रविवार, 21 दिसंबर 2008

आओ चलो एक सेना बनायें, घर में दुबकें गाल फुलायें

हास्‍य/ व्‍यंग्‍य

       आओ चलो एक सेना बनायें, घर में दुबकें गाल फुलायें

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

काने सों कानो मत कहो, कानो जागो रूठ । धीरें धीरें पूछ लेउ तेरी कैसे गई है फूट ।।  

मेरे एक मित्र देश में बढ़ रहे आतंकवाद और भ्रष्‍टाचार से काफी दुखित होकर मेरे पास आये, साथ में दस बीस पठ्ठे भी उनके साथ बंदूको से लैस होकर सरपंचों की जेड प्‍लस के मानिन्‍द उनके संग थे । उनमें आक्रोश और व्‍यथा दोनों ही गहराई तक समाई थी । आकर मुझसे बोले दादा ये सब क्‍या है, बस बहुत हो गया अब अपन को सबको मिल कर एक सेना बनानी है अब अपन सब खुल कर देश के लिये लड़ेंगें ।

मेरे मित्र जाति से राजपूत थे और संग में उनके ठाकुर बाह्मणों के छोरों की लम्‍बी चौड़ी टोली थी । मुझे उनकी ख्‍वाहिश जान कर कोई खास  हैरत नहीं हुयी । 26 -27 नवम्‍बर के बाद से सारे देश से ज्‍यादा गुस्‍सा चम्‍बल में है, और चम्‍बलवासीयों का वश नहीं चल रहा वरना रातों रात आतंकिस्‍तान का नक्‍शा गायब कर भारत में विलय कर 13 अगस्‍त 1947 की स्थिति बहाल कर देते ।

मैंने उन्‍हें फुसलाते हुये पूछा कौनसी सेना बनाना चाहते हो महाराष्‍ट्र वाली शिव सेना या मनसे वाली सेना । वे उतावले होकर बोले हम लक्ष्‍मण सेना बनायेंगें आप गौर कर लो, अंक फंक ज्‍योतिष फ्योतिष से टटोल टटूल कर चेक कर लेना, फिट नहीं बैठे तो राम सेना या लव कुश सेना या फिर हनुमान सेना कर लेना । बस दादा फायनल कर लो और हमारा नेतृत्‍व कर डालों ।

मैं उनके तैश तेवरों को देख चुपके से बोला भाई सिकरवार वो सब तो ठीक है लेकिन ये सेना फेना बनाना ठीक नहीं है, ससुरी सेना बदनाम बहुत हो गयीं हैं, वे बोले कैसे बदनाम हो गयीं हैं हम समझे नहीं । मैंने कहा कि वो जो ठाकरे की शिव सेना है, उसने कभी सेना वाला काम किया नहीं बस लोगों को मारने पीटने, चन्‍दा और हफ्ता वसूली करके सिनेमा के पोस्‍टर उखाड़ता फूंकता रहा है लेकिन नाम अपनी टोली का शिव सेना धर दिया ऐसे ही मनसे की शिव सेना बोर्डिंग होर्डिंग बदलवाने और उत्‍तर भारत के भइया लोगों को खदेड़ने में लगी रही तब तक साला पछांह (पश्चिम) से आतंकिस्‍तानी कूद परै, बिनें देख सारे सेना वारे सैनिक घरनि में दुबक गये और अपने अपने प्रान बचावत फिरे । फिर बेई (वही) गैर मराठी काम आये सो सारे आंतंकिस्‍तानीयन की रेल सी बनाया दयी । सो तबसे ये सेना फेना फर्जी घोषित होय गयीं हैं । काम तो असली सेना ही आवे है । बो ही खाली करवाय पाये है मराठीयन के मठन को ।

सिकरवार साहब बोले तो ठीक है सेना फेना रहन देओ कछू और बनाय लेउ । पर एक संगठन तो होनो ही चाहियें । सो हाल लठ्ठ फोर दे ।

खैर ऊपर लिखी एक ऐसी सच्‍चाई है जो बमुश्किल दो चार रोज पुरानी है और लगभग ऐसे ही हालात अमूमन समूचे देश में हैं । आतंकवाद पर गुस्‍साये एक नेता जी मेरे पास आये बोले कि ये कसाब को मारा क्‍यों नहीं जा रहा अफजल को फांसी पे क्‍यों नहीं लटकाया जा रहा । ये हमारे देश को हो क्‍या गया है । फटाफट एक्‍शन क्‍यों नहीं ले रहा, आतंकिस्‍तान पर हमला क्‍यों नहीं कर रहा ।

मैं उनके ताबड़तोड़ सवालों से बौखला सा गया । मैं बोला भईया नेताजी यार अब ये तो वह बात हो गयी कि पूछ लो सूचना के अधिकार में क्‍यों नहीं विवाह हो रहा, क्‍यों नहीं बच्‍चा हो रहा, क्‍यों नहीं जुड़वां हो रहे । यार कसाब को मारना था तो पकड़ा ही क्‍यों था, उसी वक्‍त ठोक देते, तब काहे नहीं ठोका, यार नेता जी तुम उस बखत कहां थे जब कसाब ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहा था और सेना वाले बिलों  में दुबके लाशों की चादर ओढ़कर प्राण बचाते भाग रहे थे, तब तुम्‍हीं पकड़ लेते कसाब को और ठोक देते उसी वक्‍त । अब तुकाराम जी अपनी जान देकर कसाब यानि कसाई मियां को जैसे तैसे एक कीमती सबूत के तौर पर हमें दे गये हैं तो आप कह रहे हो कि इसे म्‍यूजियम में सजाने के बजाय ठोक क्‍यों नहीं रहे, इसका इण्‍टरनेशनल यूज क्‍यों हो रहा है इसे फांसी क्‍यों नहीं चढ़ा देते ।

भाई नेताजी पहले एक कसाब को खुद पकड़ों फिर खुद ठोको या उसे ठोकने की बात करो, कहने में भी सुघर लगोगे और जनता को बात भी रूचेगी, वरना ढपोरशंखी ही बजोगे । पकड़े पकड़ाये पर नर्राना आसान है, टेंटूयें से सुरों के ताल उलीचना सहज है पर पकड़ना कठिन है, यह तो स्‍वर्गीय शहीद तुकाराम भाई बता सकते हैं कि उन्‍होंने अपने प्राण देकर भी पहली बार भारत के हाथ एक ऐसा ब्रह्मास्‍त्र दे दिया कि अब भारत कसाब के बल पर न केवल दुनियां के सामने छाती तान कर खड़ा है बल्कि डिफैन्‍स से निकल कर अटैक की सिचुयेशन में आ गया है । और आप कह रहे हो कि ठोक दो कसाब को, साले नेता जी यार तुम हिन्‍दुस्‍तानी हो कि आतंकिस्‍तानी । आतंकिस्‍तान की मदद करने वाली हर बात तुम्‍हारे मुंह से बार बार नकल रही है ।

अरे जै ठोका ठाकी करनी थी तो नेताजी कंधार में क्‍या अम्‍मा मर गयी थी या नानी पानी भर रही थी । जो दामादों की तरह आंतंकिस्‍तानीयों को लगुन फलदान के संग छोड़ आये थे । बाप ने मारी मेंढ़की बेटा तीरन्‍दाज, क्‍या यार नेताजी देश के स्‍वतंत्रता संग्राम में तुम कहीं नहीं दीखे, अब पकी पकाई खाने को जीभ लपका मार रही है, कसाब के मामले में भी पकी पकाई के लिये लपक मार रहे हो । हम संसद में होते तो कहते शेम शेम शेम । राजनीति का कैसा गेम, शेम शेम शेम

आजाद देश पर हुकूमती के लिये फड़फड़ाना आसान है, और पकड़े पकड़ाये कसाब के लिये नसीहत देना भी आसान है मगर देश आजाद कैसे होता है ये तो वे ही बता सकेगें जिन्‍होंने अपने लहू से भारत की आजादी का इतिहास लिखा और अपनी पीड़ाओं के साये में सुखी जीवन के सपने त्‍याग कर फांसी और गोलीओं का चुम्‍बन लिया, कंधार जाकर दामादों की तरह खुख्‍वार आतंकिस्‍तानीयों को मय लगुन फलदान नहीं जाकर छोड़ा बल्कि उन्‍हीं के दरबार में उन्‍हीं की ऑंख में ऑंख डाल कर आँख निकाल लीं और टेंटुये में हाथ डालकर पेट में से आंतें खींच लीं ।

