रविवार, 2 दिसंबर 2007

मोहल्‍ले में कैसी मारामार हैं, आजा नच ले पे रोक बेकार है

मोहल्‍ले में कैसी मारामार हैं, आजा नच ले पे रोक बेकार है

व्‍यंग्‍य/ हास्‍य

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

इण्‍टरनेट पर खबर है कि यू.पी., पंजाब और हरियाणा में माधुरी दीक्षित की फिल्‍म ''आजा नच ले'' पर रोक लग गई है । मसला वही राजनीतिक, वही पुराना जाति भेद ।

बात कुछ यूं है कि फिल्‍म में एक गाने में पंक्ति है- ''मोहल्‍ले में कैसी मारामार है, मोची भी खुद को कहता सुनार है'' ये पंक्ति बकौल यू.पी. सरकार दलितों के लिये आपत्तिजनक है, उनके मुताबिक ''मोची'' शब्‍द जातिसूचक शब्‍द है और इस शब्‍द को भारत की डिक्‍शनरी से उखाड़ फेंकना चाहिये । और 'मोची' एक व्‍यवसाय नहीं एक जाति है । समवेत स्‍वर इसके बाद उभरते सुनाई दिये, पठठे नेता लोग बोले कि ''मोचीयों'' को देश से उखाड़ फेंकों, मोचीगण देश के लिये कलंक हैं, मोची नामक शब्‍द कक्षा 1 से लेकर एम.ए. और पी.एच.डी. तक कहीं किसी किताब में नहीं मिलना चाहिये, यह जातिसूचक शब्‍द है । दलितों का अपमान है ।

जो लोग मोची से राष्‍ट्रपति बने, या केन्‍द्रीय मंत्री, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बन गये, उनका इतिहास देश से हटाओ, उनके इतिहास में से मोची हटाओ, मोची उनकी जाति बताता है । भईया पेशे से मैं एक एडवोकेट हूँ और मुझे पता है कि जातिसूचक शब्‍द उच्‍चारण से हरिजन एक्‍ट लग जाता है । सो मुझे भी नेता लोगों की चिल्‍लपों ठीक लगी , वाकई किताबों, इतिहास और डिक्‍शनरी में जहॉं जहॉं मोची आये हैं, तुरन्‍त डिलीट कर देने चाहिये । अरे जहॉं जहॉं मोची सिम्‍बल देखने को मिले तुरन्‍त हटा देना चाहिये, जिस चौराहे पर भी मोची मिल जाये तुरन्‍त उसे उठा कर खदेड़ देना चाहिये और उसे मोची बनने से और मोची का काम करने से तत्‍काल रोका जाना चाहिये, आखिर एक जातिसूचक शब्‍द, व्‍यवसाय, चित्रण, प्रतीकन जो किसी भी सूरत में एक जाति का बयान करते हो या उल्‍लेख करते हों तुरन्‍त हटाये जाना चाहिये ।

भारत में से मोचीयों के विलोपित किये जाने का वक्‍त आ गया है । मोची कहना, बोलना, लिखना, बनना सब अपराध है भईया । देश में जित्‍ते भी मोची संघ हैं, तत्‍काल समाप्‍त कर देने चाहिये, वे भी जातिसूचक संघ हैं ।

नवम्‍बर में डम्‍पर की बम्‍पर हिट रही, तो दिसम्‍बर में मोची हिट रही । हम अगर कभी फिल्‍म बनायेंगे तो उसका टायटल ''मोची''  रखना पसन्‍द करेंगें, आटो हिट होगी हमारी फिल्‍म, फिर नेता लोग कसीदे बांचेंगे, फिर हम टायटल चेन्‍ज करेंगें और कर देंगें ''द ग्रेट मोची'' नेता फिर डकरायेंगें तो हम कर देंगें ''नो मोची'' नेता फिर नर्रायेंगें तो अबकी बार हम कर देंगें '' द डार्क एज आफ ...'' वगैरह वगैरह ।

एक गीत पर वे ठुनक गयीं, अरे ठुनक क्‍या बिफर गयीं, अरे बिफर क्‍या मचल गयीं, अब उनका ठुनकना, बिफरना, और मचलना रंग दिखा गया और फिल्‍म वाले ने करोड़ों डूबते देख हाथ खड़े कर दिये, और माफी ठोक दी, और ''मोची डिलीट कर दिये, संग संग सुनार मुफत में ही डिलीट हो गये ।

