शनिवार, 5 दिसंबर 2009

व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं- के.पी. सक्सेना

व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं- के.पी. सक्सेना
हिन्दी व्यंग्य एवं आलोचना पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

Anup Srivastava,  9335276946 Lucknow
लखनऊ, 30 नवम्बर

हिन्दी व्यंग्य साहित्यिक आलोचना की परिधि से बाहर तो है ? इस विषय पर आज उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान और माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से अट्टहास समारोह के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी में यह निष्कर्ष निकला कि व्यंग्यकारों को आलोचना की चिन्ता न करते हुये विसंगतियों के विरूद्ध हस्तक्षेप की चिन्ता करनी चाहिये, क्योंकि वैसे भी अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं।
राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरूआत प्रख्यात व्यंग्यकार के.पी. सक्सेना की चर्चा से शुरू हुयी। श्री सक्सेना का कहना था कि हिन्दी आलोचना को अब व्यंग्य विधा को गंभीरता पूर्वक लेना चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि अब व्यंग्य को आलोचना की बैसाखी की जरूरत नहीं है। व्यंग्य लेखन अपने उस मुकाम पर पहुंच गया है जिसमें राजनीति, समाज एवं शिक्षा जैसे सभी पहलुओं को अपने दायरे में ले लिया है अब वह किसी आलोचना का मोहताज नहीं है।
यह गोष्ठी राय उमानाथ बली प्रेक्षागार के जयशंकर प्रसाद सभागार में आयोजित की गयी थी जिसमें देश गिरीश पंकज, अरविन्द तिवारी, बुद्धिनाथ मिश्र, सुश्री विद्याबिन्दु सिंह, डा0 महेन्द्र ठाकुर, वाहिद अली वाहिद, अरविन्द झा, सौरभ भारद्वाज, आदित्य चतुर्वेदी, पंकज प्रसून, श्रीमती इन्द्रजीत कौर नरेश सक्सेना, महेश चन्द्र द्विवेदी, एवं अन्य प्रमुख लेखकों ने अपने विचार प्रकट किये। गोष्ठी का समापन माध्यम के महामंत्री श्री अनूप श्रीवास्तव के धन्यवाद प्रकाश से हुआ। इससे पूर्व संस्था के उपाध्यक्ष श्री आलोक शुक्ल ने आशा प्रकट की कि प्रस्तुत संगोष्ठी के माध्यम से व्यंग्य लेखन को उसका आपेक्षित सम्मान मिल सकेगा।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष और सुविख्यात व्यंग्यकार श्री गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि व्यंग्यकार लेखन करते रहें एक न एक दिन आलोचना उनकी ओर आकर्षित होगी। उन्होंने नये व्यंग्यकारों से आग्रह किया कि वे समाज की बेहतरी के लिये लिखते रहें और आलोचना की परवाह न करें।
अट्टहास शिखर सम्मान से कल नवाजे गये डा0 शेरजंग गर्ग का कहना था कि आज जितने भी व्यंग्यकार स्थापित हैं वे अपनी गंभीर लेखनी के कारण ही प्रतिष्ठित हैं। आलोचकों की कृपा पर नहीं हैं। कवि आलोचक नरेश सक्सेना ने नागार्जुन की व्यंग्य का जिक्र करते हुये व्यंग्य की शक्ति प्रतिपादित की।
हिन्दी संस्थान के निदेशक डा0 सुधाकर अदीब का कहना था अगर व्यंग्य लेखन में गुणवत्ता का ध्यान रखा जाय तो हमें आलोचना से घबराना नहीं चाहिये। श्री महेश चन्द्र द्विवेदी का कहना था कि हास्य और व्यंग्य अलग-अलग हैं इनको परिभाषित करने की आवश्यकता है। श्री सुभाष चन्दर जिन्होंने व्यंग्य का इतिहास लिखा है का कहना था कि व्यंग्य लेखन को दोयम दर्जे का साहित्य समझा जाता रहा है लेकिन हिन्दी के संस्थापक सम्पादक स्व0 बाल मुकुन्द गुप्त ने लिखा है कि मैंने व्यंग्य के माध्यम से लोहे के दस्ताने पहनकर अंग्रेज नाम के अजगर के मुंह में हाथ डालने का प्रयास किया था। आवश्यकता इस बात की है कि हम व्यंग्य के सौन्दर्य शास्त्र को समझंे और आलोचना की समग्र पक्षों के अनुरूप व्यंग्य लेखन का विकास हो। हरिशंकर परसाई पुरस्कार से विभूषित सुश्री अलका पाठक ने कहा- व्यंग्य की आलोचना अनुचित है हम असंभव लेखन को भी संभव करके अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। श्री अरविन्द तिवारी का कहना था कि व्यंग्य के माध्यम से हम आम जनता का ध्यान तमाम विषयों पर दिला पाते हैं। श्री बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा- व्यंग्य कोई नयी विधा नहीं है विदूषकों की परम्परा रही है। व्यंग्य को निंदारस मानना गलत होगा। वास्तव में यथार्थ की विदू्रपता पर आक्रोश व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। श्री गोपाल मिश्र का कहना था कि अच्छा व्यंग्य छोटा साहित्य होता है अतः इसे परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है।
डा0 महेन्द्र कुमार ठाकुर का कहना था कि हम व्यंग्यकार हैं और हमें अपने साहित्यिक शिल्प को मजबूत करने की आवश्यकता है। श्री वाहिद अली वाहिद का कहना था कि व्यंग्य हमारी परम्परा में रहा है और नई पीढ़ी को इसे आगे बढ़ाना चाहिये। श्री रामेन्द्र त्रिपाठी का कहना था कि व्यंग्यकार मूलतः आलोचक ही है इसकी लोकप्रियता ही इसकी सफलता का मापदण्ड बनता है। श्री आदित्य चतुर्वेदी के विचार मे समाज के सुधार में व्यंग्य की प्रमुख भूमिका है। श्री भोलानाथ अधीर के विचार में लेखक का दायित्व है कि वह समाज की कमियों को उजागर करे और उन पर प्रहार करे इसके लिये व्यंग्य एक सशक्त माध्यम है।



रविवार, 15 नवंबर 2009

दीनबन्धु भये मंत्री -अफसर, नेता दीनानाथ कहाये (दैनिक मध्‍यराज्‍य)

