रविवार, 21 दिसंबर 2008

आओ चलो एक सेना बनायें, घर में दुबकें गाल फुलायें

हास्‍य/ व्‍यंग्‍य

       आओ चलो एक सेना बनायें, घर में दुबकें गाल फुलायें

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

काने सों कानो मत कहो, कानो जागो रूठ । धीरें धीरें पूछ लेउ तेरी कैसे गई है फूट ।।  

मेरे एक मित्र देश में बढ़ रहे आतंकवाद और भ्रष्‍टाचार से काफी दुखित होकर मेरे पास आये, साथ में दस बीस पठ्ठे भी उनके साथ बंदूको से लैस होकर सरपंचों की जेड प्‍लस के मानिन्‍द उनके संग थे । उनमें आक्रोश और व्‍यथा दोनों ही गहराई तक समाई थी । आकर मुझसे बोले दादा ये सब क्‍या है, बस बहुत हो गया अब अपन को सबको मिल कर एक सेना बनानी है अब अपन सब खुल कर देश के लिये लड़ेंगें ।

मेरे मित्र जाति से राजपूत थे और संग में उनके ठाकुर बाह्मणों के छोरों की लम्‍बी चौड़ी टोली थी । मुझे उनकी ख्‍वाहिश जान कर कोई खास  हैरत नहीं हुयी । 26 -27 नवम्‍बर के बाद से सारे देश से ज्‍यादा गुस्‍सा चम्‍बल में है, और चम्‍बलवासीयों का वश नहीं चल रहा वरना रातों रात आतंकिस्‍तान का नक्‍शा गायब कर भारत में विलय कर 13 अगस्‍त 1947 की स्थिति बहाल कर देते ।

मैंने उन्‍हें फुसलाते हुये पूछा कौनसी सेना बनाना चाहते हो महाराष्‍ट्र वाली शिव सेना या मनसे वाली सेना । वे उतावले होकर बोले हम लक्ष्‍मण सेना बनायेंगें आप गौर कर लो, अंक फंक ज्‍योतिष फ्योतिष से टटोल टटूल कर चेक कर लेना, फिट नहीं बैठे तो राम सेना या लव कुश सेना या फिर हनुमान सेना कर लेना । बस दादा फायनल कर लो और हमारा नेतृत्‍व कर डालों ।

मैं उनके तैश तेवरों को देख चुपके से बोला भाई सिकरवार वो सब तो ठीक है लेकिन ये सेना फेना बनाना ठीक नहीं है, ससुरी सेना बदनाम बहुत हो गयीं हैं, वे बोले कैसे बदनाम हो गयीं हैं हम समझे नहीं । मैंने कहा कि वो जो ठाकरे की शिव सेना है, उसने कभी सेना वाला काम किया नहीं बस लोगों को मारने पीटने, चन्‍दा और हफ्ता वसूली करके सिनेमा के पोस्‍टर उखाड़ता फूंकता रहा है लेकिन नाम अपनी टोली का शिव सेना धर दिया ऐसे ही मनसे की शिव सेना बोर्डिंग होर्डिंग बदलवाने और उत्‍तर भारत के भइया लोगों को खदेड़ने में लगी रही तब तक साला पछांह (पश्चिम) से आतंकिस्‍तानी कूद परै, बिनें देख सारे सेना वारे सैनिक घरनि में दुबक गये और अपने अपने प्रान बचावत फिरे । फिर बेई (वही) गैर मराठी काम आये सो सारे आंतंकिस्‍तानीयन की रेल सी बनाया दयी । सो तबसे ये सेना फेना फर्जी घोषित होय गयीं हैं । काम तो असली सेना ही आवे है । बो ही खाली करवाय पाये है मराठीयन के मठन को ।

सिकरवार साहब बोले तो ठीक है सेना फेना रहन देओ कछू और बनाय लेउ । पर एक संगठन तो होनो ही चाहियें । सो हाल लठ्ठ फोर दे ।

खैर ऊपर लिखी एक ऐसी सच्‍चाई है जो बमुश्किल दो चार रोज पुरानी है और लगभग ऐसे ही हालात अमूमन समूचे देश में हैं । आतंकवाद पर गुस्‍साये एक नेता जी मेरे पास आये बोले कि ये कसाब को मारा क्‍यों नहीं जा रहा अफजल को फांसी पे क्‍यों नहीं लटकाया जा रहा । ये हमारे देश को हो क्‍या गया है । फटाफट एक्‍शन क्‍यों नहीं ले रहा, आतंकिस्‍तान पर हमला क्‍यों नहीं कर रहा ।