अरे पियूष मिश्रा हम ठाकुर हैं, गाने से पूरे सुनार डिलीट करने की का जरूरत थी भईया, मोची हटाइके ठाकुर कर देते, और गाना कुछ यू हो जाता कि ''मोहल्‍ले में कैसी मारामार है, ठाकुर भी खुद को कहता सुनार है'' भईया पियूषा तुम्‍हारा गाना भी बचा रहिता, फिल्‍म भी सुपरहिट हो जाती, ठाकुरों को तो फिल्‍मों में हर रूप हर रंग में लाया गया है, एक कलर और हो जाता। सुनारों पर छोरीयां वैसे ही खूब जान छिड़कतीं हैं, सो थोड़ा भला ठाकुरों का हो लेता, कुछ दिन तो सुन्‍दरीयों से खतो खितावत होती ही ।

पर क्‍या पियूष ये क्‍या कर डाला, हम होते तो ऐसा नहीं करते भईया , अड़ जाते और लड़ जाते , तुमने तो देश की संस्‍कृति, इतिहास, विरासत, और पहचान के साथ किताबें बदलवा डालने की नींव धर दी ।

जो न हो सकता था, जो संभव नहीं, उस झगड़े की बुनियाद धर दी । भईये नेता बरसाती मेंढ़क होते हैं, एक बरसात (यानि चुनाव) में उतरा कर छा जाते हैं, दूसरी बरसात में लापता हो जाते हैं, लेकिन इतिहास, संस्‍कृति और देश व उसकी विरासत व पहचान स्‍थायी है, इसे न वो खत्‍म कर सके न ये कर सकेगें ।

लेकिन जब एक देश के इतिहास को बदलने की कोशिश हो रही है, तो मेरा चुप रहना मुझे उचित नहीं लगा । मोची हमारे देश और समाज का अभिन्‍न अंग रहें हैं, और करोड़ों लोग इस पेशे से अपना पेट भर रहे हैं । उन्‍हें जातिसूचक कह कर उनके पेट पर लात मारना न समाज के लिये ठीक रहेगा न देश के लिये । मेरे शहर में मोची का काम (जूतों की दूकान) कई ब्राहमण खोले बैठे हैं, लोग उनकी दूकान पर जाने से पहले ''मोची की दूकान'' पर जा रहे हैं कहते हैं । कई ब्राहमण भी इस चक्‍कर में निबट जायेंगे, प्‍यारे । और अब तो बी.एस.पी. को भी ब्राहमण समाज पार्टी कहा जाता है, सो काहे को ब्राहमणों की रोजी रोटी छीन रहे हो ।

फिल्‍म का नाम ही ऐसा था कि पंगा तो होना ही था, रख दिया नाम 'आजा नच ले', क्‍या खाक नाच ले, 'वे तो नच ले' के बजाय भांगड़ा करने लगीं । और नच ले के इस डिस्‍को, भांगड़ा और भरत नाटयम के बाद अब हमारा जी भी तांडव करने का हो रहा है । ले नच ले बेटा । आजा नच ले ।

उधर दिल्‍ली में भी नेता नच ले करना चालू कर दिये हैं, एक नेता तो इतना थिरक रहे हैं कि वे सेण्‍ट्रल मिनिस्‍ट्री को भी नच ले नच ले चिल्‍ला कर आखिर कह बैठे, कि सरकार को नचना ही नहीं आता, सरकार का नचने पर ध्‍यान ही नहीं है । क्‍या यार जनता भी कैसे कैसे नमूने नचाती है । चल भईया मैं भी तांडव की तैयारी करूं, अभी कुछ को और नचाना है, पहले चप्‍पल जुड़वा लूं , मगर अब ''मोची'' तो रहे नहीं, कौन जोड़ेगा मेरी चप्‍पल, सोचता हूँ किसी नेता से ठुकवा लाऊं दो कील, फिर उसी के संग नच भी लूंगा । या फिर शर्मिला जी से मिलता हूँ कि देश का शब्‍दकोश, इतिहास बदलने की बाकायदा माफी मांग कर अपनी जिम्‍मेवारी पर जो राष्‍ट्रीय किताबें बदलने और इतिहास, संस्‍कृति बदल डालने की मुहर लगाई है, अब या तो मेरी चप्‍पल जुड़वा दो या फिर खुद ठोको कील, और अब नच लो मेरे संग ।

 

 