दीनबन्धु भये मंत्री -अफसर, नेता दीनानाथ कहाये

गोपाल दास गर्ग

जनता बनी है सानी सबकी

दीनबन्धु भये मंत्री -अफसर, नेता दीनानाथ कहाये।

दीन हीन जनता ने पूजा, फिर भी उसके कष्ट बढ़ृाये ॥1

कुर्सी-धारक करते मनमर्जी, नहीं सुनते हैं किसी की अर्जी. ॥2

 मंत्री खाता, अफसर खाता, नेता खाता और खिलाता।

जनता बनी है  सानी सबकी, सत्ताकी खदान में खाता ॥ 3

धन लोलुपता की बाढ़ आ गई, मान वहे मनमानी में।

घर-द्वार सब चौपट हो गया, आपसी खींचातानी में ॥ 4

धन आधारित राजनीति में, नैतिकता का हरण हुआ।

देश समर्पित नेताओं का, राजनीति से क्षरण हुआ ॥ 5

शासन और प्रशासन में, धरणीधर का मान है।

आम प्रजाजन रोता फिरता,नहीं कोई पहचान है॥ 6

दलतंत्र भगाओं- जनतंत्र बचाओं अभियान में,

सबका कद समान है। ना ही कोई छोटा-बड़ा ना कोई पद पहचान है।

तरण करेगा इस पीड़ा से, ऐसा यह अभियान है ॥ 7

प्रस्तुती..गोपालदास गर्ग मुरैना

 

बुधवार, 11 नवंबर 2009

म.प्र. में बिजली के लिये त्राहि –त्राहि मची, गॉंवों में किसानों को दो दिन बाद दो घण्‍टे और शहरों में सिर्फ 3 घण्‍टे मिलती है बिजली

म.प्र. में बिजली के लिये त्राहि त्राहि मची, गॉंवों में किसानों को दो दिन बाद दो घण्‍टे और शहरों में सिर्फ 3 घण्‍टे मिलती है बिजली

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

यूं जर्रा जर्रा महताब हुआ, मेरा सजन तो आफताब हुआ, उनकी इस अदा का क्‍या कहिये कि जो बचा खुचा था वो भी सूपड़ा साफ हुआ ।

       बदले बदले से सरकार नजर आते हैं, जिनके कन्‍धों पर पग रख के पहुँचे एक ऊँचाई तलक, आज कहते हैं कि मैं आसमान हुआ ।

आसमां पे उड़ने वाले तेरी पतंग की डोर जिन हाथों में, जरा खौफ खा वरना मत कहना कि ये क्‍या कमाल हुआ ।

ये जर्रा धूल का, फांकोगे तो ऑंतें फुंक जायेगी, फेफडे चलनी हो जायेंगे, ठोकर मारोगे तो न कहना कि सिर पे सवार हुआ ।

कल तक जिस मिट्टी ने तुझे पुतला बना कर एक भगवान बना दिया, उस मिट्टी को ललकारेगा तो न कहना कि क्‍या सब्‍जबाग हुआ ।

तू भूल गया उपने जानो जॉं पर खेल खून के कतरे बहाने वालों को, मत कहना कि ये कतरा तो अब दरिया हुआ ।

ओ कान में तेल औ ऊंगली फंसा के सोने वाले, जिनकी नींद हराम हुयी फिर न कहना कि ये क्‍या कोहराम हुआ ।

जिद तेरी है इस वतन की मिट्टी को मिटाने की, तो इक जिद मेरी भी है इसे बचाने की, जब दो जिद टकरायें तो न कहना कि व्‍यर्थ संग्राम हुआ ।

हम तो खिलाड़ी हैं घर फूंक तमाशे वाले, तेरा चमन गर उजड़ा तो न कहना कि ये क्‍या वीरान हुआ ।

चम्‍बल के बेटों को शौक है मौत से टकराने का, तेरी वो बिसात कहॉं, गर मौत बन कर हम टूटें तो न कहना कि ये क्‍या जंजाल हुआ ।

कितना भी उँचा तू उठा अभी मेरे मुकाबिल नहीं पहुँचा, तुझसे छिनने लुटने को काफी है मैं नंगा ही सही, फिर न कहना कि ये क्‍या किस किस को बचाऊं क्‍या ये बवाल हुआ ।

दौलत और शोहरत के भ्रष्‍ट समन्‍दर में तैरने वाले, हम जो तूफां बन के तेरी किश्‍ती डुबोये तो न कहना कि ये क्‍या मंझधार हुआ ।

हसरत है गर तेरी दो दो हाथ की, मन मेरा भी है अब तुझये टकराने का , लगा जोर तू पूरा फिर न कहना कि तुझे कह कर नहीं मारा ।

यूं अब आही जा मुकाबिल मेरे, मैं हिन्‍दुस्‍तान तो तू पाकिस्‍तान सही, तेरी हसरत और मेरा मन भर जायेगा फिर न कहना कि मुकाबला ही कहॉं हुआ ।

क्‍या जरूरत कंस की रावण की औ किसी अन्‍य शैतान की, तू तो सबका नया अवतार हुआ ।

उस्‍ताद समझता है तो आ सामने, हो दो दो हाथ तुझसे यूं छुप छुप के लड़ता है तो भरम दोस्‍ती का होता है, आ दुश्‍मन की तरह टकरायें वरना फिर न कहना कि तेरा  तो कत्‍लेआम हुआ ।

 

कहने को संभागीय मुख्‍यालय है शहर मुरैना लेकिन बिजली कटोती के हाल इतने बदतर कि महज तीन घण्‍टे ही शहरवासीयों को 24 घण्‍टे के दरम्‍यां मिलती है बिजली, न कोई सुनने वाला न कोई निराकरण करने वाला यहॉं वम्‍बल संभाग का कमिश्‍नर और मुरैना जिला का कलेक्‍टर दोनो ही बैठते हैं लेकिन जनता की समस्‍याओं से पूरी तरह नावाकिफ ये दोनो अधिकारी अपनी अपनी धींगामस्‍ती में मस्‍त हैं । गॉंवों के हाल तो और भी बदतर हैं गॉंवों में रबी की फसल जब सिंचाई के लिये तरस रही है तब उन्‍हें दो दिन में एक बार यानि 60 घण्‍टे में महज दो घण्‍टे बिजली आपूर्ति की जा रही है, अब फर्जी सरकारी दावों की पोल खोलती नीचे किसानों के साथ गुजारी एक रात की दास्‍तां हम यथावत यहॉं दे रहे हैं हालांकि इसमें चम्‍बल की ठेठ देहाती भाषा में बातें कहीं गईं हैं और कुछ गाली गलौज की भाषा भी किसानों द्वारा प्रयोग की गयी है लेकिन बात तो थी उसे साहित्यिक और परिष्कृत रूप देकर हम नहीं चाहते थे कि बात की तासीर या ग्रामीणों के आक्रोश का इजहार कमतर हो जाये । सो लिहाजा जो सच है हम बेबाक यहॉं दे रहे हैं, हमने ग्राम और ग्रामीणों के नाम यहॉं जानबूझ कर प्रकाशित नहीं किये हैं हम नहीं चाहते कि वे किसी भी राजनीतिक या सरकारी या अफसरी कोपभाजन के वे भोले भाले निर्दोष लोग शिकार हों । वक्‍त पड़ने पर हम सारी वार्ता साबित करने में सक्षम व समर्थ हैं ।