मुम्‍बई में आतंकिस्‍तानीयों को जो हश्र झेलना पड़ा, अगर यह अंजाम उन्‍हें कंधार में देखने को मिलता तो आज मुम्‍बई तक आने का हौसला नहीं उफान मारता, कंधार में हम आतंकिस्‍तानी भून देते तो मुम्‍बई में उने चरण कमल नहीं पड़ते । कंधार में हम कायर हुये तो मुम्‍बई तक आतंकिस्‍तान चढ़ बैठा । हमारी सेना (असली सेना) ने अपने वीर सैनिकों की जान देकर जिन खुंख्‍वार आतंकिस्‍तानीयों को पकड़ा था हमारे कायर और नाकारा लुगमहरे नेता उन्‍हें कंधार छोड़ कर आये, तब नेता जी काहे नहीं बोले कि ऐसा कर दो वैसा कर दो ।

मुम्‍बई में हमने 200 आदमी की कुर्बानी दी है तब एक जिन्‍दा आतंकिस्‍तानी हाथ आया है, अब इसके कर्म कुकर्म का हिसाब करने का वक्‍त आया है तो नेताजी बोलते हैं कि ठोक काहे नहीं देते । नेताजी ठोका ठोकी कंधार में करना । देश पे बोलने और देश को नसीहत देने या रास्‍ता दिखाने का हक तो कंधार में अपने दामादों के साथ ही छोड़ आये हो ।

भारत के इतिहास की वह शर्मनाक घटनायें जिन्‍हें काले पन्‍नों पर उकेरा जायेगा उसमें कंधार, संसद और मुम्‍बई मे हमला खास होंगें ।

ऑंख में पानी हो तो एक बार शर्मनाक कृत्‍य कर राजपूत आत्‍महत्‍या कर लेता है सारी कौम को नीचा दिखाने के बाद भी अगर वह यह कहे कि मौका पड़ा तो फिर ऐसा करूंगा, ऐसे साले को तो खड़े खड़े भून देना चाहिये । कसाब से ज्‍यादा खतरनाक तो ये नेता है जो, आंतकिस्‍तानीयों के हौसले बढ़ाने का स्‍टेटमेण्‍ट देकर उन्‍हें छपा छपाया इन्विटेशन कार्ड दे रहा है । और कह रहा है, यानि रास्‍ता दिखा रहा है कि आओ मेरे प्‍यारे दामादो और फिर कंधार चलो, मेरी सरकार आयेगी तो फिर तुम्‍हें लगुन फलदान देकर सकुशल विदा करूंगा । ये नेता अफीम वफीम खाता है क्‍या । पता नहीं भारत सरकार इसे गोली क्‍यों नहीं मरवा रही । कुत्‍ता पागल तो गोली और नेता पागल तो ...........।

हवालात में बन्‍द कसाब पे हवा और लात घुमाने वाले नेता जी अकल अड्डे पर रखो नहीं तो ठोक के कसाब के संग ही आतंकिस्‍तान भिजवा दिये जाओगे ।

अब नेता जी बोले कि चलो मान लिया कि हम कायर है पर यार ये अंतुले काहे को कह रहा है कि करकरे को हमने मारा, आतंकिस्‍तानीयों ने नहीं मारा । हम फिर गुस्‍साये, भरे भराये तो बैठे ही थे और अपनी जिह्वा रूपी तोप से फिर गोलों की बौछार शुरू की, और उल्‍टे नेता जी से ही पूछ लिया, यार ये घटना उस रात काहे घटी जब सबेरे पूरी स्‍टेट में वोट डलने थे, उसके बाद दो स्‍टेट में और वोट डलने थे, इस घटना का फायदा किसे मिलता । दूजी बात ये कि एटीएस वाले वे ही क्‍यों मरे जो प्रज्ञा भारती काण्‍ड देख रहे थे (चुन चुन कर ) ये संयोग नहीं हो सकता ( इसके बाद नेता जी के कुछ पालतू ब्‍लागर्स ने लिखा कि साला करकरे हरामी मारा गया, ये शहीद नहीं था एक आम आदमी था करकरे नाम का एक साधारण आदमी मारा गया, साले करकरे ने साधू संतों (प्रज्ञा भारती) से पंगा लिया और निबट गया । (इण्‍टरनेट पर लगभग आधा सैकड़ा ब्‍लाग छद्म नाम से बना कर एक ही मैटर कापी पेस्‍ट किया गया था )

तीजी बात ये कि यार नेता जी शुरू से ही तुम्‍हारे आचरण आतंकिस्‍तानी रहे हैं , अफजल को फांसी की डिमाण्‍ड कम से कम वो नहीं कर सकता जो आंतकवादीयों को दामाद की तरह कंधार में लगुन फलदान देकर आया हो । या जिन्‍ना की मजार पर माथा पटक कर रिरियाया हो ।

नेता जी हमने दो सौ निर्दोष मासूमों का रक्‍त देखा है, लहू खौल जाता है और ऐसे में तुम्‍हारा सुर तुम्‍हारी सूरत सब की सब काल बराबर नजर आती है । अच्‍छा हो कसाब का फैसला उन पर छोड़ो जिन्‍होंने उसे पकड़ा है । अपनी नेतिया टांय टांय बन्‍द रखो तो अच्‍छा है, बोलने का हक कंधार में जो छोड़ आये हो ।

शनिवार, 22 नवंबर 2008

चम्‍बल में निष्‍पक्ष चुनाव पर प्रश्‍न चिह्न, खुलेआम आचार संहिता की धज्जियां, मतदाताओं को लुभाने धमकाने से लेकर तंग परेशान करने का सिलसिला जारी

चम्‍बल में निष्‍पक्ष चुनाव पर प्रश्‍न चिह्न, खुलेआम आचार संहिता की धज्जियां, मतदाताओं को लुभाने धमकाने से लेकर तंग परेशान करने का सिलसिला जारी

नरेन्‍द्र सिंह तोमर 'आनन्‍द'

मुरैना 22 नवम्‍बर 08, म.प्र. में वर्तमान में हो रहे विधानसभा चुनावों की निष्‍पक्षिता पारदर्शिता और स्‍वतंत्रता को लेकर कई सवाल खड़े हो गये हैं ।

प्रत्‍याशी भले ही आपस में कुछ भी आरोप प्रत्‍यारोप कर रहे हों लेकिन जनता की नजर से समूची जनता इस यकीन और निश्चिन्‍तता से परे है, कि चम्‍बल घाटी में चुनाव निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र एवं पारदर्शी होंगें ।

सख्‍त आचरण संहिता के चलते और सख्‍त प्रशासनिक रवैये के कारण भले ही चम्‍बल के बाहुबली प्रत्‍याशी अपने शक्ति प्रदर्शन को अधिक खुलेआम नहीं कर पा रहे हों लेकिन चुनाव प्रचार के इस दूसरे चरण के आते आते चुनाव प्रचार की जगह प्रत्‍याशीयों की खुली गुण्‍डागर्दी, अराजकता और साम, दाम, दण्‍ड भेद की नीति ने ले ली है ।

बाहुबली व धनबली प्रत्‍याशी जहॉं खुलेआम गुण्‍डागर्दी पर उतर आये हैं, वहीं आचरण संहिता का तो चूरमा बना कर अपने जूतों तले न जाने कब का रौंद चुके हैं । हम कुछ चित्र आज ही प्रकाशित कर रहे हैं, और कुछ अन्‍य चित्रों को आज ही फिल्‍म के रूप में अपने वीडियो व इण्‍टरनेट टी.वी. सेक्‍शन में प्रसारित कर रहे हैं, इनमें आचरण संहिता की धज्जियां उड़ाते और मतदाताओं को लुभाते और डराते घमकाने परेशान करने तथा प्रत्‍याशीयों की गुण्‍डागर्दी के चित्र ताजे यानि आज के ही खींचे हुये हैं और बकाया फाइल चित्र हैं ।

क्‍या हो रहा है, चम्‍बल में असल में

मैं आपकों शहर मुरैना का जिक्र सुना रहा हूं , मैं आपको यहॉं हो रही या घट रही सारी तत्‍य बयानी प्रत्‍यक्षदर्शी मैं स्‍वयं और कुछ मामलों में स्‍वयं भुक्‍त भोगी के रूप में बयान कर रहा हूं ।

