शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

किस्‍सा ए मुरैना: पत्रकार बनना है तो लाओ दो हजार, सरकार उवाच ......

किस्‍सा ए मुरैना: पत्रकार बनना है तो लाओ दो हजार, सरकार उवाच ......

मुरैना डायरी (वर्ष 1999 से प्रकाशित)

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

(लेखक अनेक पुरूस्‍कारों व सम्‍मानों से सम्‍मानित प्रख्‍यात समाजसेवी, साहित्‍यकार, पत्रकार एवं क्रिमिनल लॉयर व इन्‍वेस्‍टीगेटर है )

आज फिर एक बार मुरैना डायरी का अंक आपके सामने है, एक लम्‍बा अर्सा हुआ यह स्‍तम्‍भ प्रकाशित नहीं हो पा रहा था । पर थोड़ी रूकावट के बाद सही फिर आपके सामने आया ।

मोगाम्‍बो खुश हुआ

हमारे मुरैना में एक मोगाम्‍बो हैं, काफी फेमस हैं और एक अर्सा पहले अखबारों की हाकरी किया करते थे आजकल बड़े साहब के मुँह लगे है, मुँह क्‍या लगे हैं यूं कहिये कि छाती पान लगा है । अब लोग उन्‍हें साहब का दलाल कहते हैं तो भई ये तो गलत बात है , सरासर गलत । अकेले बेचारे मोगाम्‍बो को ही काहे बदनाम करते फिरते हो , साहब के छाती पान तो शहर में, जिले में गली गली में आवारा कुत्‍तों के मानिन्‍द ब्‍याये पड़े हैं ।

मोगाम्‍बो जो भी हो बड़ा दयालु है, काम करवा ही देता है , पक्‍के में करवा देता है अब थोड़ा बहुत तो हर जगह ही खर्च होता है, कुछ साहब पर कुछ साहब के बीवी बच्‍चों पर , कुछ खुद पर कुछ खुद के बीवी बच्‍चों पर अब सब एडजस्‍ट तो करना ही पड़ेगा न । मोगाम्‍बो चाहे जिसे पत्रकार बना देता है चाहे जिसे पत्रकार से बेलदार बना देता है । एक किस्‍सा गौर फरमाईये ।  

एक बेलदार एक मकान पर बेलदारी कर रहा था, मोगाम्‍बो भाई वहॉं घूमते घामते पहुँच गये, मोगाम्‍बो भाई ने पहली नजर में ही भॉंप लिया कि शिकार मुकम्‍मल और वजनदार है । मोगाम्‍बो भाई बेलदार से बोले काहे कित्‍ता कमा लेते हो रोजाना, बेलदार बोला कि साब हमारी रेट सबको मालुम है लेकिन काम मिलता रहे इसकी कोई गारण्‍टी नहीं, जब काम नहीं मिलता तब दिक्‍कत हो जाती है ।

मोगाम्‍बो भाई बोले कि चल बीड़ी पिला , बेलदार ने बीड़ी सुलगाई कश के साथ बाते आगे बढ़ाते मोगाम्‍बो बोला कि बोल कुछ इन्‍तजाम करवाऊं क्‍या, बेलदार ने गदगद स्‍वर में कहा कि का साब का करवाओगे ।

मोगाम्‍बो भाई बोला कि ऐसा कर कब तक ये मजदूरी फजदूरी करता फिरेगा, नरेगा की रोजगार गारण्‍टी में फंस गया तो निबट जायेगा, कम रेट और कमीशन कटा के मजदूरी के नाम पर ढेढ़स पावेगा, और मजदूरी नहीं करेगा तो गरीबी रेखा से भी नाम कटा बैठेगा, तू ऐसा कर कि पत्रकार बन जा ।

मोगाम्‍बो की बात सुन कर बेलदार चौंका और बोला कि साहब जे का होता है । मोगाम्‍बो ने उसे ईगर फुल देखा तो बोला कि अबे तेरे को नहीं पता कि जे का होता है, साला पत्रकार तो बहुत बड़ी तोप होता है , हरेक में डण्‍डा डाल देता है ।

बेलदार उत्‍सुक होता हुआ बोला कि बनवाय देओ साब, कैसें बनेंगे, का तरीका है ।

मोगाम्‍बो बोला कि अरे कुछ नहीं दो हजार जमा कर सो लोकल नीला पर्चा, हरा पर्चा , हवाबाण टाइम्‍स किसी से भी लिखवा लेंगें कि तू उनका पत्रकार है , फिर दो हजार और लगेंगे सो अधिमान्‍यता के कागज बनवा दूंगा, तीन हजार उसके बाद दे दीओ तो अधिमान्‍यता दिलवा दूंगा बस फिर तो तेरे जलवे ही जलवे हैं ।