शनिवार, 29 सितंबर 2007

तो हो ही जाये एक अदद डकैत पंचायत, तय हो जाये डकैत नीति

व्‍यंग्‍य

तो हो ही जाये एक अदद डकैत पंचायत, तय हो जाये डकैत नीति

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

अपनी मध्‍यप्रदेश सरकार पंचायत सरकार

कौन कहे कि मध्‍यप्रदेश में पंचायती राज नहीं है, भले ही पंचायत प्रणाली चाहे त्रिस्‍तरीय हो या पंचम स्‍तरीय बोर्ड परीक्षा वाली भले ही ठप्‍प ठपा ठप ठप्‍प हो गयी है लेकिन पंचायती राज तो मध्‍यप्रदेश में चल रहा ही है, सी.एम. ने जितनी पंचायतें गये साल और चालू साल में निबटाईं हैं उतनी भारत की आजादी से लेकर अब तक नहीं निबटी होंगीं । कन्‍छेदी दादा और मन्‍नू लोहार की पंचायत से लेकर दलित पिछड़ वर्ग तक की पंचायत सी.एम. हाउस में हो चुकी है, कुल जमा कितनी पंचायते बैठ चुकीं और उनके रिजल्‍टस क्‍या आये, भईया अपन को नहीं मालुम लेकिन इत्‍ता जरूर पता है कि खूब सारी हो चुकीं हैं और सरकार में कोई काम आजकल बगैर पंचायत किये हो ही नहीं रहा । ले बेटा अब कैसे कहोगे कि प्रदेश में पंचायती राज नहीं है ।

पहले केवल किसी जमाने में अकेली केबिनेट पंचायत हुआ करती थी अब मन्‍नू लोहार और कन्‍छेदी दादा की पंचायत होती है । गोया मन्‍नू लोहार और कन्‍छेदी दादा सी.एम. के पुराने टायटल हैं सो हर भाषण प्रवचन में इनका नाम आना जरूरी है वरना सी. एम. को लगता ही नहीं कि भाषण हुआ या समाचार छपा । अपना जनसम्‍पर्क संचालनालय सी.एम. पर खासा मेहरबान है कभी कभी सी.एम. जब भाजपा की निजी पार्टी बैठक में भी कन्‍छेदी दादा और मन्‍नू लोहार बोल बैठते हैं तो पार्टी के निजी समाचार भी विभाग से बाकायदा सरकारी नंबर से रिलीज हो जाते हैं । शायद विभाग के सर्च इंजिन में सी.एम. या शिवराज फिट है जो भी कहीं भी बोले निजी या सरकारी, विभाग को रिलीज मारनी ही हैं ।

देखना भईया संचालनालय वालो अंधी भक्ति कबहूं कबहूं बड़ी गहरी चोट देती है सो 'कहीं ऐसा न हो लग जाये दिल में आग पानी से' कहीं सर्च फीड के चक्‍कर में पर्सनल बाथरूमिया रिलीज मत मार देना ।

डकैत पंचायत कब

सी.एम. की पंचायत में डकैतों की पंचायत का नंबर कब आयेगा, इसे लेकर चम्‍बल के डकैत खासे चिन्तित हैं, वे भी चाहते हैं कि कोई नीति बने तो पहले उनसे राय मशविरा हो । कोई तो फिक्‍सड आकलित नीति हो, चम्‍बल के डकैत इस बारे में पहिले क्‍लासिफेकेशन यानि वर्गीकरण चाहते हैं, आखिर जैसे पुलिस में रैंक आलाटमेण्‍ट सिस्‍टम है डकैतों में भी होना चाहिये और सरकार द्वारा घोषित की जाने वाली इनाम इकराम भी डकैतों के रैंक स्‍टेटस के अनुसार ही होना चाहिये इसके अलावा कम से कम छ: माह पहले घोषित इनामो इकराम ही वैध मान्‍य होना चाहिये अभी तो ये हो रहा है कि पहले डकैत पकड़ या मार लिया जाता है और उसके बाद इनाम इकराम बढ़ा बढ़ू कर उसे बाद में पकड़ा या मारा घोषित किया जाता है, अब भई ये तो डकैत पंचायत में ही तय हो सकेगा कि डकैतों के अधिकारों का उल्‍लंघन हो रहा है कि नहीं ।

चम्‍बल में एक और रिवाज है जैसे डकैत कह देते हैं कि मार देंगें, ठोक देंगें, जिन्‍दा नहीं रहने देंगें वगैरह वगैरह अब चम्‍बल की पुलिस भी इसी भाषा में बोलती है कि छोड़ेगे नहीं, आत्‍मसमर्पण नहीं करने देंगें, मार देंगें, ठोक देंगें वगैरह वगैरह गोया खाकी वर्दी किसी को पकड़ कर कानून के हवाले करने के लिये नहीं बल्कि हरेक को ठोक देने, मार देने के लिये पहनाई गई है, और मारने का उन्‍हें जन्‍मसिद्ध अधिकार मिल गया है । अब डकैत वर्दी वाले और बिना वर्दी वाले, जंगल बीहड़ वाले और सरकारी बंगलो वाले इनमें कोई फर्क तो कम से कम होना ही चाहिये अब भई ये फैसला तो डकैत पंचायत में ही हो सकेगा न ।