इसके बाद निर्वाचन आयोग या जिला प्रशासन मुरैना कैसे मतदाताओं को आश्‍वस्‍त करेगा यह उनकी जिम्‍मेवारी है, मैं जो लिख रहा हूँ वह सब मय साक्ष्‍य है ।

प्रश्‍नात्‍मक घटनायें व वृतान्‍त (उत्‍तर दीजिये)

1.           पूरे दिन और पूरी रात की बिजली कटौती संदिग्‍ध रहस्‍यमय और कुछ विशिष्‍ट क्षेत्रों तक सीमित क्‍यों, किसके इशारे पर, और किस उद्देश्‍य के लिये

2.           केवल कुछ प्रत्‍याशीयों या केवल कुछ स्‍थान मात्र पर ही आचरण संहिता उल्‍लंघन के मामले क्‍यों, बीच शहर में खुलेआम आचार संहिता की धज्जियां उड़ रही हैं, इसे कौन रोकेगा ।

3.           मतदाताओं को खुलेआम सौ का नोट और एक नारियल कुछ प्रत्‍याशीयों द्वारा कुछ क्षेत्रों में बांटे जाने की खबरें लगातार मुझे मिलीं और ऐसा हुआ भी इस सम्‍बन्‍ध में एक प्रत्‍याशी ने आरोपित किया है और समाचार पत्रों में बयान दिया है कि वोट खरीदे जा रहे हैं, आप इस मामले में अब तक क्‍या कर रहे हैं, इस तथ्‍य को साबित करने या निष्क्रिय व असत्‍य साबित करने हेतु क्‍या कार्यवाही किये हैं, या क्‍या कदम आपने उठाया है । मैं आपकों याद दिला दूं म.प्र. शासन के अस्तित्‍वाधीन एक आदेश के तहत चौबीस घण्‍टे के भीतर सम्‍बन्धित प्रशासनिक अधिकारी को असत्‍य खबर या तथ्‍य का खण्‍डन करना अनिवार्य है या फिर उसे साबित करने हेतु कदम उठा कर कार्यवाही करना अनिवार्य है, इस आदेश की प्रति आपके पास न हो तो मेरे पास उपलब्‍ध है, मुझसे ले लीजिये या फिर म.प्र. शासन की वेबसाइट से ले लीजिये या म.प्र. के असाधारण राजपत्रों के अंक टटोल लीजिये यह आदेश गजटेड है ।

4.           चम्‍बल के कई गांवों की कई समस्‍याओं पर कई गांवों, ग्राम पंचायतों और शहर मुरैना और तहसील कस्‍बों के कई मोहल्‍लों के वाशिन्‍दों मतदाताओं द्वारा बाकायदा बयान जारी कर अखबारों में खबर छपवाकर मतदान के बहिष्‍कार किये जाने का ऐलान किया गया है, यदि यह खबरें या अखबार आपके पास न हों तो मेरे पास सुरक्षित रखें हैं, क्‍या मतदान का बहिष्‍कार स्‍वस्‍थ लोकतंत्र के लिये आवश्‍यक है या फिर मतदान बहिष्‍कार, निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र व पारदर्शी मतदान का एक अंग है आप ऐसा मानते हैं । यदि ऐसा बहिष्‍कार घोषित हुआ है तो उसे करवाने के लिये या उन्‍हें मतदान हेतु प्रेरित किये जाने हेतु आपने क्‍या कदम उठाये हैं, इन मतदाताओं से मतदान कराने का दायित्‍व किसका है, आपका या मेरा, या सम्‍बन्धित अखबारों का या फिर सम्‍बन्धित प्रत्‍याशीयों का । इन रूठे मतदाताओं द्वारा मतदान बहिष्‍कार कैसे आखिर स्‍वतंत्र, निष्‍पक्ष या पारदर्शी चुनाव करायेगा मेरी समझ से परे हैं । ये मतदान नहीं करेंगें तो क्‍या आप एक अच्‍छा, उत्‍कृष्‍ट सर्वमान्‍य जनप्रतिनिधि इस देश के लोकतंत्र को देंगें यह मुझे समझाईये । जब कोई मतदान नहीं करेगा या कोई बूथ पर निरंक वोटिंग होगी तो क्‍या आप चुनाव परिणाम रोक देंगें या फिर उस विधानसभा का या उस बूथ का पुन: पोलिंग करायेंगे, इस सम्‍बन्‍ध में आपकी नीति क्‍या है, मुझे बताईये ।

5.           सारे शहर में धुंआधार गुण्‍डागर्दी और अराजकता फैली हुयी है, यहॉं तक कि अखबारों को खुलेआम लुभाने व धमकाने का माध्‍यम प्रत्‍याशीयों द्वारा बनाया गया है और सब कुछ साफ साफ अखबारों में छपा हुआ है और लगभग रोज ही छप रहा है, इन अखबारों या खबरों या लुभावने विज्ञापनों की प्रति यदि आपके पास नहीं हैं तो मेरे पास सुरक्षित हैं, आपने अब तक इस सम्‍बन्‍ध में क्‍या कदम उठाये हैं, महाराज कृपया अवगत करायें ।

6.           कुछ प्रत्‍याशीयों का दावा है कि मुरैना महादेव नाका पर अण्‍डरब्रिज वे बनवा देंगे और बाकायदा उन्‍होंने टाइम लिमिट भी घोषित की है, यह तथ्‍य कितना सही है, क्‍या इसे लुभावना लालच की संज्ञा या तथ्‍यात्‍मक भ्रम या भ्रमात्‍मक तथ्‍य माना जा सकता है, क्‍या यह प्रत्‍याशी भारत सरकार का रेलमंत्री है, या रेलमंत्री इसका जरखरीद गुलाम है या इसकी जेब में रहता है, इस प्रत्‍याशी द्वारा ऐसी गारण्‍टी किस गारण्‍टी के तहत दी गयी है , कृपया तथ्‍य को सत्‍यरूप से अवगत करा कर मुझ लाचार, नासमझ, कम अकल और अनपढ़ अज्ञानी मतदाता को बताने की कृपा करें मैं भ्रमित हो गया हूं, और लालच में भी आ गया हूं, इसी बिन्‍दु पर एक अन्‍य प्रत्‍याशी द्वारा पिछले कई दिनों कई महीनों से अखबार में छपवा छपवा कर दावा किया गया है कि वह भी इस अण्‍डर ब्रिज को बनवा देगा, उसका कहना है कि वह बनवा भी देता काश कि वह रेलमंत्री होता, उसका कहना है कि वह अण्‍डर ब्रिज बनवाने के लिये अपनी जेब से या अपनी सरकार की जेब से पैसा एक साल पहले रेल मंत्रालय में जमा करवा चुका था, लेकिन रेल मंत्रालय ने छल, धोखाधड़ी और कपटपूर्वक, आपराधिक षडयंत्र रचकर उसके पैसे पचा लिये और लम्‍बे समय तक अपनी जेब में डाल कर रेल्‍वे उसे टहलाती रही, बाद में आज कल आज कल करते अभी तक उसने अण्‍डरबिज नहीं बनवाया और मूर्ख बना दिया तथा उसके साथ , उसकी सरकार के साथ और मुरैना की जनता के साथ धोखाधड़ी कर दी, अब वह भी कह रहा है कि वह जीता तो बनवा देगा अण्‍डरब्रिज ।  आदरणीय श्रीमान मुझे भ्रम हो गया है और यह लालच भी आ गया है कि मैं इन दोनों में से ही किसी को वोट करूं लेकिन भ्रम हो गया है, भ्रमात्‍मक तथ्‍यों के कारण तथ्‍यात्‍मक भ्रम । मैं उलझन में हूं, श्रीमान मैं एक मूर्ख, कमसमझ कम पढ़ा लिखा अज्ञानी मतदाता हूं, श्रीमान निष्‍पक्ष चुनाव के रिंग मास्‍टरगण मेरा भ्रम दूर करें, मेरा मार्गदर्शन करें, जिससे मैं सही आदमी को वोट दे सकूं । अगर आप वोटिंग से पहले सही तथ्‍य या सही प्रत्‍याशी का नाम बता देंगें कि इनमें से कौन रेलमंत्री बनेगा या रेलमंत्री भारत सरकार किसका जरखरीद गुलाम होगा या कौन रेलमंत्री को दारू पिला कर महादेव नाके पर ठुमके लगवायेगा , उस सही आदमी के नाम से मुझ गरीब अज्ञानी अल्‍पबुद्धि को अवगत करा दें जिससे मैं सही आदमी को वोट देकर अपना अण्‍डरब्रिज बनवा लूं ।