अभी लगे हाथ बताता चलूं कि मुझे चम्‍बल के कई गॉंवो का एक साथ दौरा करने को मिला , मेरे बचपन के कुछ ग्रामीण मित्रों ने मुझसे रात को एक गॉंव में हुये चौपाल पर चौगोला (यह काव्‍य की ग्रामीण लोक विधा है ) सम्‍मेलन में बैठने का आग्रह किया और अपने विचार उन्‍हे बताने तथा उनके विचार जानने की विनयपूर्ण आमंत्रण दिया । मैं हालांकि काफी थकावट महसूस कर रहा था लेकिन ग्रामीण दोस्‍तों (भई मैं स्‍वयं भी ग्रामीण परिवेश का हूँ मेरा जन्‍म चम्‍बल के गॉंव में हुआ, वही पला बढ़ा और थोड़ी बहुत पढ़ाई लिखाई भी गॉंव में की, गाय भैंस चराने से लेकर, हल जोतने और सभी किसानी कार्यों का मुझे लम्‍बा मैंदानी अनुभव है ये दीगर बात है कि बाद में उच्‍च स्‍तर तथा प्रायमरी माध्‍यमिक और अन्‍य शिक्षा दीक्षा ग्‍वालियर, भिण्‍ड और भिलाई दुर्ग, मुरैना आदि जगहों पर हुयी ) पर मेरे गॉंव का नाता अभी तक कायम है, मेरी पैतृक जमीन जायदाद खेती बाड़ी अभी कायम है सो गॉंव से नाता भी बदस्‍तूर कायम है तथा पुरानी रजवाड़ी, फिर जागीरदारी, जमीन्‍दारी भी रही है सो सारे रिश्‍ते अभी तक मुकम्‍मल कायम हैं)

अब अगर इन सब ऐतिहासिक बातों के कायम रहते तोमर राजपूत इस देश के अभिन्‍न अंग होकर न्‍यायप्रिय, क्रोधवान एवं मर मिटने की कूबत से संपन्‍न होकर अन्‍याय व अत्‍याचार के खिलाफ आवाज बुलन्‍द करने में सबसे आगे हैं और बगावत कर बागी बनते हैं तो इसमें न तो तोमरों का दोष है और न मेरा, यह इस वंश का स्‍वाभाविक लक्षण है, वंशगत तेज है, वाणी में ओजस्विता वंशगत है तो अपनी ऑंख के सामने अत्‍याचार देख कर ऑंखे बन्‍द करना तो किसी भी राजपूत के स्‍वभाव में नहीं होता किन्‍तु तोमरों को यह गुण विशिष्‍ट व प्रचुर रूप से मिला है, यही एक वजह है कि चम्‍बल में बगावत होती आयी है और बागी पैदा होते आये हैं , जब तलक अत्‍याचार, अन्‍याय और सरकार का अनसुनापन जारी रहेगा तब तक चम्‍बल में बागी पैदा होते रहेंगे इसमें कोई संशय नहीं है ।

अब अगर

सच कहना अगर बगावत है, तो समझो हम भी बागी है

यदा यदा हि धर्मस्‍य, तदात्‍मानं सृजाम्‍यहम् परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्‍कृताम, धर्म संस्‍थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।

(इसके अलावा देखें श्‍लोक संख्‍या 31 अध्‍याय 2, 38 अध्‍याय 2 तथा 43 अध्‍याय 18 श्रीमद्भगवद्गीता)  

गॉंव के किसानों के बीच रात को जब चौपाल पर चौगोला मण्‍डली जमी तो कई किस्‍से भोले भाले ग्रामीणों ने अपने ग्रामीण अंदाज में बता डाले मुझे कई चीजें जानकर हैरत हुयी और विचार करने पर मजबूर हो गया मसलन सुनिये उस रात की बातों के चन्‍द अंश, ऊपर लिखी शेर और मुक्‍तक नामक कविता भी मुझे एक ग्रामीण कवि ने सुनाई उनका नाम दिनकर सिंह तोमर था और वे सिंहोनयां के प्रतिष्ठित जमीन्‍दार परिवार (पूर्व सरपंच परिवार ) से ताल्‍लुक रखते हैं ।

'' काये आजकल्लि तिहाई सरकार का रहि है'' कछु फायदा तो दीख नाने रहो उल्‍टी मंहगाई बढि़ति जाय रही है''

दूसरे ने कहा कि सरकार का करेगी , चुनाव में खच्‍च करो है एक एक नेता कूं चुनाव लड़ायवे दो दो करोड़ रूपया पार्टीयन ने अपने अपने प्रत्‍याशीयन को दये हते, अब वा पैसा ए निकार रही है, शक्‍कर मंहगी, दार (दाल) मंहगी, साग (सब्‍जी) मंहगी जे सब पैसा वापस काढ़वे (निकालने) के इंतजाम हैं ।

वे फिर बोले तो ''काये तो जि सिबराजु काये ना कछ़ु कर रहो''

दूसरे ने कहा कर तो रहो है, बनियन की शक्‍कर पकरि लई, जब पकरी तब बातें पहले तऊ सस्‍ती हती बाने तब ते पकरी है तईं और जादा मंहगी करवाय दई । पकरीयई जईं के लईं हती ताते दाम और जादा बढि़ जाये और बनिया कछू कमाय लें, बनियन ने बऊये तो चन्‍दा दओ होगो सो कढ़वावेगो के नहीं । और फिर जा नरिन्‍दा कोऊं तों बनियन ने वोट दये हते सूनी है कि बनियन को भारी कर्रो चेला है, कमाई करवे वारे सिग कमाऊ पूत अधिकारी वाके चेला हैं, वाये जनता फनता ते कछु मतलब फतलब नानें , जब आवतु है तो नौटंकी सी करिकें चलो जातु है ।

बीच में एक और ग्रामीण टिप्‍पणी करता है कि हओ जोईं है सारो बातन ते करदे खुसी, मोंह (मुंह से) सो नहीं लगन दे भुसी (भूसा)

पहले वाले सज्‍जन फिर बोले पनहियन लायक है, सारे की जमान्‍त जप्‍त होगी, देखिये ये किस्‍सा उस जगह का है जो भाजपा के बरसों पुराने गढ़ रहे हैं और तोमर राजपूतों के दबदबे वाले ठीये हैं ।

चर्चा आगे बढ़ती है तब तक एक सज्‍जन हुक्‍का सुलगा लाते हैं, एक अन्‍य किसान बोलता है मार डारे सारेन ने, बिजली हति नानें , नहर आय नाने रही, खेत सूखि चले, अबकी में तो गेहूँ सरसो को कोऊ हिल्‍लो नानें । वो तो वोट ले कें दुबक के भजि गयो , अब गामन तन कों आवतु ऊ नानें । भई ते भजि जागो कभऊं कहेगो स्‍टेडियम बनवावेगो कभऊं कहेगो के अण्‍डरब्रिज बनवावेगो । जा मूसरसेटी ये जे पूछो के अम्‍बाह में ठौर कहॉं धरो है सो बनवावेगो स्‍टेडियम ।