मैं उनके ताबड़तोड़ सवालों से बौखला सा गया । मैं बोला भईया नेताजी यार अब ये तो वह बात हो गयी कि पूछ लो सूचना के अधिकार में क्‍यों नहीं विवाह हो रहा, क्‍यों नहीं बच्‍चा हो रहा, क्‍यों नहीं जुड़वां हो रहे । यार कसाब को मारना था तो पकड़ा ही क्‍यों था, उसी वक्‍त ठोक देते, तब काहे नहीं ठोका, यार नेता जी तुम उस बखत कहां थे जब कसाब ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहा था और सेना वाले बिलों  में दुबके लाशों की चादर ओढ़कर प्राण बचाते भाग रहे थे, तब तुम्‍हीं पकड़ लेते कसाब को और ठोक देते उसी वक्‍त । अब तुकाराम जी अपनी जान देकर कसाब यानि कसाई मियां को जैसे तैसे एक कीमती सबूत के तौर पर हमें दे गये हैं तो आप कह रहे हो कि इसे म्‍यूजियम में सजाने के बजाय ठोक क्‍यों नहीं रहे, इसका इण्‍टरनेशनल यूज क्‍यों हो रहा है इसे फांसी क्‍यों नहीं चढ़ा देते ।

भाई नेताजी पहले एक कसाब को खुद पकड़ों फिर खुद ठोको या उसे ठोकने की बात करो, कहने में भी सुघर लगोगे और जनता को बात भी रूचेगी, वरना ढपोरशंखी ही बजोगे । पकड़े पकड़ाये पर नर्राना आसान है, टेंटूयें से सुरों के ताल उलीचना सहज है पर पकड़ना कठिन है, यह तो स्‍वर्गीय शहीद तुकाराम भाई बता सकते हैं कि उन्‍होंने अपने प्राण देकर भी पहली बार भारत के हाथ एक ऐसा ब्रह्मास्‍त्र दे दिया कि अब भारत कसाब के बल पर न केवल दुनियां के सामने छाती तान कर खड़ा है बल्कि डिफैन्‍स से निकल कर अटैक की सिचुयेशन में आ गया है । और आप कह रहे हो कि ठोक दो कसाब को, साले नेता जी यार तुम हिन्‍दुस्‍तानी हो कि आतंकिस्‍तानी । आतंकिस्‍तान की मदद करने वाली हर बात तुम्‍हारे मुंह से बार बार नकल रही है ।

अरे जै ठोका ठाकी करनी थी तो नेताजी कंधार में क्‍या अम्‍मा मर गयी थी या नानी पानी भर रही थी । जो दामादों की तरह आंतंकिस्‍तानीयों को लगुन फलदान के संग छोड़ आये थे । बाप ने मारी मेंढ़की बेटा तीरन्‍दाज, क्‍या यार नेताजी देश के स्‍वतंत्रता संग्राम में तुम कहीं नहीं दीखे, अब पकी पकाई खाने को जीभ लपका मार रही है, कसाब के मामले में भी पकी पकाई के लिये लपक मार रहे हो । हम संसद में होते तो कहते शेम शेम शेम । राजनीति का कैसा गेम, शेम शेम शेम

आजाद देश पर हुकूमती के लिये फड़फड़ाना आसान है, और पकड़े पकड़ाये कसाब के लिये नसीहत देना भी आसान है मगर देश आजाद कैसे होता है ये तो वे ही बता सकेगें जिन्‍होंने अपने लहू से भारत की आजादी का इतिहास लिखा और अपनी पीड़ाओं के साये में सुखी जीवन के सपने त्‍याग कर फांसी और गोलीओं का चुम्‍बन लिया, कंधार जाकर दामादों की तरह खुख्‍वार आतंकिस्‍तानीयों को मय लगुन फलदान नहीं जाकर छोड़ा बल्कि उन्‍हीं के दरबार में उन्‍हीं की ऑंख में ऑंख डाल कर आँख निकाल लीं और टेंटुये में हाथ डालकर पेट में से आंतें खींच लीं ।

मुम्‍बई में आतंकिस्‍तानीयों को जो हश्र झेलना पड़ा, अगर यह अंजाम उन्‍हें कंधार में देखने को मिलता तो आज मुम्‍बई तक आने का हौसला नहीं उफान मारता, कंधार में हम आतंकिस्‍तानी भून देते तो मुम्‍बई में उने चरण कमल नहीं पड़ते । कंधार में हम कायर हुये तो मुम्‍बई तक आतंकिस्‍तान चढ़ बैठा । हमारी सेना (असली सेना) ने अपने वीर सैनिकों की जान देकर जिन खुंख्‍वार आतंकिस्‍तानीयों को पकड़ा था हमारे कायर और नाकारा लुगमहरे नेता उन्‍हें कंधार छोड़ कर आये, तब नेता जी काहे नहीं बोले कि ऐसा कर दो वैसा कर दो ।