7.           हमारे भावी जन प्रतिनिधिगण द्वारा प्रस्‍तुत अपने आय व्‍यय लेखे में आप केवल जे पूछ रहे हैं कि रकम गयी कहॉं यानि खर्च कहॉं हुयी कै फिर जेऊ पूछ रहे हैं कि जे आयी कहॉं से, मतलब जो रकम खरच भई वो आय कहॉं से रही है और आवक स्‍त्रोत की विश्‍वसनीयता और प्रमाणिकता क्‍या है, और जा आवक जावक में यानि आय व्‍यय में प्रत्‍याशीयन के विज्ञापनन के खच्‍च और रसीद आय गयीं के नानें, जो लंगर चलाय कें भण्‍डारे कर रहे हैं वाउको खच्‍च दिखाओ है के नानें । कितेक गैस सिलेण्‍डर खाय गये नेता लंगरन्‍न में, जे सिलेण्‍डरों की खरद की रसीद खच्‍च के हिसाब के संग पेस भई है के नानें । महाराज शहर से सिलेण्‍डर गायब है गये हैं, जनता से पंगा कर्रो है रहो हैं , हमऊं से भिड़न्‍त है गयी है , हम तो खैर निबट लेंगें पर महाराज निष्‍पक्ष चुनाव गारण्‍टी अधिकारी महोदय वा जनता को का होगो जो हजारों नम्‍बर आज की तारीख में आडवाणी जी की तरह वेटिंग इन में डरे हैं , वे भभ्‍भर मचाय रहे हैं । बिनकी कोऊ सुन नाने रहों जा बखत । हमने सुनी है कि नेतन लोगन ने ट्रक के ट्रक सिलेण्‍डर उतारवाय लये हैं, और सिग लंगरन में हवन है गये हैं । सुनो है के नेतन ने भारी गुण्‍डागिरी मचाय रखी है । बड़ी जबरदस्‍त ब्‍लैकमेलिंग चल रही और सिलेण्‍डर आठसौ और पन्‍द्रह सौ रूपये में मिल रहे हैं नहीं तो तीन महीना बाद, वाह प्रभु जय सियाराम, वैसे तो हम कम्‍पलेण्‍ट हाई लेवल करई रहे हैं और कै तो जा व्‍यवस्‍था कों अब ठीक ही करवाय देंगें और एजेन्‍सी टर्मिनेशन के लेउँ लिखेंगे हकीकत तो खैर भारत सरकार के सही डिपार्टमेण्‍टों तक सही माध्‍यम से पहुचाय देंगें ही, लेकिन महाराज चुनाव बाद हम सूचना का अधिकार में जे सब ब्‍यौरा महाराज आपसे मांगेंगे, सो दे जरूर दीयो नहीं तो एक लड़ाई और लड़नी पड़ेगी ।

8.           वैसे तो ऊपर लिखीं बातें बहुत हैं समझदार के लाने पर जे है कि चलत चलत एक औरऊ बात कह दें कि बा गरीब हरिजन निर्दलीय प्रत्‍याशी की प्रचार गाड़ी यानि रिक्‍शा जे दूसरा गुण्‍डा बाहुबली प्रत्‍याशीयन ने टोर फोर डारी हती, हमने अखबार में पढ़ी हती वा को का भओं, जे निर्दलीय प्रचार काय नही कर पाय रहे, जिनकी धड़ाधड़ पिटाई मराई लगाय कें जे गुण्‍डा लोग बाहुबली प्रत्‍याशी प्रचार नहीं करन दे रहे वामें आप का कर रहे हैं महाराज । खैर थोड़ी लिखी बहुत समझना ।

अंतत: आप समझ सकते हैं कि चम्‍बल में चुनाव कैसा चल रहा है और कैसा निष्‍पक्ष, स्‍वतंत्र व पारदर्शी हो रहा है । और उधर डकैत बदमाश गांवों में धमकी दे गये हैं कि अलां फलां को वोट देना वरना चुनाव बाद पकड़ कर ली जायेगी, शहरों में चोरी भडि़याई करवाने की धमकी और ऐलान जारी किये है, कुछ मतदाताओं को लूट पाट और मारने पीटने के फरमान जारी हो गये हैं वहीं कुछ मतदाताओं को परिवार सहित जान से मारने की धमकी, अपहरण करने और बेइज्‍जत करने के फरमान भी बाहुबली गुण्‍डा प्रत्‍याशीयों द्वारा जारी किये गये हैं, कुछ की बिजली पानी काटने, कुछ को अन्‍यान्‍य भांति तंग व त्रस्‍त करने जैसी धमकियां जारीं हैं, शहर और गांव दहशत में हैं, मतदान आ रहा है, अगर वोटिंग ऐसे ही होनी है तो वोटिंग की जरूरत क्‍या है, इलेक्‍शन की जगह नोमिनेशन कर लेना चाहिये ।  

बुधवार, 19 नवंबर 2008

चम्‍बल में विदेशी पंछी मेहमान बन कर आये, लंगरों में दावत भण्‍डारे और दारू के भोज, ससुरे वोट डालेंगें कि चुनाव करायेंगें

चम्‍बल में विदेशी पंछी मेहमान बन कर आये, लंगरों में दावत भण्‍डारे और दारू के भोज, ससुरे वोट डालेंगें कि चुनाव करायेंगें   

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

मुरैना विधानसभा पर इस बार प्रमुख दलों कांग्रेस, भाजपा और बसपा का गला काट संघर्ष होगा । लेकिन प्रभावित करने वाले यानि वोट काटने वाले इनकी नाक में खासा दम कर देंगें । कल एक निर्दलीय प्रत्‍याशी को छ गाड़ीयों के साथ इन तीन प्रमुख प्रत्‍याशीयों में से एक का चुनाव प्रचार करते और चुनाव सामग्री भरी गाड़ी के साथ जिला प्रशासन मुरैना ने पकड़ा है । हालांकि जिला प्रशासन और निर्वाचन आयोग निष्‍पक्ष चुनाव कराने की कसम खा कर बैठा है लेकिन राजनैतिक दलों के प्रत्‍याशी भी अपने जौहर दिखाने से नहीं चूक रहे । निर्दलीय प्रत्‍याशीयों की गाड़ीयों का उपयोग करना, निर्दलीयों को खरीद कर जर खरीद गुलाम की तरह प्रचार में उनका इस्‍तेमाल करना, शराब, शबाव और कबाव, यानि एग, लैग और पैग के साथ औरतों और बच्‍चों को उठवा कर अपनी छवि बनाना दूसरों की बिगाड़ना, गुण्‍डे, चोर मवालीयों और बाहरी बदमाशों तथा डकैतों की पूरी फौज की फौज इन दिनों चम्‍बल में एक माह पहले से ही बारातों की भांति फोकट के लंगरों में भोज पंगत और जाम के आनन्‍द उठाने में लगी है, सीमायें सील होने से पहले ही विशाल तादाद में अपराधी पहले ही अपना डेरा चुके थे । इन दिनों चम्‍बल में बाहर के विदेशी प्रवासी पक्षी मेहमान बन कर डेरा जमाये हैं । ज्ञातव्‍य है कि इन दिनों प्रत्‍याशीयों के समूची चम्‍बल में यत्र तत्र सर्वत्र लगभग 7 हजार लंगर चल रहे हैं और राजस्‍थान से नकली व सस्‍ती मंहगे ब्राण्‍ड के लेबल लगी दर्जनों ट्रक शराब भरकर चम्‍बल पहुँच कर बदमाशों के टेटुओं में उड़ेली जा रही है । एक लंगर में अमूमन 6-7 हजार लोग रोजाना पेट भरने और गला तर करने का काम कर रहे हैं । अब भई ये विदेशी प्रवासी पंछी मेहमान बन कर जो डेरा डाले हैं और हराम की कमाई, हराम की लुगाई और हराम की खिलाई पिलाई का आनन्‍द ले रहे हैं जे पता तो तुमई लगाओ कि जे निर्वाचन आयोग के आदमी हैं का, या फिर निर्वाचक हैं या फिर ससुरे निर्वाचन के एजेण्‍ट हैं आखिर जे हैं का ।