दूसरा किसान तुरूप का पत्‍ता फेंकता है, बनवावेगो तिहाये हमाये खेत लेकें, बाने सिग ठाकुर नेता तो जिले ते खतम कर दये, कछू ठाकुर एनकाउण्‍टरनि में मरवाय डारे, अब बचे खुचेन के खेतन (खेतों को) लीलें (लीलना) चाहतु है ।

दूसरा किसान तड़ाक से बोलता है आवन देओ सारे ऐ घाट उड़ाय देंगे, आवेगो तो झईं अबकी औंधी सीधी दे तो डार लेओ सारें कों । और इतेक देओ के गैल भूल जाये ।

एक और नौजवान बीच में बोलता है जा सारे में तो दस दे और एक गिने ।

पर‍ि जे केन्‍द्र की सरकार का करि रई है जा सारे के झां तो छापो परनो चहीयें, एक वा मिसरा के झां जे सारे दोऊ बदमास हैं, एक तो पानी पी गयो पूरो फिर बिजली लील गयो, हमनि सुनी है कि इंजीनियर कालेज सोऊ चलाय रहो है, बड़ भारी कमाई करी है, दोऊ जने अरबन रूपय्यन के मालिक हैं गये हैं । छापो डरवाय दे केन्‍द्र वारें सोईं नप जागें दोऊ फीता लगाय के , के लला ला बताया कितेक कितेक कमाये हैं तैंने सारेन के लाकर होगें, करोड़न के माल कढ़ेंगे ।

दूसरा किसान बोलता है अये जिनके तो बिदेसन में खाते होंगे । अफसर बन गये जिनके राज में, चपरासीन के बंगला तन गये मोबाइल ने बतराउठे, कार ले ले कें चलाय रहे हैं ।

अब एकदम सब मुझसे मुखातिब होते हैं काय रे तू कैसो चुप्‍प बैठो है, कछू बोल्‍तु काये ना ।

मैंने कहा अब तुमई सिग कछु कहिवे चिपटे हो अब हम का कहें । हम तो जे कहि रहे हैं चुप्‍प रहू, पुरानी कहावत है कि ''रहिमन चुप है बैठिये देखि दिनन को फेर'' सो भईया हम तो चुप्‍प है , पर तुम जे सब बातें कहि रहे हो जे सब गैर कानूनी हैं अगर काऊये पतो लग गईं तो सिगते पहले तिहाओ एनकाउण्‍टर करवाय डारेगो ।

एक किसान गुस्‍से में खौल जाता है, अये तू तो कहेगो ही, तैंनेंई वाये वोट देवेके लईं कही हती सो अब रोय रहे हैं, दो दिना बाद बिजली आय रही है दो घण्‍टा के काजें हमनि पूछि हमनि पे का बीत रही हैं । जा जाय के कहि दीयो वाते हमाओ करवाय दे एनकाउण्‍टर, कटवाय दे मूसर । जाते तो रूस्‍तम तऊ ठीक हतो, भलेऊं गूजर हतो, सुनि तऊ लेतो भलेऊं कछू करतु नहीं हतो । जा तू हमनि फांसी चढ़वाय दीयो । बई बरेह के पीपरा पे ।

मैंने बात संभालते हुये कहा कि भई जे सब बातें गुस्‍से से नहीं ठण्‍डे दिमाग से भी तो हल हो सकतीं हैं, अब जो बिगड़ गया सो बिगड़ गया, आगे ठीक कर लेओ, आगें सो वाय वोट मत दीओ ।

दूसरा किसान और ज्‍यादा आक्राशित हो जाता है , का वोट मत दीओ बुआ वो कलेक्‍टर भ्रष्‍ट बैठो है, काऊये वोट दे अईयो पेटी खुलेगी तो बई के ई वोट कढ़वावेगो । सारे ने ठाकुरनि की तो सिगई सीट रिजरब कर दईं हैं, लेउ सारे हो कैसे लरोगे चुनाव । मैंने कहा कि भई अभी तो नगरपालिका के आरक्षण की प्रक्रिया हुयी है, ग्राम पंचायत की तो बाद में होगी, अभी कैसे कह सकते हो कि ठाकुरों की सीटें रिजर्व कर दी जायेंगी........

लगे हाथ मेरी बात पूरी होने से पहले ही किसान उखड़ता हुआ बोला कि अये लला हमनि सिग पतो है हमऊं नेकाध राजनीति जान्त हैं । नगरपालिका में तहॉं हरिजन हतई नाने ते सीटें हरिजन कर दई हैं , सारे ठाकुर बामन तो अब पारसद अध्‍यक्ष कितऊं बनई नानें सकतई, वो अपईं गैल के काटें झार रहो है । वाने सिग ठाकुर बामननि की गैल बन्‍द कर दईं हैं और देखि लीयो हमऊं चैलेन्‍ज ते कहि रहे हैं, सारो पंचायतिन में ऊ जिई करेगो । सिग ठाकुर बामननि ए घर बैठारेगो । और तऊ एकाध कितऊं ते लरेगो तो सरकार बाई की है लबरई ते मशीनन में तो और पेटीन में तो बई के वोट कढ़ेंगे ।

मैंने आगे बहस उचित नहीं समझी और नहंद आने का बहाना करके खिसक कर अपने पलंग पर जा लेटा ।

लेकिन ग्रामीणों की उन बातों ने मुझे झिझोड़ कर रख दिया । उनकी समझ और तर्कों के आगे मैं खुद को काफी बौना महसूस कर रहा था । 

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

किस्‍सा ए मुरैना: पत्रकार बनना है तो लाओ दो हजार, सरकार उवाच ......

किस्‍सा ए मुरैना: पत्रकार बनना है तो लाओ दो हजार, सरकार उवाच ......