मुम्‍बई में हमने 200 आदमी की कुर्बानी दी है तब एक जिन्‍दा आतंकिस्‍तानी हाथ आया है, अब इसके कर्म कुकर्म का हिसाब करने का वक्‍त आया है तो नेताजी बोलते हैं कि ठोक काहे नहीं देते । नेताजी ठोका ठोकी कंधार में करना । देश पे बोलने और देश को नसीहत देने या रास्‍ता दिखाने का हक तो कंधार में अपने दामादों के साथ ही छोड़ आये हो ।

भारत के इतिहास की वह शर्मनाक घटनायें जिन्‍हें काले पन्‍नों पर उकेरा जायेगा उसमें कंधार, संसद और मुम्‍बई मे हमला खास होंगें ।

ऑंख में पानी हो तो एक बार शर्मनाक कृत्‍य कर राजपूत आत्‍महत्‍या कर लेता है सारी कौम को नीचा दिखाने के बाद भी अगर वह यह कहे कि मौका पड़ा तो फिर ऐसा करूंगा, ऐसे साले को तो खड़े खड़े भून देना चाहिये । कसाब से ज्‍यादा खतरनाक तो ये नेता है जो, आंतकिस्‍तानीयों के हौसले बढ़ाने का स्‍टेटमेण्‍ट देकर उन्‍हें छपा छपाया इन्विटेशन कार्ड दे रहा है । और कह रहा है, यानि रास्‍ता दिखा रहा है कि आओ मेरे प्‍यारे दामादो और फिर कंधार चलो, मेरी सरकार आयेगी तो फिर तुम्‍हें लगुन फलदान देकर सकुशल विदा करूंगा । ये नेता अफीम वफीम खाता है क्‍या । पता नहीं भारत सरकार इसे गोली क्‍यों नहीं मरवा रही । कुत्‍ता पागल तो गोली और नेता पागल तो ...........।

हवालात में बन्‍द कसाब पे हवा और लात घुमाने वाले नेता जी अकल अड्डे पर रखो नहीं तो ठोक के कसाब के संग ही आतंकिस्‍तान भिजवा दिये जाओगे ।

अब नेता जी बोले कि चलो मान लिया कि हम कायर है पर यार ये अंतुले काहे को कह रहा है कि करकरे को हमने मारा, आतंकिस्‍तानीयों ने नहीं मारा । हम फिर गुस्‍साये, भरे भराये तो बैठे ही थे और अपनी जिह्वा रूपी तोप से फिर गोलों की बौछार शुरू की, और उल्‍टे नेता जी से ही पूछ लिया, यार ये घटना उस रात काहे घटी जब सबेरे पूरी स्‍टेट में वोट डलने थे, उसके बाद दो स्‍टेट में और वोट डलने थे, इस घटना का फायदा किसे मिलता । दूजी बात ये कि एटीएस वाले वे ही क्‍यों मरे जो प्रज्ञा भारती काण्‍ड देख रहे थे (चुन चुन कर ) ये संयोग नहीं हो सकता ( इसके बाद नेता जी के कुछ पालतू ब्‍लागर्स ने लिखा कि साला करकरे हरामी मारा गया, ये शहीद नहीं था एक आम आदमी था करकरे नाम का एक साधारण आदमी मारा गया, साले करकरे ने साधू संतों (प्रज्ञा भारती) से पंगा लिया और निबट गया । (इण्‍टरनेट पर लगभग आधा सैकड़ा ब्‍लाग छद्म नाम से बना कर एक ही मैटर कापी पेस्‍ट किया गया था )

तीजी बात ये कि यार नेता जी शुरू से ही तुम्‍हारे आचरण आतंकिस्‍तानी रहे हैं , अफजल को फांसी की डिमाण्‍ड कम से कम वो नहीं कर सकता जो आंतकवादीयों को दामाद की तरह कंधार में लगुन फलदान देकर आया हो । या जिन्‍ना की मजार पर माथा पटक कर रिरियाया हो ।

नेता जी हमने दो सौ निर्दोष मासूमों का रक्‍त देखा है, लहू खौल जाता है और ऐसे में तुम्‍हारा सुर तुम्‍हारी सूरत सब की सब काल बराबर नजर आती है । अच्‍छा हो कसाब का फैसला उन पर छोड़ो जिन्‍होंने उसे पकड़ा है । अपनी नेतिया टांय टांय बन्‍द रखो तो अच्‍छा है, बोलने का हक कंधार में जो छोड़ आये हो ।