हम तो प्‍यारे यही कहेंगें कि कोऊ नृप होय हमें का हानी, जादा चेंटें तो पिला देंगें पानी ।   

शनिवार, 8 नवंबर 2008

हास्‍य / व्‍यंग्‍य - हुम्‍फ ससुरे दागी लड़ें और बागी मन मसोसें...बहुत नाइन्‍साफी है गब्‍बर भाई

हास्‍य / व्‍यंग्‍य

हुम्‍फ ससुरे दागी लड़ें और बागी मन मसोसें...बहुत नाइन्‍साफी है गब्‍बर भाई

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

अभी फार्म भरने का मौसम निकल गया, कल ही लास्‍ट डेट गुजर गयी, पॉच साल बाद आने वाली तारीख गुजर गयी । जो लपक झपक के पर्चा डाल आये वे सवारी में शामिल हो गये बकाया पॉच साल के लिये गये पानी में ।

नेता पॉंच साल ड्रीम्‍स देख कर स्‍वप्‍नदोष के शिकार होते हैं, हर ड्रीम में यही तारीख नजर आती है मगर पॉंच साल के लम्‍बे इंतजार के बाद महज सात दिन में चली भी जाती है । बहुत नाइन्‍साफी है ये । ये तो सरासर निर्वाचन आयोग की दादा है भइये । पॉंच साल की तारीख कम से कम 45 दिन तो चलवा दिया करो । क्‍या फ्लाप फिल्‍म की तरह हफते भर में सेल्‍यूलायड स्‍क्रीन से उतार देते है ।

मजा आना शुरू भी नहीं हो पाया था कि तारीख खल्‍लास हो गयी । अरे भईया हम हिन्‍दुस्‍तानी इत्‍ता लम्‍बा इंतजार खींचने के बाद इत्‍ती जल्‍दी फुरसत में नहीं आना पसन्‍द करते । अरे भईया नौदुर्गा भी हर छ: महीने बाद आ जातीं हैं और पूरे दस दिन बेतकल्‍लुफी से त्‍यौहार और उत्‍सव मनवा कर रौंग चोंग कर जातीं हैं ।

और गोया पर्चा भरने का मौसम जैसे स्‍वर्गीय मोरारजी जी भाई का जन्‍म दिन हो गया जो चार साल बाद पड़ेगा 29 फरवरी को और सुबह आकर शाम को खिसक लेगा । क्‍या ससुरी मध्‍यप्रदेश की बिजली के मानिन्‍द हो गया थोड़ी देर को आते हो और चले जाते हो ।

नेता पॉंच साल तड़पते हैं, फड़फड़ाते हैं, बीच में चुनाव कराने को सड़कों पर नर्राते हैं, बॉंहें, आस्‍तीन ऊपर सरका सरका कर जंग करते हैं, हर लोकल समस्‍या को नेशनल क्राइसिस कहते हैं, हर बात पर बाजार बन्‍द कराते हैं, हर बन्‍द पर चुनाव मांगते हैं, नयी सरकार के ख्‍वाबिया चादर तानते हैं, जनता को पॉंच साल तक बीच में चुनाव का आसरा दिलाते हैं ।

और ख्‍वाबों की ताबीर का बखत आता है, तो साली डेट आती है औ चली जाती है, केवल हफ्ते भर में एक्‍सपायर हो जाती है । नेता ढंग से लोक सेवकों की सेवा और चुनावी रंगत के पहले सिरे का आनन्‍द भी नहीं ले पाते , ढंग से निर्वाचन के रिंग मास्‍टरों को देख भी नहीं पाते कि आफिस खिड़की टेबल सब पर ताला ठुक जाता है । बहुत गलत बात है, गलत बात है ये ।

पहले दिन से चार गुने दूसरे दिन, दूसरे दिन के चार गुने तीसरे दिन इस तरह सात दिन तक पिछले दिन के चार गुने पर्चे बढ़ रहे थे, सरकार की इनकम भी बढ़ रही थी, और जब बुक्रिग की असल लाइन आना शुरू हुयी तो हाउसफुल का बोर्ड लटका कर खिड़की बन्‍द कर दी । गलत बात है, नाइन्‍साफी है ये । सोई तो मैं कहूं कि लोकतंत्र इस देश में फल फूल क्‍यों नहीं रिया । अब समझ में आया कि जब तक दागी आते हैं, हम पर्चे भरवाते रहते हैं और जब बागीयों का नंबर आता है तो खिड़की बन्‍द कर देते हैं, समानता का अधिकार नहीं है ये । अरे दागीयों की कुश्‍ती के बाद पराजित पहलवान बागी कहलाते हैं और बागीयों को भी चान्‍स बराबर मिलना चाहिये कि नहीं । हम नहीं देते, यानि समानता का अधिकार नहीं है ।

अब का होगा दागी मूंछ ऐंठकर छाती तान कर लड़ेंगे, बागी मन मसोसेंगे । एक तरफ तो सरकार कहती है कि बागी समस्‍या देश के माथे का कलंक है, खत्‍म होनी चाहिये, दूसरी तरफ खुद ऐसे करम कर कर के बागी खुद पैदा करती है, और जब दागी सरकार बना लेंगे, सरकार में बैठ जायेगें तो बागी समस्‍या को दस्‍यु समस्‍या या डकैत समस्‍या बता कर एनकाउण्‍टर में बेचारे बागी ठोक दिये जायेगे । गलत बात है, बहुत नाइन्‍साफी है ।

कुछ नेता जी मेरे पास आये तो कईयों के ई मेल मिले सब लगभग एक ही वाणी बोले दादा खबर चला दो, इण्‍टरनेशनल लेवल पर इण्‍टरनेट पर छाप दो कि अमुक नेता जी अब बागी हो गये हैं और अलां सवारी छोड़ फलां सवारी पे चढ़ बैठे हैं ।

मैंने नेता लोगों से पूछा कि इसमें खबर की क्‍या बात है, जाकर बगावती पर्चा डाल आओ, कल की हेडलाइन बन कर अपने आप छप जाओगे । नेता जी लोग बोले कि नहीं अब पर्चा नहीं डालना है केवल हाईकमान को ठांसना है । मैं बोला इससे का फायदा होगा । वे बोले कि कुछ नहीं हाईकमान की खोपड़ी में भी दर्द डालना है, उसने हमारी पॉंच साल की कमाई पे पानी फेरा है, नींद उड़ाई है, उसे भी नहीं सोने देना है ।

अभी एक दिन, मेरे गांव से एक बाबा और नाती साथ साथ आये, कलेक्‍ट्रेट के सामने से गुजरे तो कलेक्‍ट्रेट का बदला हुआ रंग औ रूतबा देख कर उनकी ऑंखें फटी रह गयीं । गेट पे मशीन, हाथ में मशीन, पुलिस ही पुलिस, दरवाजे की भी सील बन्‍द । मुरैना वालों की एक खासियत है कि सील टूटी हो दरवज्‍जा खुल्‍ला पड़ा हो तो टूट बैठते हैं, लेकिन अगर सील बन्‍द हो तो सील तोड़ने के लिये पड़ौसी की ओर निहारते हैं ।

कलेक्‍ट्रेट क्‍या पुलिस छावनी कहिये, या फिर आर्मी का हेड क्‍वार्टर कहिये । घुसो मशीन से निकलो मशीन से और संग संग मालिश करवाओ मशीन से । भईया क्‍या लुत्‍फ है । मौका है सेवा करवा लो लोकसेवकों से ।

हॉं तो बाबा और नाती वहॉं से गुजर रहे थे, नाती बोला कि बाबा जे का है रहो है, झां इतेक पुलिस कायकूं लगी है, का कोऊ काण्‍ड है गओ ए का ।

बाबा ने अपनी सुलभ सहज बुद्धि से अनुमान लगाते उत्‍तर दिया, मोय तो जे लगि रई है के केतो कोऊ अफसर काऊ डकैत ने ठोक दओ औ के फिर चुनाव आय गये होंगें, इतेक पुलिस तो तबई लगेगी ।