मुरैना डायरी (वर्ष 1999 से प्रकाशित)

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

(लेखक अनेक पुरूस्‍कारों व सम्‍मानों से सम्‍मानित प्रख्‍यात समाजसेवी, साहित्‍यकार, पत्रकार एवं क्रिमिनल लॉयर व इन्‍वेस्‍टीगेटर है )

आज फिर एक बार मुरैना डायरी का अंक आपके सामने है, एक लम्‍बा अर्सा हुआ यह स्‍तम्‍भ प्रकाशित नहीं हो पा रहा था । पर थोड़ी रूकावट के बाद सही फिर आपके सामने आया ।

मोगाम्‍बो खुश हुआ

हमारे मुरैना में एक मोगाम्‍बो हैं, काफी फेमस हैं और एक अर्सा पहले अखबारों की हाकरी किया करते थे आजकल बड़े साहब के मुँह लगे है, मुँह क्‍या लगे हैं यूं कहिये कि छाती पान लगा है । अब लोग उन्‍हें साहब का दलाल कहते हैं तो भई ये तो गलत बात है , सरासर गलत । अकेले बेचारे मोगाम्‍बो को ही काहे बदनाम करते फिरते हो , साहब के छाती पान तो शहर में, जिले में गली गली में आवारा कुत्‍तों के मानिन्‍द ब्‍याये पड़े हैं ।

मोगाम्‍बो जो भी हो बड़ा दयालु है, काम करवा ही देता है , पक्‍के में करवा देता है अब थोड़ा बहुत तो हर जगह ही खर्च होता है, कुछ साहब पर कुछ साहब के बीवी बच्‍चों पर , कुछ खुद पर कुछ खुद के बीवी बच्‍चों पर अब सब एडजस्‍ट तो करना ही पड़ेगा न । मोगाम्‍बो चाहे जिसे पत्रकार बना देता है चाहे जिसे पत्रकार से बेलदार बना देता है । एक किस्‍सा गौर फरमाईये ।  

एक बेलदार एक मकान पर बेलदारी कर रहा था, मोगाम्‍बो भाई वहॉं घूमते घामते पहुँच गये, मोगाम्‍बो भाई ने पहली नजर में ही भॉंप लिया कि शिकार मुकम्‍मल और वजनदार है । मोगाम्‍बो भाई बेलदार से बोले काहे कित्‍ता कमा लेते हो रोजाना, बेलदार बोला कि साब हमारी रेट सबको मालुम है लेकिन काम मिलता रहे इसकी कोई गारण्‍टी नहीं, जब काम नहीं मिलता तब दिक्‍कत हो जाती है ।

मोगाम्‍बो भाई बोले कि चल बीड़ी पिला , बेलदार ने बीड़ी सुलगाई कश के साथ बाते आगे बढ़ाते मोगाम्‍बो बोला कि बोल कुछ इन्‍तजाम करवाऊं क्‍या, बेलदार ने गदगद स्‍वर में कहा कि का साब का करवाओगे ।

मोगाम्‍बो भाई बोला कि ऐसा कर कब तक ये मजदूरी फजदूरी करता फिरेगा, नरेगा की रोजगार गारण्‍टी में फंस गया तो निबट जायेगा, कम रेट और कमीशन कटा के मजदूरी के नाम पर ढेढ़स पावेगा, और मजदूरी नहीं करेगा तो गरीबी रेखा से भी नाम कटा बैठेगा, तू ऐसा कर कि पत्रकार बन जा ।

मोगाम्‍बो की बात सुन कर बेलदार चौंका और बोला कि साहब जे का होता है । मोगाम्‍बो ने उसे ईगर फुल देखा तो बोला कि अबे तेरे को नहीं पता कि जे का होता है, साला पत्रकार तो बहुत बड़ी तोप होता है , हरेक में डण्‍डा डाल देता है ।

बेलदार उत्‍सुक होता हुआ बोला कि बनवाय देओ साब, कैसें बनेंगे, का तरीका है ।

मोगाम्‍बो बोला कि अरे कुछ नहीं दो हजार जमा कर सो लोकल नीला पर्चा, हरा पर्चा , हवाबाण टाइम्‍स किसी से भी लिखवा लेंगें कि तू उनका पत्रकार है , फिर दो हजार और लगेंगे सो अधिमान्‍यता के कागज बनवा दूंगा, तीन हजार उसके बाद दे दीओ तो अधिमान्‍यता दिलवा दूंगा बस फिर तो तेरे जलवे ही जलवे हैं ।

बेलदार जो अब तक टांग पसार कर जमीन पर बैठा था , फुर्ती से उकड़ू होता हुआ बोला पत्रकार बन के अधिमान्‍यता मिले पर का फायदा होगा ।

मोगाम्‍बो ने जलती आग में थोड़ा घी और उड़ेला बोला कि बेटा साल में 20 हजार तो आर्थिक सहायता, बस और रेल का कंसेशन पास, घर वालों की दवा दारू और इलाज सब मुफ्त, इसके संग हर वी.आई.पी. के कार्यक्रम में अगाड़ी वाली कुर्सी पक्‍की, नहीं तो वैसे साला भीड़ में धक्‍के खाता फिरेगा और मंत्री, नेता, अफसर के दरसन भी नहीं पावेगा । पुलिस भी सैल्‍यूट मारे तो बात करना ।

बेलदार की ऑखें चौड़ी हो गयीं और हैरत से बोला ऐं इत्‍ते फायदा बाप रे बाप मैं अभी तक कहॉं गढ्ढे में पड़ा पशुयुग में जी रहा था , प्रभु प्रभु कहॉं थे आप अभी तक , धन्‍य हैं आप प्रभु धन्‍य हैं आप । मोगाम्‍बो बोला तो फिर निकाल फटाफट दो हजार और खुलवा देता हूँ तेरा पत्रकारिता का अकाउंट ।

बेचारे बेलदार ने अपने पड़ौसियों से कर्जा लिया और मोगाम्‍बो को दो हजार थमा कर पत्रकार बनने के सपने में बेलदारी छोड़ कर आजकल घर आराम फरमा रहा है ।

बेलदार को पत्रकार और पत्रकार को बेलदार बना देने के हुनर में माहिर मोगाम्‍बो का कारनामा हमारे सामने तब आया जब म.प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर के मुरैना आगमन को मीडिया ने प्रकाशित करने से बहिष्‍कार कर दिया और मीडिया के कुछ मोगाम्‍बो के पालतूओं को छोड़ किसी ने कार्यक्रम को तवज्‍जुह नहीं दी, भाई हम भी बहिष्‍कार कर आये थे (बढि़या श्‍लोक और पुराण सुना आये थे, अफसर कुर्सी टेबलों के पीछे दुबकते फिर रहे थे)   इसलिये ग्‍वालियर टाइम्‍स ने बाबूलाल गौर का समाचार प्रकाशित नहीं किया था, हमें काफी ई मेल पाठकों ने इस सम्‍बन्‍ध में भेजे थे आशा है उन्‍हें जवाब मिल गया होगा । बाबूलाल गौर हमारे अतिशय प्रिय और हमारी नजर में अर्जुन सिंह के पश्‍चात सर्वाधिक सफल मंत्री व मुख्‍यमंत्री रहे हैं , उनका म.प्र. का मुख्‍यमंत्रित्‍व काल स्‍वर्णिम रहा है, हम गौर साहब से भी इस सम्‍बन्‍ध में क्षमा मांगना चाहेंगें कि हमारे प्रिय व आदरणीय होते हुये भी हम भरे दिल से न चाहकर भी मोगाम्‍बो के कारण अपने प्रिय मंत्री का समाचार प्रकाशित करने का बहिष्‍कार करना पड़ा । 

