा चपरासीयों को धमकियाना शुरू कर देते हैं वे अपने आप को मनमोहन सिंह या अटलबिहारी से कम नहीं मानते । और खादी भण्डार की दूकान पर जाकर नई ड्रेस और जैकेट खरीद कर बगुला बन कर स्वयं को भावी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगते हैं ।
छुटभैयों के चमचों को छुटचमचे कहे तो बेहतर हैं, परिसीमन की चर्चा के चलते कुछ छुटचमचे इन दिनों अंचल में अतिसक्रिय हो गये हैं और अपने आका के लिये फोनों पर धमकियाने के अलावा फण्ड अरेन्जमेण्ट और माहौल बनाने तथा मीडिया में नाम चलवाने की जुगत में जी तोड़ मेहनत में जुट गये हैं । वहीं कुछ हसीनायें भी सक्रिय होकर नेताओं के साथ तफरीह में लग गयीं हैं । यूं तो नेता महिलाओं के बगैर कहीं पग नहीं धरते और जैसे सीमा पर लड़ती सेना के सैनिक दो बूंद जिन्दगी की यानि प्यार की तलाश में आत्महत्यायें कर तनाव के विषाद में डूबे रहते हैं, ठीक उसी तरह बिन महिला नेत्री छुटचमचों को पार्टी या राजनीति में न रस आवे है न रूतबा लागे है ।
यूं तो लगभग हर राजनीतिक दल अपनी महिला विंग बनाता है, और महिला नेत्रीयां उनके साथ अक्सर सफर में या बैठकों में रहतीं है मगर .....खैर छोड़ो ।
हॉं तो परिसीमन की दस्तक के साथ ही बड़े नेताओं के छुटभैये सक्रिय होकर राग चुनावी अलापना शुरू कर दिये हैं और छुटचमचों ने उनके ख्वाबों को ताबीर देने का काम चालू कर दिया है ।
जहॉं गाडि़यों की बड़ी संख्या, फण्ड अरेन्जमेण्ट और सुरा सुन्दरी तथा भीड़ गुण्ताड़ा की मशक्कत चालू हो गयी है वहीं एरिया के टेम्परेचर लेने का काम भी चालू है ।
अब टिकिट मांगने वालों की कतार अभी से बनना शुरू हो गयी है और चुनाव यानि की शादी ब्याह के लिये लोग ऐन वक्त पर रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं ।
मजे की बात ये है कि शहरों में कुछ लोग भीड़ व वाहन सप्लाई का व्यवसाय भी शुरू कर चुके हैं, और प्रतिवाहन व प्रति व्यक्ति सप्लाई नारों सहित या बगैर नारों सहित उनकी दरें अलग अलग हैं ।
क्रमश: जारी अगले अंक में .........
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें