रविवार, 2 दिसंबर 2007

मोहल्‍ले में कैसी मारामार हैं, आजा नच ले पे रोक बेकार है

मोहल्‍ले में कैसी मारामार हैं, आजा नच ले पे रोक बेकार है

व्‍यंग्‍य/ हास्‍य

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

इण्‍टरनेट पर खबर है कि यू.पी., पंजाब और हरियाणा में माधुरी दीक्षित की फिल्‍म ''आजा नच ले'' पर रोक लग गई है । मसला वही राजनीतिक, वही पुराना जाति भेद ।

बात कुछ यूं है कि फिल्‍म में एक गाने में पंक्ति है- ''मोहल्‍ले में कैसी मारामार है, मोची भी खुद को कहता सुनार है'' ये पंक्ति बकौल यू.पी. सरकार दलितों के लिये आपत्तिजनक है, उनके मुताबिक ''मोची'' शब्‍द जातिसूचक शब्‍द है और इस शब्‍द को भारत की डिक्‍शनरी से उखाड़ फेंकना चाहिये । और 'मोची' एक व्‍यवसाय नहीं एक जाति है । समवेत स्‍वर इसके बाद उभरते सुनाई दिये, पठठे नेता लोग बोले कि ''मोचीयों'' को देश से उखाड़ फेंकों, मोचीगण देश के लिये कलंक हैं, मोची नामक शब्‍द कक्षा 1 से लेकर एम.ए. और पी.एच.डी. तक कहीं किसी किताब में नहीं मिलना चाहिये, यह जातिसूचक शब्‍द है । दलितों का अपमान है ।

जो लोग मोची से राष्‍ट्रपति बने, या केन्‍द्रीय मंत्री, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बन गये, उनका इतिहास देश से हटाओ, उनके इतिहास में से मोची हटाओ, मोची उनकी जाति बताता है । भईया पेशे से मैं एक एडवोकेट हूँ और मुझे पता है कि जातिसूचक शब्‍द उच्‍चारण से हरिजन एक्‍ट लग जाता है । सो मुझे भी नेता लोगों की चिल्‍लपों ठीक लगी , वाकई किताबों, इतिहास और डिक्‍शनरी में जहॉं जहॉं मोची आये हैं, तुरन्‍त डिलीट कर देने चाहिये । अरे जहॉं जहॉं मोची सिम्‍बल देखने को मिले तुरन्‍त हटा देना चाहिये, जिस चौराहे पर भी मोची मिल जाये तुरन्‍त उसे उठा कर खदेड़ देना चाहिये और उसे मोची बनने से और मोची का काम करने से तत्‍काल रोका जाना चाहिये, आखिर एक जातिसूचक शब्‍द, व्‍यवसाय, चित्रण, प्रतीकन जो किसी भी सूरत में एक जाति का बयान करते हो या उल्‍लेख करते हों तुरन्‍त हटाये जाना चाहिये ।

भारत में से मोचीयों के विलोपित किये जाने का वक्‍त आ गया है । मोची कहना, बोलना, लिखना, बनना सब अपराध है भईया । देश में जित्‍ते भी मोची संघ हैं, तत्‍काल समाप्‍त कर देने चाहिये, वे भी जातिसूचक संघ हैं ।

नवम्‍बर में डम्‍पर की बम्‍पर हिट रही, तो दिसम्‍बर में मोची हिट रही । हम अगर कभी फिल्‍म बनायेंगे तो उसका टायटल ''मोची''  रखना पसन्‍द करेंगें, आटो हिट होगी हमारी फिल्‍म, फिर नेता लोग कसीदे बांचेंगे, फिर हम टायटल चेन्‍ज करेंगें और कर देंगें ''द ग्रेट मोची'' नेता फिर डकरायेंगें तो हम कर देंगें ''नो मोची'' नेता फिर नर्रायेंगें तो अबकी बार हम कर देंगें '' द डार्क एज आफ ...'' वगैरह वगैरह ।

एक गीत पर वे ठुनक गयीं, अरे ठुनक क्‍या बिफर गयीं, अरे बिफर क्‍या मचल गयीं, अब उनका ठुनकना, बिफरना, और मचलना रंग दिखा गया और फिल्‍म वाले ने करोड़ों डूबते देख हाथ खड़े कर दिये, और माफी ठोक दी, और ''मोची डिलीट कर दिये, संग संग सुनार मुफत में ही डिलीट हो गये ।