जेंगरे और पिल्‍ले

मुरैना में जेंगरा और पिल्‍ला बड़े लोकप्रिय हैं । दरअसल जेंगरा गाय के छोटे मगर कमजोर बछड़े को कहते हैं और पिल्‍ला कुत्‍ते के बच्‍चे को कहते हैं । लेकिन हमारी डायरी के इस भाग में जिन जेंगरो और पिल्‍लों की बात हम यहॉं कर रहे हैं वे न तो गाय के बछेरे हैं, और न कुत्‍ते के पिल्‍ले बल्कि जाने माने मुरैना के नामवर इंसानात हैं और कभी बाकायदा आदमी थे मगर कहते हैं न कि वक्‍त ने गालिब कुत्‍ता कर दिया , सो कुछ ऐसी ही कहानी शहर के मशहूर इन पालतू और दलाल जेंगरों और पिल्‍लों की है ।

 

...............क्रमश: अगले अंक में जारी 

रविवार, 21 जून 2009

चमचा में गुन बहुत हैं सदा राखिये संग, कांग्रेस रोती फिरे सामन्ती के संग

चमचा में गुन बहुत हैं सदा राखिये संग, कांग्रेस रोती फिरे सामन्ती के संग

राजनीति से लोकनीति, राजनेता से लोकनेता बनाम राजतंत्र से लोकतंत्र- कांग्रेस की पहल बनाम चिथड़ों से इज्जत ढांपने की कवायद

नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

अभी हाल ही में एक खबर पढ़ने में आयी कि कांग्रेस ने राजे रजवाड़े या सामन्ती प्रतीक नाम उल्लेखों के उपयोग पर रोक लगा दी है !

खबर ठीक है, और लगता है कि कांग्रेस देश में आधे अधूरे लोकतंत्र को या राजतंत्र के बदनुमा दागों को साफ कर साफ सुथरा परिपक्व लोकतंत्र लाना चाह रही है ! साधारण बुध्दि के हर व्यक्ति को यही आभास होगा ! मैंने इस पर चिन्तन किया ! मुझे इसलिये भी विचार करना पड़ा कि मेरा खुद का सम्बन्ध भी रजवाड़े से है और यह अलग बात है कि जो असल रजवाड़े या राजपूत हैं वे आमतौर पर किसी भी सामन्ती नामोल्लेख को नहीं करते ! असल राजा और राजवंश अधिकतर न तो आमतौर पर कुंवर, राजा या महाराजा या अन्य ऐसा कुछ लिखते हैं बल्कि सीधे सपाट अपना नाम लिखते हैं ! भारत में राजपूतों व रजवाड़ों में अपने उपनाम को साथ लिखने का सामान्य तौर पर रिवाज है जैसे मैं तोमर हूँ और तोमर राजवंश का प्रतीक उपनाम तोमर जो कि मुझे जन्म से ही मिला हुआ है अब भई इसे मैं कैसे छोड़ सकता हूँ !

अब तोमर राजवंश ने दिल्ली बसाई, महाभारत जैसा महान युध्द लड़ा, इन्द्रप्रस्थ निर्मित किया, महाराजा अनंगपाल सिंह ने दिल्ली में लालकोट बनवाया, लोहे की कील गड़वाई (लौह स्तम्भ) या सूरजकुण्ड हरियाणा में ठुकवा दिया या ऐसाह में गढ़ी बसाई या महाराज देववरम या वीरमदेव ने ग्वालियर पर तोमर राज्य स्थापना की तो इसमें मेरा क्या कसूर है ! अगर पुरखों को पता होता कि सन 2009 में जाकर उनके वंशजों को उनके कुकर्मों का दण्ड भोगना पड़ेगा और अपने होने की पहचान खत्म करना पड़ेगी और तोमर होना या कहलाना एक राजनीतिक दल विशेष के लिये अयोग्यता हो जायेगी या भारतीय जीवनतंत्र में उन्हें बहिष्कृत होना पड़ेगा तो वे काहे को ससुरी दिल्ली बसाते काहे को राज्य संचालन करते काहे को महाभारत लड़ते और काहे को इस भारत की सीमाये समूची एशिया तक फैलाते ! काहे को भगवान श्रीकृष्ण के वसुदैव कुटुम्बकम सिध्दान्त पर अमल कर अमनो चैन का शासन करते !

अब कुछ लग रहा है कि पुरखों ने दिल्ली बसा कर ही गलत कर दिया न दिल्ली होती न देश में टेंशन होता ! दिल्ली की वजह से पूरे देश में टेंशन है ! खैर चलो अच्छा हुआ कि हम किसी सामन्ती लफ्ज का इस्तेमाल नहीं करते, चलो अच्छा है कि हम कांग्रेस में नहीं है, अब तो भविष्य में भी नहीं जाना है, नही ंतो पता चलेगा कि चौबे जी छब्बे बनने गये थे और दुबे बन कर लौट आये यानि रही बची नाक और दुम कटा कर नकटा और दुमकटा भई हमें तो नहीं बनना ! ना बाबा ना ! कतई ना !

खैर यह कोई नई बात नहीं कांग्रेस ऐसे औंधे सीधे काम पहले से ही करती आयी है उसके लिये भगवान श्री राम एक काल्पनिक व्यक्ति थे, महाभारत एक काल्पनिक युध्द था ! होगा भई होगा कांग्रेस के लिये होगा, हमारे तो पुरखों ने लड़ा है सो भईया हम तो मानेंगे, मानेंगे मानेंगे !

चलो हमारी बात हम तक ठीक है वह तो खैर है कि भारत के कुछ राजपूत अपना उपनाम नहीं लिखते जैसे उ.प्र. के कुछ हिस्सों में कई राजपूत महज सिंह लिखते हैं यही हाल कुछ और प्रदेशों में भी है !

