रविवार, 27 जनवरी 2008

परिसीमन का साया और : नेता जी का ट्रेडमार्क नाम दरोगा धर दो – चाहे सौ के सत्‍तर कर दो

परिसीमन का साया और : नेता जी का ट्रेडमार्क

नाम दरोगा धर दो चाहे सौ के सत्‍तर कर दो

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

करवट 3 श्रंखलाबद्ध आलेख

 

पिछले अंक से जारी ...

 

अभी वैसे चुनाव में टाइम है, लेकिन राजनीतिक हवाई बमबारी तो पिछले महीने ही चालू हो चुकी है । यद्यपि राजनीतिक युद्ध के पूर्वाभ्‍यास तो चार महीने पहिले ही चालू हो गये थे । अब ये वक्‍त बतायेगा कि किसके फाइटर्स ज्‍यादा कामयाब रहेंगे ।

वैसे लोकल नेताओं को दिल्‍ली और भोपाल से कहीं ज्‍यादा टेंशन हो गया है । परिसीमन की छाया या साया जहॉं कहीं लोकल राजनीतिक दूकानें बन्‍द करा देगा वहीं नई एजेन्सीयां भी चालू करा देगा ।

गिड़गिड़ा और भिड़भिड़ा रहे हैं लोकल ठेकेदार आफ नेतागिरी

अब किसी कलेक्‍टर कमिश्‍नर या एस.पी. को ऐसे दिन देखने पड़ें कि वह रिरिया रिरिया कर घिघिया कर बाबू या थानेदार बनाने के लिये लोगों के चरण चुम्‍बन करता फिरे तो इसे आप क्‍या कहेंगे, वक्‍त की मार या मुकददर का पलटवार या फिर बुरे दिनों की दस्‍तक से घबराकर चने चबाने की जुगत ।

खैर जो भी हो ऐसा टाइम आ गया है और बड़े बड़े नेताजी की टांय टांय फिस्‍स हो रही है । बड़े नेताजी अब छोटे नेता बनने के लिये रिरियाने और गिड़गिड़ाने में लगे हैं ।

सबसे ज्‍यादा हालत खराब मुरैना सांसद अशोक अर्गल की हो रही है । वे अब अब सांसद से विधायक बनने के लिये दण्‍ड बैठक लगाते फिर रहे हैं । दरअसल युगों से चली रही आ रही मुरैना लोकसभा सीट अब आरक्षित से सामान्‍य सीट में तब्‍दील हो गयी है और मुरैना संसदीय सीट की महज अब एकमात्र विधानसभा सीट अम्‍बाह ही आरक्षित बची है । अब अर्गल भईया का अनर्गल प्रलाप कुछ इस कदर परवान चढ़ रहा है कि वे भाजपा के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े नेताओं के आगे घिघियाते फिर रहे हैं, मजे की बात ये है कि भले ही अर्गल अपनी चमचागिरी किसी और वजह से कर रहे हों लेकिन मुरैना जिले के गली कूचों में पत्‍ते पत्‍ते पर यह दास्‍तां अब आम है । कुछ जोरदार फोटोग्राफ ऐसी विकट चमचागिरी के हमें उपलब्‍ध हुये हैं । खैर यह अर्गल के राजनीतिक और व्‍यक्तिगत अस्तित्‍व व भविष्‍य का प्रश्‍न है सो उनका चमचे आम हो जाना स्‍वाभाविक ही है । मगर इतना साफ है कि अगर अशोक अर्गल जैसा कि सुनने में आया है कि अम्‍बाह विधानसभा के अलावा भिण्‍ड संसदीय क्षेत्र से भी टिकिट पाने की जुगाड़ में लगे हैं । ज्ञातव्‍य है कि भिण्‍ड दतिया संसदीय क्षेत्र (मैं यहॉं चुनाव लड़ चुका हूँ) अब सामान्‍य से आरक्षित हो गया है, और अशोक भाई इस मौके को गंवाना नहीं चाहते । सो सेटंग भी हाई लेवल की बिठाने में लगे हैं । अब ये उनका वक्‍त और मुकददर तय करेगा कि ''तेरा क्‍या होगा ....''

मगर इतना तो साफ है कि वर्षों से सत्‍ता सुख और राजनीतिक भोग विलास में आकण्‍ठ डूबे रहे अशोक अर्गल को अपनी राजनीतिक सत्‍ता का इस कदर छिनना रास नहीं आ रहा । आना भी नहीं चाहिये, आखिर तुलसी भईया उवाचे हैं कि दौलत की दो लात हैं, तुलसी निश्‍चय कीन । आवत में अन्‍धा करे, जावत करे अधीन ।। मुँह लगी मलाई अब इतनी आसानी से तो पिण्‍ड नहीं छोड़ेगी ।

पद, दौलत और प्रभाव जाते ही अच्‍छे अच्‍छे पगला जाते है, सो जाते नेताओं के घर मातम होने लगा है तो कौनसी विचित्र बात है । वेसे भी लोकतंत्र इसी का नाम है कि बेटा आज तेरा तो कल मेरा ।

जब मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तो भाजपाईयों की हर चौराहे पर ठुकाई हो जाती थी और एक अदना सा सिपाही चाहे जब डण्‍डा डालकर भीतर कर देता था । अब टाइम पल्‍टा खा गया है जो हाल तब उनके थे वो अब आजकल उनके हैं ।