नाती फिर बोला काये बाबा जे पुलिस वाये करि का रहे हैं, बा दरवाजे में ते कोऊ कढ़तु है तई की जेब तलासी और जेब कटी सी कायकों कर रहे हैं ।

बाबा फिर बोले, नानें रे जे तो मसीन है, वो दरवज्‍जो ऐ बउमें मसीन फिट है, ऐसी हम भोपाल में देखि आय हते, भां विधानसभा में गये दंगल देखिबे सो भऊं ऐसेई कुतका से तने हते । कोई बां में ते कढ़तो सोई मसीन करती भें भें ...। और जे कुतका से हाथ में लेहें फिर रहे हैं जऊं सो ऐसेईं भें भें होति है ।

नाती बोला कि चलि बाबा अपुनुऊं जा कुतका से में ते कढ़ेंगे देखें कैंसें भें होगीं । फिर गाम में जायकें सिगन बतावेंगे , जा कुतका को किस्‍सा चार छ साल सुनावेंगे ।

इसके बाद बाबा और नाती दोनों ही भें दरवाजे यानि मेटल डिटेक्‍टर गेट से निकलने के लिये कलेक्‍ट्रेट का रूख करते हैं तभी लपक कर दो पुलिस वाले आते हैं, तब तक बाबा नाती दरवाजा पार कर लेते हैं ओर दरवाजे से निकली सीटी की आवाज सुन कर फूले नहीं समाते । अब पुलिस वाले उन दोनों को ऊपर से नीचे तक मेटल डिटेक्‍टर लगा कर चेक करते हैं, दोनों जने भारी ग्‍लेड यानि खुश हो जाते हैं । मगर पुलिस वाले कहते हैं कि ये साथ की थैली और पॉलीथिन झईं धर देओ । फिर भीतर जईयो । तो बाबा लड़ पड़ता है कहता है कि वह नहीं छोड़ेगा सामान । तब पुलिस वाला कहता है कि तो वह भी नहीं जाने देगा भीतर ।

अभी पुलिस वालों से दोनों की जद्दोजहद चल ही रही थी कि तब तक नेताओं के हुजूम आ उमड़ते हैं, और जिन्‍दाबाद जिन्‍दाबाद, जीतेगा भई जीतेगा, के नारे लगने लगते हैं, बाबा अपने नाती से कहता है कि चल रे जा नेता के संग चलेंगें । देंखें अब जे पुलिस वाले कैसे रोकेंगे । और बाबा नाती दोनो लोग नेताओं के साथ भीतर कलेक्‍ट्रेट में घुस जाते हैं और भीड़ के संग जिन्‍दाबाद और जीतेगा के नारे लगाने लगते हैं ।

कचहरी के भीतर का सारा नजारा देख कर नाती के मन में भी अंगड़ाईयां आने लगतीं हैं, वह बाबा से बोला बाबा नेतान के तो बड़े भारी जलजले हैं, बाबा हौंऊं (मैं भी) नेता बनेगों । होऊं पर्चा भरेंगों ।

बाबा कहता है, बात तो सही है, कम ते कम एक नेता तो घर में होनोई चहियें, नहीं तो आज के जमाने में कोऊ ना पूछत । चलि तूई बनजा नेता, चलि भरदे पर्च्‍चा । चलि भीतर दूकान पे पूछि लेऊ पर्च्‍चा का मोल भरो जागो ।

बाबा नाती भीतर पहुंचे, रिटर्निंग आफिसर से मिले और बोले काय सेठ जी झां पर्च्‍चा भरे जांगे का । रिटर्निंग आफिसर बोला किस विधानसभा का पर्चा भरना है । बाबा अपनी चतुराई दिखाते बोला कि सिगते सस्‍ती कौनसी है तई में भरेंगे ।

रिटर्निंग आफिसर जैसे कुछ कुछ समझ गया बोला बाबा झां तो सिग एकई भाव हैं चाहें तौनसी में भर देओ । हॉं हरिजन होओ तो आधे पैसा लगेंगें नईं तो पॉंच हजार लगेंगे ।

बाबा बोला कि हरिजन तो हम ना हतई पर कछू कम कर ले । पैसा तो तू जादा बताय रहो है ।

रिटर्निंग आफिसर भी दो दिन से मक्‍खी मार रहा था, उसकी विधानसभा से दो दिन बीतने के बाद भी कोई फार्म दाखिल नहीं हुआ था सो पका बैठा था । बोला बाबा ये सरकारी दूकान है, एक बोलिया वाली, यहॉं मोलभाव नहीं चलता । बाबा से जादा चतुर नाती था वह बोला अये सेठ हमनि का ऐंनई उल्‍लू समझ रहो हैं, हम टी.वी. पे देखकें आयें हैं, जागो ग्राहक जागो में हमें बताया दई है कि मोलभाव करो और दाम घटवाओ । सो सही सही बताय दे कितेक पैसा लेगो, फायनल रेट बोल दे ताते हमऊं फारम भर दें । हमनि वैसे कोऊ जरूरत नानें परि हमाय झां कोऊ नेता नानें सो नेता बनिवे आये हैं । सस्‍ते में बनाया रहो होय तो बता, नहीं तो कोऊ और दूकान तलाशेंगें ।

रिटर्निंग आफिसर का आफिसरी खून उबाल लेने लगा और बोला बाबा रसीत कटाओगे तो टैक्‍स लगेंगे सो पैसा जादा ही लगेंगे पर रसीत नहीं कटाऊ तो काम सस्‍ते में यानि चार हजार में हो सकता है । पर अखबार में नाम नहीं छपेगो ।

नाती इस पर उखड़ गया और बोला रसीत नहीं कटे तो कोऊ बात नानें पर अखबार में नाम नहीं कढ़ेगो तो हम नानें राजी । अखबार में तो नाम जरूरी है, हम सिग गाम में पढ़वावेंगें । नारे लगवावेंगें जिन्‍दाबाद और जीतेगा करवावेंगे । अखबार वाई रेट बता ।

हुआ चेंट चपाट के बाद ये कि, पूरे पॉंच हजार की रसीद कट गयी और नाती को फार्म मिल गया । फार्म मिलने के बाद नाती बाहर आकर वकीलों से मिला और एक वकील से बोला, काय वकीन साब जे फार्म भरनो है नेतागिरी को, जाय भरवायदेओगे का । वकील साहब ने कहा भर जायेगा पॉंच सौ लगेंगें । बाबा बोला ऐरेओ जे बताऊ का झां सिग के सिग काटिबे ही बैठे हो, ऐंसे नेता बने तो है गई सियाराम । हमनि तो सुनी कि नेता कभऊं अपनो पैसा खच्‍च करके कोऊं काम ना करतुई और झां खुदईखुद डड़बे चिपटे हैं ।

वकील समझ गया के अनाड़ी पंछी हाथ लगा है, उसने अपनी मार्केटिंग जमाते हुये कहा कि का नये नये आये हो का । तबई ऐसी बातें कर रहे हो, जाओ दिल्‍ली, भोपाल चले जाओ और जायके देखो कि वकीलों के रेट क्‍या चल रहे हैं पॉंच दस हजार से नीचे तो कोई वकील अपनी कुर्सी पे बैठने भी नहीं देता, हम तो मुरैने में बरबाद हे रहे हैं । नहीं तो हमऊं आज कछू होते । नेता बनि जाओगे तो जो कमाई करोगे वाय का हमें दे देओगे का । बाबा ने इतना सुन के मूंछ पर ताव जमाया और बोला ठीक है वकील साब दये पूरे तीन सौ दये, अब जादा रेट फेट मत करो, मोड़ा नेता बनें चाहिये रहो हैं, जाय नेता बन जावन देओ ।

वकील ने सटासट फटाफट फार्म भरवा दिया । दस प्रस्‍तावक भी ला दिये । और शुरू हो गया नाती से नेता बनने का सफर ।

चम्‍बल के बागीयों पर दुनियां तोहमत लादती है, लेकिन अब क्‍या हो जब सारा मध्‍यप्रदेश ही बागी हो उठा है हर पार्टी में बागी नेता सिर उठा रहा है । दागी से बागी बने इन नेताओं का दुख ये है कि पर्चे की लास्‍ट डेट तक इन्‍हें पता ही नहीं लग पाया कि वे उन्‍हें टिकिट नहीं मिल रहा । वरना किसी और पर सवार हो लेते ।