मेरे ख्याल से टाइटलिंग अक्सर वे करते हैं जो जनाना चाहते हैं और जताना चाहते हैं कि वे किसी राजघराने से हैं या राजपूत हैं या दो नंबर के राजपूत हैं (दो नंबर के राजपूत- यह राजपूतों का कोडवर्ड है भई इसका अर्थ है गुलाम राजपूत या मीठा पानी या जिनके खानदान में गड़बड़ आ गयी है) या नकली या फर्जी राजपूत जिन्हें बताना पड़ता है कि वे राजपूत हैं या वे कहीं के राजा रहे हैं ! कांग्रेस में कुछ ज्‍यादा ही नकली और फर्जी राजे रजवाड़े हैं जिनका काम स्‍वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का साथ देना और उनकी चमचागिरी व जी हुजूरी करना ही था (हम नहीं कहते भारत का इतिहास कहता है) इन लोगों ने भारतीय स्‍वतंत्रता सेनानीयों और क्रान्तिकारीयों की अंग्रेजों के साथ मिलकर या उनका साथ देकर हत्‍यायें कीं और देश को आजाद होने में तकरीबन 100 साल (1857 से 1947 तक) लगवा दिये 1 देश के ये गद्दार आज कांग्रेस की ही शान नहीं बल्कि भारत के महान व माननीय हैं , इसीलिये कांग्रेस कहती है कि आजादी की लड़ाई से उसका रिश्‍ता रहा है, हॉं सत्‍य है आजादी की लड़ाई के गद्दारों की फौज उसके पास है । अभी हाल ही में महारानी लक्ष्‍मीबाई का बलिदान दिवस 18 जून को गुजरा, आजादी की लड़ाई से रिश्‍ता बताने वाली कांग्रेस के किसी भी सिपाही को शहादत साम्राज्ञी का नाम तक स्‍मरण करने की सुध नहीं आयी , आखिर आती भी क्‍यों महारानी लक्ष्‍मीबाई का कोई वंशज कांग्रेस में नहीं है , हॉं महारानी लक्ष्‍मीबाई की शहादत जिसके कारण हुयी वह गद्दार जरूर कांग्रेस में है और माननीय एवं कांग्रेस के कर्णधार हैं । आप नहीं जानते तो बता देते हैं कि एक फर्जी रजवाड़ा ऐसा भी है जिसे महारानी लक्ष्‍मीबाई के शहादत स्‍थल पर जाने की इजाजत नहीं है । और कांग्रेस यानि आजादी की लड़ाई वाली कांग्रेस का सच्‍चा सिपाही है । मालुम है क्‍यों .......नहीं तो पता लगा लीजिये । शायद इसीलिये कांग्रेस को भारत के असल इतिहास से चिढ़ है और उसे बार बार बदलने और तोड़ने मोड़ने मरोड़ने की नौटंकी रचती रहती है । उसका वश चले तो भारत का इतिहास पूरी तरह खत्‍म ही कर डाले, यहॉं की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परम्‍परायें पूरी तरह नेस्‍तनाबूद कर डाले । भगवान राम, भगवान श्री कृष्‍ण, राजा हरिश्‍चन्‍द्र, महाराणा प्रताप सब के सब काल्‍पनिक मिथक हैं 1      

हालांकि आज न राजा रहे न रजवाड़े मगर राजा रजवाड़े और राजपूत के नाम पर कई लोग ऐश फरमा रहे हैं, आज तक राज कर रहे हैं ! मौज मार रहे हैं ! अधिकांशत: इनमें फर्जी या नकली राजा हैं ! जिनका राजवंश या कुल गोत्र खानदान या रजवाई से कोई ताल्लुक नहीं रहा ! मगर आज तो जलजला ऐसे नकली राजाओं का ही है !

कुछ उपाधियां या नाम प्रतीक सामन्ती नहीं होते

अब जब बात छिड़ी है तो लगे हाथ बता दें कि कुंवर, राज, श्रीमंत आदि जैसे पूर्व नाम सम्बोधन सामन्ती नहीं हैं ! भारत के हिन्दू समाज में चाहे वह जाति से बनिया हो या चमार हो या भंगी हो या गूजर हो या ब्राह्मण हो या राजपूत हो अपने दामाद या बिटिया के पति को हमेशा ही कुंवर साहब ही कह कर संबोधित करते हैं यहॉ तक कि पूरा गॉंव ही किसी भी जाति के दामाद को कुंवर साहब ही कह कर बुलाता है या गाँव मजरे में बाहर के मेहमान को कुंवर साहब ही कहा जाता है यह एक सम्मान का श्रेष्ठ आदर देने का एक प्रतीक उल्लेख है न कि सामन्ती प्रतीक ! पता नहीं किस बेवकूफ ने कुंवर जैसे नित्य प्रयोगी शब्द को सामन्ती बता दिया ! पहले तो उस बेवकूफ को ढंग से हिन्दी सीखनी चाहिये फिर भारतीय हिन्दू समाज, संस्कार व सभ्यता को जानना चाहिये !

मेरे गाँव में एक युवक है जिसका नाम है कुमरराज या अधिक शुध्द हिन्दी में कहें तो कुंवर राज ! बेचारा गरीब किसान है सबेरे खा ले तो शाम का हिल्ला नहीं ! उसकी तो ऐसी तैसी हो गयी ! इसे तो गारण्टी से जिन्दगी में कांग्रेस में एण्ट्री नहीं मिलेगी ! भारत के गाँवों में हजारों लाखों कुअर सिंह, कुंवर सिंह, कुवरराज भरे पड़े हैं कांग्रेस के लिये ये अछूत हो गये !

श्रीमंत शब्द भी सामन्ती नहीं है भाई ! या तो आप सही हिन्दी नहीं जानते या फिर हिन्दू समाज के बारे में अ आ इ ई नहीं जानते ! हिन्दूओं में किसी को भी श्री लगा कर सम्बोधित करना बहुत पुराना रिवाज है और श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी ! श्री और मन्त को मिलाने पर बनता है श्रीमन्त अर्थात लक्ष्मीमन्त या लक्ष्मीवन्त या लक्ष्मीवान यानि अति धनाढय व्यक्ति यानि श्रीमंत बोले तो नगरसेठ !

श्रीमंत शब्द राजा या रजवाड़े का प्रतीक नहीं है बल्कि अधिक पैसे वाले का द्योतक है ! श्रीमंत शब्द ग्वालियर के सिंधिया परिवार के लिये प्रयोग किया जाता रहा है ! और जिसका साफ अर्थ है कि अति धनाढय होने के कारण इस परिवार को श्रीमंत कह कर पुकारा गया न कि राजा या सामन्ती कारणों से !   

एक कहानी - नाम में क्या धरा है

एक बहुत पुरानी कहानी है, हिन्दी में है और लम्बे समय तक स्कूलों में पढ़ाई जाती रही है जिसका शीर्षक है - नाम में क्या धरा है ! कांग्रेस को इसे पढ़ना चाहिये !

साथ ही यह भी पढ़ना चाहिये -

जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान !

मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान !!

वैसे मेरे विचार में कांग्रेस शायद कुछ और करना चाहती होगी लेकिन भटक गयी और कर कुछ और बैठी ! कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या सामन्ती प्रतीक या सामन्तीक नामोल्लेख नहीं बल्कि उसके नेताओं का सामन्ती रवैया एवं आचरण है ! उसके पास नेता कम और चमचे ज्यादा हैं ! उसके जो चन्द नेता हैं उन्हें रूआब जमाने और चमचे पालने का खासा शौक है ! कांग्रेस में टिकिट तक किसी न किसी की चमचागिरी से ही मिलता है ! और उसका नेता जो कि अपने खास व अंधे चमचे को टिकिट दिलाता है ! पॉच साल तक उसके चुन लिये जाने के बाद भी उसे नेता नहीं बनने देता बल्कि चमचा बनाये रखता है और अपने दरवाजे पर ढोक बजवाता है !