खैर ये लोकतंत्र है, बदलती राजनीति है, ऐसा तो अब रिवाज ही बन गया है, आम जनता की रिपोर्ट भले ही पुलिस कभी नहीं लिखती हो या आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो हजारों आम शिकायतों को कचरे में फेंक देता हो लेकिन हाई मैटर्स जो कवरेजेबल हों और समूचे मीडिया पर हेडलाइन बन कर छा जायें और जिनसे संसद या विधानसभायें ठप्‍प हो जायेंए उनकी कायमीयां तो चुटकी में ठोक देते हैं । चाहे राष्‍ट्रध्‍वज अपमान हो चाहे डम्‍पर हो चाहे देवास जमीन हो चाहे सहकारिता वाले मंत्री का मैटर हो चाहे सुभाष यादव या अन्‍य .... ।

भले ही मामले बाद में अर्जी फर्जी निकलें मगर चर्चा कराना, ठप्‍प कराना और आक्‍थू आक्‍थू के खेल में रैफरी के बजाये लाउडस्‍पीकरिया या एम्‍पलीफाइंग भूमिका मात्र निभा देना अब प्रशासनिक मशीनरी की डयूटी मात्र बन कर रह गयी है । कभी इसके हाथ खिलौना कभी उसके हाथ । उनके सकार में आ जाने का डर भी है तो उनकी सरकार चल रही है ये खौफ भी है । मगर प्‍यारे सच्‍ची बात ये है कि ये खेल अब लगभग बेअसर से हो गयें हैं, जनता को तो कोई मामला समझ ही नहीं आ रहा । जनता तो केवल इस कबडडी की मूक दर्शक मात्र है ।

अब ये दीगर बात है कि अम्‍बाह वाले नेताजी अर्गल को अपने एरिया में घुसने देंगें कि नहीं या भिण्‍ड में नेता लोग इम्‍पोर्टेड नेता चाहेंगे कि नहीं, मगर अशोक भाई को खुशफहमी है कि राज करना और हुकूमते चकाचौंध वे अपने ललाट में लिखा लाये हैं, उनकी कुण्‍डली के ग्रह बकाया नेताओं से ज्‍यादा बलवान बैठते हैं ।

अब बंशीलाल और मुंशीलाल क्‍या करेंगें, ये अर्गल भाई जरा सोच लीजिये । वैसे भी मुंशीलाल को पिछली विधानसभा में टिकिट नहीं मिला था, जिस पर काफी दंगा और पंगा भी हो चुका है । अगर आपको यह भ्रम है कि अम्‍बाह सीट पर भाजपा जीतती है, व्‍यकित नहीं, तो यह दूर हो जाना चाहिये । नजदीकी सीट दिमनी विधानसभा अब सामान्‍य हो जाने का असर चौतरफा होने वाला है । अम्‍बाह विधान सभा क्षेत्र आरक्षित भले ही हो, लेकिन यह रहस्‍य किसी से छिपा नहीं कि इस सीट का अम्‍बाह पोरसा क्षेत्र विशुद्ध राजपूत बाहुल्‍य है । और दिमनी विधानसभा क्षेत्र नये परिसीमन के मुतल्लिक राजपूत बाहुल्‍य है । अत: उनके समर्थन के बगैर यहॉं पार पाना असंभव नहीं तो मुश्किल ही है ।

वर्तमान विधायकों और नेताओं से जनता वैसे ही खफा चल रही है । ऐसे में जहॉं दिमनी विधानसभा में भी अब नेतागिरी की कई दूकानें बन्‍द होंगीं वहीं नये राजनीतिक गढ़ भी उभरेंगें । अभी तक यह सीट भाजपा के प्रभाव की मानी जाती रही है । वहीं निकटस्‍थ अम्‍बाह विधानसभा क्षेत्र भी दिमनी विधानसभा के समानान्‍तर में ही प्रभावित रहती है । दिमनी क्षेत्र से जहॉं मुंशीलाल, और संध्‍या राय का सत्‍ता समापन होगा वहीं । अधिक संभव है कि इस सीट पर अब समीकरण पूरी तरह नये तरीके से बनेंगें । शुरूआत में इस सीट पर भावी मुख्‍यमंत्री के नाम और यहॉं चुनाव लड़ने वाले के जातिगत व व्‍यक्तिगत प्रभाव का असर ज्‍यादा रहेगा । यहॉं वहीं राजनीतिक दल लाभ उठा सकेगा जो, सोच समझ कर प्रत्‍याशी खड़ा करेगा ।

हालांकि दिमनी विधानसभा के लिये आजकल जो खुसुर पुसुर जारी है और जो इस क्षेत्र पर नेतृत्‍व की दावेदारी ठोकने में लगे हैं, मुझे नहीं लगता कि वे इस सीट पर सीट निकाल सकेंगें ।

कहीं न कहीं नेताओं में खोट जनता देख रही है, और लोगों में एक आम आक्रोश भी है । दिमनी विधानसभा और अम्‍बाह विधानसभा क्षेत्र न केवल स्‍वयं अपने आप में महत्‍वपूर्ण हैं बल्कि समूचे संसदीय क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित करने की ताकत रखने वाले क्षेत्र हैं । यह तोमर राजाओं के वारिसों का क्षेत्र है और यहॉं के लोगों में स्‍वाभिमान और बात पर अटल रहने की तासीर आज तक है । चालू भाषा में इसे ऐंठ में रहना कहा जाता है । या कभी कभी सनकी होना उवाचा जाता है ।

दिमनी विधानसभा सीट पर काफी लम्‍बे अर्से से आरक्षण रहने से, इस क्षेत्र की राजनीति लगभग समाप्‍त प्राय सी हो चुकी है । और इस क्षेत्र के मूल रहवासी राजनीति से बरसों दूर रहने के बाद अपना राजनीतिक अस्तित्‍व लगभग भूल कर अभी पशोपेश में ही हैं कि आखिर कौन होगा जो उनकी तकदीर बदलेगा ।

 

क्रमश: जारी अगले अंक में .........

 

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