डकैतों को एक और नीति पर बात करनी है कि पुलिस किसी भी छिछोरे, चोर उचक्‍कों को डकैत कह देती है और इनामो इकराम के लिये ठोक देती है, आखिर यह तो तय होना ही चाहिये न कि डकैती आखिर कहॉं डाली और कितनी डाली, पुलिस तो चार आदमी से ज्‍यादा कहीं से भी पकड़ कर एक समाचार छपवा देती है कि 'डकैती की योजना बनाते पॉंच पकड़े' । अब भई पुलिस की डेफीनेशन में वे भी डकैत हैं चाहे कहीं डकैती नहीं ठोकी हो, और योजना बनाने का क्‍या कोई सबूत कभी होता है ।

डकैत मानव होते हैं कि नहीं, उनके मानव अधिकार होते हैं कि नहीं ये प्‍वाइण्‍ट भी डिस्‍कस होना है, फिलवक्‍त मुरैना की अदालत तो मानव अधिकार को मानती नहीं, जेल में किसी की पिटाई हुयी वह गंभीर रूप से घायल होकर अस्‍पताल में पहुंचा और मर गया या जेल ही मर गया, गोया अदालत को समझ ही नहीं आया कि कौनसा मानव अधिकार उल्‍लंघन हुआ ।

सो भईया शिवराज पंचायतों के इस अदद मौसम में लगे हाथ एक डकैत पंचायत बुलवा डालो, पाप्‍युलर भी हो जाओगे और डकैत चुनाव में काम भी आयेंगे ।                           

 

शनिवार, 22 सितंबर 2007

कऊन ससुरा कहत है, राम सेतु मानव निर्मित होवे है


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

व्‍यंग्‍य

कऊन ससुरा कहत है, राम सेतु मानव निर्मित होवे है

चचा तो बुढ़ापे में पक के टपकन की तैयार में पहिले से ही बैठा है, उधर ससुरे हिन्‍दूवादी अलग लंगोट कसे फिरे हैं कि चचा से कुश्‍ती हो जाये । ई चचा भी कौन कम बैठे हैं, ठोक दीं ताल कि आजा आडवाणी हो जाये दो दो हाथ । आडवाणी बब्‍बा प्राइम मिनिस्‍टरी का टिकिट कटा के नंबर लगावन में बिजी हैं । ऐसे में चचा की ताल और लंगोट का पंगा । मुसीबत है ससुरी, छुटटी पा ली कह के कि चचा तो ससुरा मानसिक संतुलनवा खो बैठा है । गोया पगलवा गया है ।

चचा पे खबर सरकी तो चचा और उबल गया अरे उबल के खदक गया । बोला ससुरा ई सेतु वेतु कुछ नहीं होना मांगता, ई तो ससुरा मानव निर्मित ही नहीं है तो ऐतु सेतु फेतु आटोमेटिकली क्रियेटेड होना मांगता । जैसे मॉं के पेट में बच्‍चा अपने आप बन जाता वैसे ही समन्‍दर भीतर ई सेतु फेतु आटोटिक बन जाता । ई साफी चुटिया वाला फोकट भभ्‍भर करता, टेंशन देता, साला लम्‍बा चौड़ा करूड़वा अरबवा का प्रोजेक्‍ट रूकवाता, वेरी बेड वेरी बेड । अरे ससुरा ई कोई राम वाम क्‍या होवे है, बाल्‍मीक जी बोले हैं कि दारू में धुत्‍त रहवे है ।

अयोध्‍या में दसरथ ने अंग्रेजी की दूकान बन्‍द करवा कर ड्राई डे बोला तो ई दरूये जंगलवा में भाग गये देसी पीने । धुत्‍त हो गये तो म्‍हार चचा रावणवा सीता को उठा लाये कौन गजब होना बोलता । एक सीता को हमार चचा का लियान कि पूरा कुनवबा ही ठोक दीये , ई कौन कानून है । हम तो रोज सीता उठवा रहा हूँ , ससुरा कऊन राम है जो हमको ऑंख दिखाना मांगता । इधर कूं आया न तो हडडी पसली तोड़ना मांगता, पूरा बदला लेना मांगता, हमार चचा रावनवा, कुंभकरनवा और सबका बदला मांगता, धमेंन्‍दर स्‍टाइल में बोलता, एक एक को चुन चुन के मारना मांगता । हनुमान को तो छोड़ना नहीं, बिल्‍कुल नहीं अबकी उसकी पूंछ नहीं जलाने का, पुरा फुल निबटाना मांगता, ई हम बैरियल ठोक दीये हैं, चचा तक पहुँचन से पहिले हम चचा से निबटना होता । मोगाम्‍बो खुश होना मांगता ।