बेलदार जो अब तक टांग पसार कर जमीन पर बैठा था , फुर्ती से उकड़ू होता हुआ बोला पत्रकार बन के अधिमान्‍यता मिले पर का फायदा होगा ।

मोगाम्‍बो ने जलती आग में थोड़ा घी और उड़ेला बोला कि बेटा साल में 20 हजार तो आर्थिक सहायता, बस और रेल का कंसेशन पास, घर वालों की दवा दारू और इलाज सब मुफ्त, इसके संग हर वी.आई.पी. के कार्यक्रम में अगाड़ी वाली कुर्सी पक्‍की, नहीं तो वैसे साला भीड़ में धक्‍के खाता फिरेगा और मंत्री, नेता, अफसर के दरसन भी नहीं पावेगा । पुलिस भी सैल्‍यूट मारे तो बात करना ।

बेलदार की ऑखें चौड़ी हो गयीं और हैरत से बोला ऐं इत्‍ते फायदा बाप रे बाप मैं अभी तक कहॉं गढ्ढे में पड़ा पशुयुग में जी रहा था , प्रभु प्रभु कहॉं थे आप अभी तक , धन्‍य हैं आप प्रभु धन्‍य हैं आप । मोगाम्‍बो बोला तो फिर निकाल फटाफट दो हजार और खुलवा देता हूँ तेरा पत्रकारिता का अकाउंट ।

बेचारे बेलदार ने अपने पड़ौसियों से कर्जा लिया और मोगाम्‍बो को दो हजार थमा कर पत्रकार बनने के सपने में बेलदारी छोड़ कर आजकल घर आराम फरमा रहा है ।

बेलदार को पत्रकार और पत्रकार को बेलदार बना देने के हुनर में माहिर मोगाम्‍बो का कारनामा हमारे सामने तब आया जब म.प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर के मुरैना आगमन को मीडिया ने प्रकाशित करने से बहिष्‍कार कर दिया और मीडिया के कुछ मोगाम्‍बो के पालतूओं को छोड़ किसी ने कार्यक्रम को तवज्‍जुह नहीं दी, भाई हम भी बहिष्‍कार कर आये थे (बढि़या श्‍लोक और पुराण सुना आये थे, अफसर कुर्सी टेबलों के पीछे दुबकते फिर रहे थे)   इसलिये ग्‍वालियर टाइम्‍स ने बाबूलाल गौर का समाचार प्रकाशित नहीं किया था, हमें काफी ई मेल पाठकों ने इस सम्‍बन्‍ध में भेजे थे आशा है उन्‍हें जवाब मिल गया होगा । बाबूलाल गौर हमारे अतिशय प्रिय और हमारी नजर में अर्जुन सिंह के पश्‍चात सर्वाधिक सफल मंत्री व मुख्‍यमंत्री रहे हैं , उनका म.प्र. का मुख्‍यमंत्रित्‍व काल स्‍वर्णिम रहा है, हम गौर साहब से भी इस सम्‍बन्‍ध में क्षमा मांगना चाहेंगें कि हमारे प्रिय व आदरणीय होते हुये भी हम भरे दिल से न चाहकर भी मोगाम्‍बो के कारण अपने प्रिय मंत्री का समाचार प्रकाशित करने का बहिष्‍कार करना पड़ा । 

जेंगरे और पिल्‍ले

मुरैना में जेंगरा और पिल्‍ला बड़े लोकप्रिय हैं । दरअसल जेंगरा गाय के छोटे मगर कमजोर बछड़े को कहते हैं और पिल्‍ला कुत्‍ते के बच्‍चे को कहते हैं । लेकिन हमारी डायरी के इस भाग में जिन जेंगरो और पिल्‍लों की बात हम यहॉं कर रहे हैं वे न तो गाय के बछेरे हैं, और न कुत्‍ते के पिल्‍ले बल्कि जाने माने मुरैना के नामवर इंसानात हैं और कभी बाकायदा आदमी थे मगर कहते हैं न कि वक्‍त ने गालिब कुत्‍ता कर दिया , सो कुछ ऐसी ही कहानी शहर के मशहूर इन पालतू और दलाल जेंगरों और पिल्‍लों की है ।

 

...............क्रमश: अगले अंक में जारी