अरे पियूष मिश्रा हम ठाकुर हैं, गाने से पूरे सुनार डिलीट करने की का जरूरत थी भईया, मोची हटाइके ठाकुर कर देते, और गाना कुछ यू हो जाता कि ''मोहल्‍ले में कैसी मारामार है, ठाकुर भी खुद को कहता सुनार है'' भईया पियूषा तुम्‍हारा गाना भी बचा रहिता, फिल्‍म भी सुपरहिट हो जाती, ठाकुरों को तो फिल्‍मों में हर रूप हर रंग में लाया गया है, एक कलर और हो जाता। सुनारों पर छोरीयां वैसे ही खूब जान छिड़कतीं हैं, सो थोड़ा भला ठाकुरों का हो लेता, कुछ दिन तो सुन्‍दरीयों से खतो खितावत होती ही ।

पर क्‍या पियूष ये क्‍या कर डाला, हम होते तो ऐसा नहीं करते भईया , अड़ जाते और लड़ जाते , तुमने तो देश की संस्‍कृति, इतिहास, विरासत, और पहचान के साथ किताबें बदलवा डालने की नींव धर दी ।

जो न हो सकता था, जो संभव नहीं, उस झगड़े की बुनियाद धर दी । भईये नेता बरसाती मेंढ़क होते हैं, एक बरसात (यानि चुनाव) में उतरा कर छा जाते हैं, दूसरी बरसात में लापता हो जाते हैं, लेकिन इतिहास, संस्‍कृति और देश व उसकी विरासत व पहचान स्‍थायी है, इसे न वो खत्‍म कर सके न ये कर सकेगें ।

लेकिन जब एक देश के इतिहास को बदलने की कोशिश हो रही है, तो मेरा चुप रहना मुझे उचित नहीं लगा । मोची हमारे देश और समाज का अभिन्‍न अंग रहें हैं, और करोड़ों लोग इस पेशे से अपना पेट भर रहे हैं । उन्‍हें जातिसूचक कह कर उनके पेट पर लात मारना न समाज के लिये ठीक रहेगा न देश के लिये । मेरे शहर में मोची का काम (जूतों की दूकान) कई ब्राहमण खोले बैठे हैं, लोग उनकी दूकान पर जाने से पहले ''मोची की दूकान'' पर जा रहे हैं कहते हैं । कई ब्राहमण भी इस चक्‍कर में निबट जायेंगे, प्‍यारे । और अब तो बी.एस.पी. को भी ब्राहमण समाज पार्टी कहा जाता है, सो काहे को ब्राहमणों की रोजी रोटी छीन रहे हो ।

फिल्‍म का नाम ही ऐसा था कि पंगा तो होना ही था, रख दिया नाम 'आजा नच ले', क्‍या खाक नाच ले, 'वे तो नच ले' के बजाय भांगड़ा करने लगीं । और नच ले के इस डिस्‍को, भांगड़ा और भरत नाटयम के बाद अब हमारा जी भी तांडव करने का हो रहा है । ले नच ले बेटा । आजा नच ले ।

उधर दिल्‍ली में भी नेता नच ले करना चालू कर दिये हैं, एक नेता तो इतना थिरक रहे हैं कि वे सेण्‍ट्रल मिनिस्‍ट्री को भी नच ले नच ले चिल्‍ला कर आखिर कह बैठे, कि सरकार को नचना ही नहीं आता, सरकार का नचने पर ध्‍यान ही नहीं है । क्‍या यार जनता भी कैसे कैसे नमूने नचाती है । चल भईया मैं भी तांडव की तैयारी करूं, अभी कुछ को और नचाना है, पहले चप्‍पल जुड़वा लूं , मगर अब ''मोची'' तो रहे नहीं, कौन जोड़ेगा मेरी चप्‍पल, सोचता हूँ किसी नेता से ठुकवा लाऊं दो कील, फिर उसी के संग नच भी लूंगा । या फिर शर्मिला जी से मिलता हूँ कि देश का शब्‍दकोश, इतिहास बदलने की बाकायदा माफी मांग कर अपनी जिम्‍मेवारी पर जो राष्‍ट्रीय किताबें बदलने और इतिहास, संस्‍कृति बदल डालने की मुहर लगाई है, अब या तो मेरी चप्‍पल जुड़वा दो या फिर खुद ठोको कील, और अब नच लो मेरे संग ।