आडवाणी बब्‍बा के नाती परिषदवा वाले ससुरे चचा की खुपडि़या पे सुपारी डिक्‍लेकयर कर दीये, उधर कही कि फतवा ठोक दीये हैं, साला चचा का सिर न हुआ, सोना तोलने का सेर बॉंट हुआ जो चचा की खुपडि़या बॉंट की जगह धर कर सोना तोलेंगें । नेता लोगन की महिमा तो अनन्‍त होवे है, नेतान के सेर बॉंट बनते बहूत देखे हैं और सिक्‍कों की तौल में नेतन के बॉंट चले हैं पर ई सोने की तौल में चचा के सिर का बॉंट हम पहिली बार सुने हैं । बढि़या चाल चले हैं परिषदवा वाले न चचा का सिर मिले है न सोना तुले हैं । चचा आ जाओ प्‍यारे पूरे के पूरे, और खुदही कह दो कि लो बेटा हमारी खुपडि़या का बॉंट बनाना मांगता हम पूरा का पूरा तराजू ही आना बोलता, ला निकाल कित्‍ता सोना तोलना मांगता । ई परिषदवा की बोलती बन्‍द हो जायेगी गंगा जी की सौगन्‍ध ।

ऊ चचा एक गल्‍ती हो गयी , उधर तुम बोले कि सेतु मानव निर्मित ना होना मांगता इधर ई सेतु तो सच्‍ची मुच्‍ची मानव निर्मित नहीं होवे है ई तो राम की सेना निर्मित होवे है जिसमें मानव नहीं, बन्‍दर भालू और जी जिनावर होवे हैं । ऊ पुल को बनाय दिये सो बन्‍दर भालू निर्मित है, ई ना होवे है ई संसोधनवा कर लेवो फटाफट वरना परिषदवा को पता लग गई तो सब्‍बलवा लगा के उल्‍लाय देवें हैं । ऊ एक अउर ब्‍यान ठोक देवो चचा कि सेतु के इलावा ई जो किले महल देस में ठौर ठौर राजा रजवा बनवा दीये हैं ई भी इंजीनियरिंग ना करे हैं और बिना डिग्री के किले और महलवा राजा लोगन ने ठुकवा दीये हैं, स्‍टेटमेण्‍ट मारो चचा फटाफट ।             

       

 

सोमवार, 17 सितंबर 2007

हलकनामें को मार डालो, हम सब को इसने मारा

व्‍यंग्‍य आलेख-

सेतु उत्‍तर काण्‍ड बनाम बक बक न करिये जनाब

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

(यह आलेख सेतु विवादम का भाग 2 नहीं है )

मैंने जब सेतु विवादम बनाम जाकी रही भावना जैसी वाला आलेख लिखा था इतनी जल्‍दी उस पर एक्‍शन हो कर समस्‍या के पटाक्षेप की मुझे कतई उम्‍मीद नहीं थी और उसके लिये पूरी तैयारी के साथ लगभग 7 किश्‍ते इस आलेख की मेरे मनोमस्तिष्‍क में तैयार थीं किन्‍तु कांग्रेस नेता आदरणीया सोनिया जी और उनके सहयोगीयों ने बात या आलेख के आगे बढ़ने से पहले ही आलेख की विषयवस्‍तु का पटाक्षेप कर दिया, सो आगे की किश्‍त लेखन की आवश्‍यकता ही नहीं रही ।

किन्‍तु कुछ क्षेत्रीय नेताओं ने इस विषयवस्‍तु के पटाक्षेप उपरान्‍त जो चिल्‍लपों इस देश में मचा रखी है, कुछ बाते उन पर भी करना प्रासंगिक होगा ।

यूं तो हर नेता का अपना सुर होता है और अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग हुआ करता है । लेकिन नेता जब तक सुर में बोले तो चलो ठीक है लेकिन जब बेसुरा और भौंड़ा होकर नर्राने लगता है तो बर्दाश्‍त की सीमायें लांघ जाता है ।