अब डेट निकलने के बाद उन्‍हें उम्‍मीद है कि शायद डेट बढ़ जाये । इस देश में बड़ी बड़ी चीजों की डेट बढ़ जातीं हैं, काश उनके फाम भरने की भी डेट बढ़ जाये ।                  

                                   

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

हास्‍य/व्‍यंग्‍य -आओ चलो अखबार निकालें, विज्ञापन पायें, गरीबी हटायें - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

आओ चलो अखबार निकालें, विज्ञापन पायें, गरीबी हटायें

चम्‍बल विकास प्राधिकरण को बने तो 25 साल हो गये, करोड़ो खर्च के बाद अब दोबारा बनेगा क्‍या

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

सरकार को टेन्‍शन है कि एक अरब लोगों में केवल तीन आदमी अरब पति हैं, बकाया एक अरब सब इनकी पत्‍नीं हैं यानि हाल कंगाल हैं, सरकार फालतू ही नर्राती रहती है, बेकार ही मंजीरे पीटती रहती है कि गरीबी हटाओ । इंदिरा जी भी चिल्‍लातीं थीं गरीबी हटाओ, चिल्‍लाते चिल्‍लाते शहीद हो गयीं मगर गरीबी शहीद न हुयी । गरीब और गरीब होता गया, अमीर को अमीरी रास आ गयी वह और अमीर होता गया । गरीब को गरीबी रास आयी, गरीब की पॉकेट से पैसा अमीर का जिन्‍न लपक कर अमीर की तिजोरी में पहुँचाता रहा । एक हजार गरीब का हैण्‍ड फैन छिन गया तो एक अमीर का ए.सी. लग गया । एक हजार गरीब को एक वक्‍त की रोटी कुर्बान करनी पड़ी तो अमीर के कुत्‍ते के लिये विदेशी बिस्‍कुट का पैकेट आ गया । अमीर अतिअमीर होते रहे गरीब अति गरीब, का करिये अपने अपने नसीब की बात है, अंग्रेजी में एक कहावत होवे है कि अमीर का छोरा मुंह में सोने की चम्‍मच लेकर पैदा होता है, गरीब का बेटा कभी दिल में छेद ले आता है तो कभी पाकिट में सूराख कभी कभी तो ससुरा मुकद्दर ही चलनी सा ले आता है । अब चलनी में दूध दुहोगे तो कर्मन कों दोष क्‍यों देवोगे । गरीब के पास राशन कार्ड बनवाने के पैसे नहीं होते, गरीबी रेखा में नाम लिखाने के पैसे नहीं होते । अब गरीबी रेखा की सूची खाली तो नहीं रखी जा सकती, सो जो दे सकता है वह आई आर डी पी में बिलो पावर्टी लाइन बन जाता है, देने की ताकत अमीरों के पास होती है, मामला फंस जायेगा तो उसे सुल्‍टाने की ताकत भी अमीरों की पॉकिट में होती है, गरीब के पास तो भुखमरी का घण्‍टा रहता है, चौबीस घण्‍टे बजाता है, हरिकीर्तन करता है, बड़ी आस से मन्दिर, मस्जिद गुरूद्वारे जाता है, दीवाली को उधार मांग कर कर्ज लेकर भी लक्ष्‍मी पूजन करता है कि मैया इस साल भण्‍डार भर देना भरपूर कर देना, लक्ष्‍मी मैया इठलाती है, इतराती है कहती है कि पहले भण्‍डार तो बता कि कहॉं है तेरा जिसे मैं भरूं, अपनी तिजोरी तो दिखा जहॉं जाकर बैठ जाऊं, गरीब के पास न तिजोरी है न भण्‍डार, रोज आधा एक किलो आटा, ढाई सौ ग्राम आलू और दो प्‍याज की गॉंठ खरीद लाता है, और लक्ष्‍मी से कहता है मैया वो जो साइड में पॉलीथिन पड़ी है, वही मेरा गोदाम है, मेरा भण्‍डार है, इसे भरपूर कर, मैया ठठा कर हँसती है, फिर गरीब बोलता है कि ये जो मेरी फटी बुशर्ट की फटी जेब है और किवाड़ की कुण्‍दी पर लटकी है यही मेरी तिजोरी है इसमें आन विराजो महारानी ।

लक्ष्‍मी मुस्‍कराती हुयी अपनी पूजा कर खिसक लेती है और उसकी ढाई सौ ग्राम की समाई साइज की पॉलीथिन में ढाई सौ ग्राम का खाता खोल देती है, उसकी फटी बुशर्ट की फटी जेब में भी जीरो बैलेन्‍स अकाउंट खोल देती है और जेब के सूराख से ही बाहर खिसक लेती है, और किसी बड़ी तिजोरी बड़े भण्‍डार वाले का गोदाम तलाशने निकल पड़ती है ।

सरकार फिर चिल्‍लाई, गरीबी हटाओ, पता नहीं किससे कहा, पता नहीं किसने सुना । मगर एक दिन पिछले साल सब सरकारी अफसरान ने एक दिन गरीबी हटाने के लिये अर्पित किया, गरीबी हटाने की शपथ हाथ आगे बढ़ा बढ़ा कर ले डाली, ससुरी शपथ क्‍या संकल्‍प कर डाला, वे सब बोले हम गरीबी हटायेंगें । हमने सारे फोटू इकठ्ठे करे और लघु फिल्‍म बना डाली (ग्‍वालियर टाइम्‍स वेबसाइट पर अभी भी चल रही है ) फिल्‍म बहुतों ने देखी, सरकार की बात भी बहुतों ने सुनी, अखबारों के जरिये या मीडिया के नजरिये ।

पर कोई नहीं चेता, कोई नहीं जागा, शपथ लेकर हाल ही सब भूल गये । गरीब ससुरा गरीब होता ही गया फटेहाल फक्‍कड़ होता गया । अब का हो, सवाल बड़ा विषम था । लेकिन हमारे देशभक्‍त चेते, उनने गरीबी दूर करने का बिना शपथ लिये बीड़ा उठाया, गरीबी किल करने की सुपारी ले ली । और लग बैठे देश की गरीबी मिटाने में, कोई बोला गरीब से, कोई का एजेण्‍ट बोला तो कोई का कन्‍सल्‍टेण्‍ट गरीब का हमदर्द बना किसी किसी के बिजनिस एसोसियट गरीब की गरीबी दूर करने गरीब के पास जा पहुँचे । और बोले हमने गरीबी किलिंग की सुपारी ली है, बीड़ा चबाया है (पहले बीड़ा चबाया जाता था, स्‍वतंत्रता के बाद उठाया जाता है )

बीड़ा उठाया तांत्रिकों ने, फायनेन्‍स कम्‍पनीयों, बैंक, शेयर ब्रोकर्स और बीमा कम्‍पनीयों ने । सबने ऐलाने जंग किया '' हम मिटायेंगें गरीबी'' फतहयाबी के आमीन बांचे । और चले गरीबी दूर करने बाबाजी और तांत्रिक गॉंवों और शहरों की निपट गंवार दिमाग से पैदल गरीब बस्तियों में पहुँचे और बोले हम मिटायेंगें बच्‍चा तेरी गरीबी, तेरे संकट का टैम खतम हुआ, अब तू भारत के पॉंच पहले अमीरों में शुमार होगा, फोर्ब्‍स पत्रिका की हिट लिस्‍ट में तेरी सम्‍पदा अंकेगी । पी एम, सी एम तेरी मुलाकात को तरसेंगें तुझे बुलाने के लिये सरकार करोड़ों रूपया फूंकेगी, रेड कार्पेट डालेगी तुझे प्र जमीन पे नहीं धरने पड़ेंगें , राल्‍स रायस में ऐशो सफर करेगा, तेरे घर से पेलेस ऑन व्‍हील्‍स निकलेगी । हसीनायें तेरी बाट जोहेंगीं, दस सुन्‍दरियां सोते से मनुहार कर मधुर संगीत सुनाते हुये जगायेंगीं, दस नवयौवनायें बिना बु्रश के तुझे मंजन अंजन करायेंगीं, दस और इठलातीं जिन्‍न परीयां तुझे स्‍नान ध्‍यान करायेंगीं, महकते इत्र और तैरती खुशबुओं के बीच हमाम में पड़ा इन परियों से मालिश करवा कर मैल छुड़वायेगा, फिर नई हुस्‍न मलिकायें तुझे वस्‍त्र पहनायेंगीं, दस और नवयुवतियां आकर तुझे नाश्‍ता करायेगीं ।