ग्वालियर चम्बल में आप जैसे ही कांग्रेस टिकिटों की बात करते हैं तो हर चुनाव में पत्रकार पहले ही अखबारों में संभावित नाम उछाल देते हैं और कांग्रेस के उम्मीदवार बता देते हैं ! क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा कैसे होता है ! ग्वालियर चम्बल के पत्रकार इसका अधिक सटीक उत्तर दे सकते हैं, पत्रकार अपनी पैमायश का फीता योग्यता या निष्ठा या पात्रता के आधार पर नहीं बल्कि चमचागिरी के आधार पर तय करते हैं और यह जान लेना बड़ा आसान है कि कौन कितना बड़ा चमचा है ! जो जितना बड़ा चमचा उसकी दावेदारी उतनी ही अधिक मजबूत !

जो चमचा है वह नेता कैसे हो सकता है , चमचा तो सदा चमचा ही रहेगा वह नेता कभी नहीं बन सकता, इसलिये अभी तक ग्वालियर चम्बल में कांग्रेस नेता पैदा नहीं कर सकी ! चमचों को नेता बनाना एक असंभव काम है  ! जो कांग्रेस से बाहर रहे वे नेता बन गये ! हाल के विधानसभा और लोकसभा चुनाव परिणाम इसका स्पष्ट जीवन्त उदाहरण हैं !

कांग्रेस को सही मायने में लोकतंत्र लाना है तो सामन्ती प्रतीक या नामोल्लेखों के पचड़े से दूर अपने नेताओं के सामन्ती आचरण व व्यवहार से छुटकारा पाना होगा, चमचे पालने वाले नेताओं को हतोत्साहित करना होगा ! चमचे हटेंगे तो नेता अपने आप आ जायेंगे ! नेता किसी का चमचा नहीं हो सकता, नेता चाहिये तो चमचे खदेड़िये ! नेताओं के सामन्ती आचरण व व्यवहार को सुधारिये ! फिर आपको जरूरत ही नहीं पड़ेगी तथाकथित नाम प्रतीक उल्लेखों को रोकने की ! चमचे ढोक बजाना बन्द कर देंगें तो कांग्रेस का खोया रूतबा लौट आयेगा ! वरना गालिब दिल बहलाने को खयाल अच्छा है !

चमचा में गुन बहुत हैं सदा राखिये संग , सदा राखिये संग, काम बहुत ही आवें !

गधा होंय बलवान प्रभु भगवान बचावे, डाके डाले पापी जम के कतल करावे !!

चरणन चाटे धूल, चमचा महान बतावे, खुद ही जावे भूल मगर सबन को गैल बतावे !!

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

व्‍यंग्‍य - चुनाव में उम्मीदवारों के लिए ऐसा हो फॉर्म

व्‍यंग्‍य - चुनाव में उम्मीदवारों के लिए ऐसा हो फॉर्म
6 Apr 2009, 1832 hrs IST,
नवभारतटाइम्स.कॉम  

 

दिल्‍ली से प्रकाशित नवभारत टाइम्‍स ने एक मजेदार व जोरदार चीज छापी है, हम इसे यहॉं साभार उद्धृत कर रहे हैं । हालांकि हमारी समझ से इसमें दो एक कालम और जोड़ने चाहिये थे मसलन चमचा गिरी का अनुभव और हॉं जी हॉं लगातर बोल पाने के क्षमता, दल बदलने का आवृत्ति काल वगैरह । नीचे यह यथावत साभार उद्धृत है -  

 

तमाम विरोधों के बावजूद इस बार भी आपराधिक बैकग्राउंड वाले कई उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। पार्टियों ने भी बस वोट बटोरने के लिए आंख मूंदकर ऐसे लोगों को टिकिट थमा दिए हैं। अब जब चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों की भरमार हो तो, उनके लिए फॉर्म भी कुछ अलहदा होना चाहिए ! हमारे एक पाठक ने लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए एक ऐसा ही फॉर्म बना डाला। जरा गौर फरमाइए इस फॉर्म पर...

 

लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए फॉर्म

1. उम्मीदवार का नाम

2. वर्तमान पता

a. जेल का नाम

b. कोठरी नंबर

3. राजनीतिक पार्टी (पिछली पांच पार्टियों का नाम लिखें)

4. लिंग

a. पुरुष

b. महिला

c. इनमें से कोई नहीं

5. राष्ट्रीयता

a. इटैलियन

b. भारतीय

6. पिछली पार्टी छोड़ने का कारण (एक या उससे ज्यादा ऑप्शन चुन सकते हैं)

a. दलबदल किया

b. निकाले गए

c. मुझ खरीद लिया

d. इनमें से कोई नहीं

e. उपरोक्त सभी

7. चुनाव लड़ने का कारण (एक या उससे ज्यादा ऑप्शन चुन सकते हैं)

a. पैसा कमाने के लिए

b. कोर्ट केस से बचने के लिए

c. ताकत के बेजा इस्तेमाल के लिए

d. जनता की सेवा के लिए

e. मुझे पता नहीं

* यदि आपने चौथा ऑप्शन चुना है तो सरकार से मान्यता प्राप्त मनोचिकित्सक से अपनी मानसिक स्थिति सामान्य होने का प्रमाणपत्र लगाएं

8. आपको जनसेवा का कितना तजुर्बा ह ?

a. 1-2 साल

b. 2-6 साल

c. 6-15 साल

d. 15 साल से ज्यादा

9. आपके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का ब्यौरा दें (इसका जवाब लिखने के लिए आप जितने चाहें उतने पन्ने अलग से लगा सकते हैं)

10. आपने जेल में कितने साल बिताए है ? ( सवाल नं. 8 से यह अलग है)

a. 1-2 साल

b. 2-6 साल

c. 6-15 साल

d. 15 साल से ज्यादा

10. क्या आप किसी वित्तीय घोटाले में शामिल है ?

a. क्यों नहीं

b. बेशक

c. जी हां

d. मैं इससे इनकार करता हूं

e. इसमें विदेशी साजिश का हाथ है

11. भ्रष्टाचार से आपकी सालाना आमदनी कितनी ह ?

a. 100-500 करोड़

b. 500-1000 करोड़

c. गिनना मुश्किल है

( ृपया हवाला आदि से विदेशी मुद्रा में हुई आमदनी को रुपये में लिखें)

13. क्या भारत के विकास के लिए आपके पास कोई योजना ह ?

a. नहीं

b. नहीं

c. नहीं

d. नहीं

14. अपनी उपलब्धि नीचे दिए गए ब्रैकिट में लिखें

(...........)

दस्तखत नहीं कर सकते तो यहां अंगूठा लगाएं