वे तर्क और विश्‍लेषण की दुहाईयों तक उतर कर राम के कालेज और विश्‍वविद्यालय का नाम पूछ रहे हैं । उधर राम कटोरे कह रहे हैं कि केन्‍द्र सरकार ने बड़ी गलती की जो हलफनामा वापस ले लिया और अब केन्‍द्र वालों पर हलफनामा वापसी का मुकदमा चलाया जाना चाहिये । प्रस्‍तुत आलेख व्‍यंग्‍य आलेख है ।

दक्षिण में कैद है करूणा

अपने दक्षिण में एक नेता हैं नाम से तो करूणा की निधि यानि करूणा के भण्‍डार हैं या यूं कह लीजिये कि डिपो यानि आगार हैं । मगर करूणा उनके आसपास से कहीं गुजरी हो इसका कोई प्रमाण नहीं मिला, सबूत खोज रहा हूँ अरसे से, हे करूणा की निधि कहीं हो करूणा आसपास आपके तो मिलवा दीजिये जनाब । हम मुलाकात भी करेंगें नैन मटक्‍का भी कर लेंगें, दिल फेंक आशिक जो ठहरे इश्‍क भी लड़ा लेंगें । उस करूणा से मिला दो भण्‍डार जी, जिसे कैद रखा है आपने अपने भण्‍डार गृह में यार । हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने, चाहे तू माने चाहे ना माने ....।

करूणा के भण्‍डार तो राम जी भी थे, लोग कहते हैं कि उनकी करूणा की कई कथायें हैं, मैं करूणा भण्‍डार जी की राह पर चल कर राम जी की करूणा खोज रहा हूँ , अरे खोज क्‍या रहा हूँ , ससुरे सबूत तलाश रहा हूँ यानि प्रमाण वह भी त्रियाआमी ठप्‍पे वाला यानि हालमार्क खोज रहा हूँ । पता लगते लगते पता लगा कि इस देश में करूणा का भण्‍डार तो आप हैं और आपने सारे देश की करूणा जी(यों ) को कैद कर रखा है, तो यार तुम ही दे दो एक करूणा, जिससे अपना भी हो जाये उद्वार, उसी अहिल्‍या की भांति जिसे पतित और पत्‍थर से पावन और जीवन्‍त कर दिया था, या उस शबरी के मानिन्‍द जिसके झूठे बेर खाकर तुमने करूणा वत्‍सल का नाम पा लिया । या उस केवट मल्‍लाह की तरह या उस निषादराज की तरह जिनके साथ तुम्‍हारी करूणा ने जांत पांत को जात मार कर उनके मेहमान राम सीता और लक्ष्‍मण को बना दिया ।

अरे उसी करूणा की एक झलक दिखला दो भईये जो तुमने पम्‍पापुर में सगे भाई बालि के सताये सुग्रीव को दिखलाई और उसकी पत्‍नी व बेटा वापस दिलाये । और फिर बालि को मार कर करूणावश पम्‍पापुर लोकसभा या पम्‍पापुर स्‍टेट के चीफ मिनिस्‍टर की सीट छोड़ दी थी ।

अरे करूणा भण्‍डार वही करूणा की एक डलक हो जाये जो विभीषण पर बरसा दी और लंका जीत कर लंका के राष्‍ट्रपति महामहिम की गददी तुमने छोड़ दी थी । या फिर वही करूणा दिखला दो जो अयोध्‍या छोड़ जंगल के लिये सपत्‍नीक निकल पड़े थे ।

हॉं तो भईया निधि ऑफ करूणा, क्‍या ख्‍याल है, हो जाये करूणा के भण्‍डार की करूणा के प्रमाण का प्रदर्शन ।

और हॉं जी राम कहॉं के थे, कौन था यह राम, और किस महाविद्यालय या किस विश्‍वविद्यालय से इंजीनियरिंग स्‍नातक करके इसने पुल बनाया था । अरे भईया राम कहॉं का था और कौन था ये राम अब हम आपको क्‍या बतायें, केन्‍द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार ने कोर्स की किताबों में राम रखवा दिये हैं, ऐसा करना किसी स्‍कूल कॉलेज में एडमीशन ले लेना, माड़साब मुर्गा बना बना के रटा देंगें और हमारी तरह अपने आप बताने लगोगे कि गॉंधी जी मरने से पहले आखिरी शब्‍द क्‍या बोले । मरते वक्‍त गांधी जी झूठ बोले या सच, यह तो गांधी जी ही बता सकते हैं और गांधी जी से बात करना है तो यार तुम्‍हें उनके पास ही जाना पड़ेगा, वैसे भी यार खूब पक गये हो काफी सड़ खप गये हो, गर्दन तक कब्र में झूल रहे हो, मिल आओ और प्रमाण ले आओ, तुम्‍हारी प्राब्‍लम भी साल्‍व हो जायेगी और देश की भी । वहॉं राम भी मिल जायेंगे और रावण भी, उन्‍हीं से पूछ लेना कि तुम थे कि नहीं, तुमने पुल बनाया तो कैसे बना डाला बिना इंजीनियरिंग करे । साला बगैर इंजीनियरिंग किये कैसे मैप बनाया कैसे हमारी स्‍टेट में कन्‍सट्रक्‍शन करवा डाला, कैसे राज्‍य सरकार की इजाजत बगैर तुमने पेड़ उखड़वाये, कटवाये, खण्‍डे पत्‍थर और पहाड़ उखड़वा कर अवैध उत्‍खनन करवा डाला । कैसे हमारी इजाजत के बगैर और बिना वीसा बिना पासपोर्ट खुद भी और पूरी सेना लेकर विदेश यानि लंका चले गये । तुम्‍हारी पत्‍नी का अपहरण हो गया था तो हमारी स्‍टेट के किसी थाने में रिपोर्ट क्‍यों नहीं लिखाई, और अगर लिखाई थी उसका एफ.आई.आर. नंबर और डेट दो, उसका प्रमाण यानि फोटो कापी दो । करूणा भईया जरा जम के चढ़ बैठना । आई.पी.सी. के संग और भी कई कानूनों की कई धारायें लगतीं हैं, मैं पेशे से एडवोकेट हूँ खूब सारे अधिनियम और धारायें बता दूंगा

यह भी हड़काना कि क्‍यों न तुम पर बालि मर्डर केस और रावण एण्‍ड कम्‍पनी का मर्डर केस चलाया जाये । क्‍यों न तुम पर सोने की दुर्लभ बेशकीमती नगरी लंका को जलाने के आपराधिक षडयंत्र रच कर जलवाने का भी मुकदमा चलवा दिया जाये । खूब हड़का हड़कू कर वापस आ कर अपने किसी थानेदार को बुला कर रिपोर्ट लिखा देना, फिर वारण्‍ट तामील करा कर ऊपर से पकड़वा कर मंगा लेना। खूब मशहूर हो जाओगे, अखबार मीडिया सबके सब चैनल्‍स, इण्‍टरनेट सब कवरेज देंगें और क्षेत्रीय नेता से नेशनल नहीं इण्‍टरनेशनल हो जाओगे । अमेरिका के बुश चाचा तो तुमसे पूछे बगैर बाथरूम तक में नहीं घुसेंगें । अरे यार विज्ञान तरक्‍की पर है, चांद मंगल और बृहस्‍पति तक आदमी घूम आया है, तुम विष्‍णु लोक तक हो आओ । पकड़ लाओ इन अपराधीयों इन राम और उसकी सेना को ।

कॉस्मिक, लेजर, माइक्रोब्रेन, नैनो, मैनो, सैनो सारी की सार टैक्‍नालॉजी इस्‍तेमाल कर डालो ।

अरे हॉं राम की यूनीवर्सिटी तो रह ही गई, भारत के दकियानूस, अंधविश्‍वासी कहते हैं कि राम 'वशिष्‍ठ यूनिवर्सिटी आफ वर्ल्‍ड एजुकेशन, गुरूकल ऑफ अयोध्‍या' के परास्‍नातक थे और ऑल ब्रांचेज में हाइली क्‍वालीफाइड थे । अरे सब बकते हैं यार, ये भी कोई यूनिवर्सिटी है, इसे एक्रेडेशन एफिलेशन कब मिला किसने दिया कोई प्रमाण नहीं कोई सबूत नहीं कोई होलोग्राम मोनोग्राम नहीं । चढ़ बैठो, अरे मैं तो कहता हूँ कि क्‍या दूर की कौड़ी लाये हो , वाकई इण्‍टेलीजेण्‍ट हो प्‍यारे । लो कहते हैं कि बुढढे पहिले सठियाते हैं, फिर असियाते हैं और सौ तक आते आते सो जाते हैं । अरे तुमने तो सब कहावत झुठला दीं यार वाह क्‍या इण्‍टेलीजेन्‍सी पाई है, भाई सब भले ही तुम्‍हें गरियायें मैं तो तुम्‍हारा फैन बन गया डीयर । हॉं यार कानून फानून का कोई मतलब ही नहीं रहा, कोई भी आ कर अपनी स्‍टेट में रातों रात पुल ठोंक दें और बिला परमीशन विदेश भाग जाये, और दफा 144 या कर्फयू की चिन्‍ता करे बगैर विदेश में कत्‍लेआम कर आये, गलत बात, सरासर गलत । सोई तो मैं कहूँ कि आजकल मेरे पास मुकदमे क्‍यों नहीं आ रहे, ससुरा कानून नाम की चीज ही नहीं रही देश में, ऐसे तो नेता, वकील, अफसर, पुलिस, अदालत सब भूखे मर जायेगें । भैया करूणा मैं तुम्‍हारे फेवर में हूँ, चलो अपुन दोनों मिल के डकरायें जैसे दूरदर्शन पर डकराते हैं 'मिले सुर मेरा तुम्‍हारा'

मोदी भईया जिन्‍दाबाद

हॉं तो हमारे नामराशि मोदी जी ने शायद पिछली रोटी खाने की आदत डाल रखी है, उनकी ब्रेन गाड़ी थोड़ा अटल जी की स्‍पीच की तरह अटक अटक कर चलती है , तब तक ससुरी गाड़ी छूट जाती है और वे नवाबों के मानिन्‍द पहले आप पहले आप में ही लगे रहते हैं ।

अरे यार मोदी सोनिया जी ने कचरा कर दिया, अच्‍छी भली हाथ आयी त्रेतामेड तोप हाथ से छीन ली, वरना दिल्‍ली तो दूर नहीं थी । अरे यार अपुन को राम से क्‍या लेना देना, राम तो यूं ही ठूंठे राम थे, सरासर जिन्‍दगी भर गलत करते रहे, अरे भला कोई हाथ आयी गददी भी कहीं छोड़ता है अयोध्‍या की सीट छोड़ दी, फिर पम्‍पापुर और लंका भी छोड़ दी । इण्डियन पॉलिटिक्‍स तो ऐसा नहीं कहती, अरे भईया क्‍यों दे अपनी सीट किसी और को ।

अरे यार मोदी जी अपुन को भी भारी कष्‍ट है हलफनामा वापस हो जाने का, तुम्‍हारा स्‍टेटमेण्‍ट एक पेपर में पढ़ा मुझे लगा कि हम तुम एक ही कश्‍ती के सवार हैं , यार हलफनामा नहीं ये तो हलकनामा हो गया जो हलक में अटक गया है पहले केन्‍द्र वालों के हलक में अटका था अब गैर केन्‍द्र वालों के हलक में मछली के कांटे की तरह । ( भई मोदी जी मैं मछली नहीं खाता लेकिन मैंने सुना है कि मछली का कॉंटा हलक में फंस जाता है तो जान पर बन आती है )

यार तुमको कष्‍ट है कि ये हलकनामा वापस क्‍यों हुआ, मुझे भी यही कष्‍ट है कि ये हलकनामा वापस क्‍यों हुआ, आप दिल्‍ली पहुँचते पहुँचते स्लिप मार गये, और मेरे लेख की छ: किश्‍तें धरीं रह गयीं, छप ही नहीं पायीं । हम दोनों को कष्‍ट है होना ही है अरे तुम भी नरेन्‍द्र और मैं भी नरेन्‍द्र, तीसरे नरेन्‍द्र आपकी पार्टी के म.प्र. के अध्‍यक्ष हैं उनके भी हलक में यह हलकनामा अटक गया है और वे राम के वन गमन पथ पर उनके चरण चिहन ढूंढ़ने निकल पड़े हैं, सत्रह लाख साल बाद चरण खेजना कोई हँसी ठठठा है क्‍या, पर राम की महर हुयी तो मिल ही जायेंगें । चलो वे फुरसत में थे सो उन्‍हें तो कोई बेरोजगारी निवारक रोजगार चाहिये ही था सो उनने अपने लिये काम खोज ही लिया । अब हम दो नरेन्‍द्र बचे हैं इस हलकनामें के हलक में फंसने से । यार कुछ करो भईये जिससे मेरे लेख की छ किश्‍त भी छप जायें । मैं भी इन दिनों खासा बेरोजगार हूँ । मेरी तो हालत ऐसी है कि पार्टी वालों को मेरा ख्‍याल नहीं वहॉं भी मलाईमारों की पूछ परख है और दूसरी पार्टी वाले घास नहीं डालते । हमको भी गम ने मारा , तुमको भी गम ने मारा, यानि हमको भी हलकनामे ने मारा, तुमको भी हलकनामे ने मारा इस हलकनामें को मार डालो, हम सब को इसने मारा ।