हाथ बांधे सिर झुकाये तेरे सामने फकीर फक्‍कड़ों की लाइन लगी होगी, तू बांटता जायेगा मगर तेरा खजाना उतना ही बढ़ता जायेगा । आफिस में दस सुन्‍दरीयां तेरी स्‍टेनो होंगीं हर समय बस तेरी सूरत पर नजर रखेंगीं और क्‍या हुक्‍म है मेरे आका पुकारतीं होंगीं । एक हजार एकड़ जमीन में तेरा बंगला होगा, अम्‍बानी कां बंगला और मित्‍तल का बंगला उसके बेटे के बंगले और बेटी के बंगले सबके सब तेरे पास गिरवी धरे होंगें ।

टाटा का सिलबट्टा जैसे 75 पैसे में आज तलक गिरवी पड़ा है, धर्मेन्‍द्र बीकानेर वाले पर जैसे एक होटल पान वाले के दो रूपये पिचहत्‍तर पैसे आज तलक उधार हैं, ऐसे अरबपति के खाते तेरे चौके से गुजरेंगें । बस उठ और फलां जगह दबे फलां राजा या फलां बंन्‍जारे का खजाना खोद ले हम तुझे दिलवायेंगें, खरचा मगर पचास हजार से ऊपर का होगा । गरीब ने उनके ख्‍वाब सिर ऑंखों लिये और निकल पड़ा फोर्ब्‍स पत्रिका में अपना नाम लिखाने । कर्ज जुगाड़ा, चोरी करी, डाका डाला, घर बेचा, जेवर बेचा, बिटिया गिरवी रखी, बेटा बंधुआ रखा, पचास हजार इकठ्ठे करके लाया बाबा तांत्रिक को सौंपे, बाबा ने जमीन खुदवा कर पॉंच चांदी के सिक्‍के भी दिये और कहा ये सैम्‍पल है, चेक करवा ले, अब इस खजाने पर सवार मसान या प्रेत कहता है कि बकाया माल दीवाली की अमावस को निकलेगा, तब तक रोज यहॉं घी का दीपक जलाना, किसी को यहॉं फटकने न देना, और सावधान अशुद्धि न हो जाये वरना खजाना पाताल चला जायेगा ।

गरीब खुदी जगह पर झोंपड़ी डाल कर बैठ गया, रोज दीपक जलाता और दीवाली की अमावस की रात का इन्‍तजार करता । साल भर बाद बाबा तांत्रिक फिर पधारे बोले चल निकाल पॉंच हजार नकद और दो बोतल दारू खालिस अंग्रेजी, तीन मुर्गा और सोलह नीबू । गरीब ने फिर जुगाड़ कर सामान और पैसा बाबा को दिया, बाबा और उसके चेलों ने गरीब का नाम फोर्ब्‍स पत्रिका में लिखाने को कर्मकाण्‍ड शुरू किया दो दो ढक्‍कन दारू काली और भैरों को चढ़ायी बकाया परसादी खुद और चेलों ने पा ली । मुर्गों  का रक्‍त काली और भैरों पर चढ़ा, मुर्गे परसादी बन कर बाबा और चेलों के पेट में समा गये ।

बाबा ने चाण्‍डाल चौकी का पहरा बिठाया, सिन्‍दूर का चौकोर घेरा बनाया और फूं फां, धूं धां, ठं ठं ठ: ठ: करता रहा, थोड़ी देर बाद देव प्रकट हुये फिर प्रेत भी आ गया फिर जिन्‍न भी आ पहुँचा, सब बोले चिल्‍लाकर बोले अशुद्धि अशुद्धि अशुद्धि, घोर संकट, बाबा तू भाग जा वरना निपट जायेगा । अलौकिक (दिखाई न देने वाली) आत्‍मायें नशें में झूमते चेलों की बाडी में घुस बैठीं थीं, सबके सब बोले, इसने गलती की है , इसे खजाना हम नहीं दे सकते, बाबा बोला क्‍या गलती हुयी है उसे तो बताओ, सब आत्‍मायें एक सुर में बोलीं इसकी पत्‍नी हर महीने, महीने से (रजस्‍वला) होती थी लेकिन ये उन दिनों भी दीपक लगा देता था, घोर अशुद्धि, पाप कर्म, और देखते देखते गरीब का खजाना पाताल में समा गया । बेचारा गरीब, फोर्ब्‍स में आते आते जरा सी चूक से वंचित हो गया ।          

कल एक प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित समाचार पत्र की फ्रण्‍ट पेज की सेकण्‍ड लीड थी कि भाजपा बनायेगी चम्‍बल विकास पाधिकरण, खबर चौंकाने वाली और झन्‍नाटेदार थी, पढ़ कर हम चौंके भी और सन्‍नाटे में भी आ गये । फिर अखबार के ऊपर ध्‍यान गया तो भाजपा का विज्ञापन सरकारी पैसे से अखबार में लगा था, पहले यह टॉप एड अन्‍य अखबारों में भी चलता रहा है, इस प्रकार के विज्ञापन इण्‍टरनेट पर चला करते हैं और इन्‍हें टॉप एड कहते हैं, जो बहुत मंहगे होते हैं, अखबारों में इस प्रकार के विज्ञापन प्रकाशन का रिवाज कभी नहीं रहा, पहली दफा मध्‍यप्रदेश के अखबारों में यह प्रयोग देखने को मिल रहा है, खैर कोई बात नहीं नवाचार और अधुनातन का जमाना है यह भी चलेगा । वैसे भी ग्राहक आजकल अखबार खबर के लिये नहीं विज्ञापन के लिये पढ़ता है । इसलिये अखबारों का 70 से 75 फीसदी भाग केवल विज्ञापन से आवृत्‍त रहता है, अखबार वाले इसे जानते हैं इसलिये खबरें नहीं विज्ञापन छापते हैं, जो अखबार विज्ञापन नहीं छापते वे आजकल बिका नहीं करते, उन्‍हें घटिया अखबार माना जाता है । उन्‍हें कोई नहीं पढ़ता । पढ़ना भी नहीं चाहिये, उपभोक्‍ता अखबार खबर के लिये नहीं विज्ञापन के लिये अखबार खरीदता है । खबर नहीं छपेगी कोई बात नहीं, विज्ञापन नहीं छपे तो उपभोक्‍ता लपक कर उपभोक्‍ता फोरम चला जायेगा । अखबार वाले इस बात को जानते हैं, सो विज्ञापन देवो भव: । विज्ञापन दाता ईश्‍वरो भव: । सो अखबार बेचारे 70 अस्‍सी फीसदी भाग में विज्ञापन छापा करते हैं ।

अब कोई विज्ञापन देवेगा, माने झूर कर पैसा भी देवेगा, अब जब देवेगा तो कुछ लेवेगा भी । भइया बड़ी साधारण सी बात है मक्‍खन लगवायेगा, चमचागिरी करवायेगा, पैर दबवायेगा, घुटने सहलवायेगा । वगैरह वगैरह ।

चलो अखबारों ने टाप एड प्रक्रिया चालू कर दी है, अच्‍छा है अखबार भी ग्‍लोबलाइज हो रहे हैं, पहला ग्‍लोबलाइजेशन जब हुआ था जब इनका साइज कतर कर पौना हो गया था, पहले दिल्‍ली के अंग्रेजी अखबार टाइम्‍स आफ इण्डिया पौना हुआ था, उसके बाद ग्‍वालियर के अखबार इण्‍टरनेशनल स्‍टैण्‍डर्ड के हो गये थे । मगर दाम बढ़ कर सवाये हो गये थे । हूं तो नई कहावत यूं बनी कि ''साइज पौना दाम सवाये'' वाह क्‍या इन्‍वेन्‍शन है । चलो अखबारों ने एक नई कहावत का इन्‍वेन्‍शन करा दिया ।

वैसे तो अखबार एक ही विज्ञापन एक ही अखबार में अलग अलग अलां फलां संस्‍करण (संस्‍करण दो पन्‍ने या एक पन्‍ने का होता है) में अलग अलग छाप कर पैसे दुगने तिगुने करते रहते हैं ।

यह भी एक इन्‍वेन्‍शन हैं, एक रहस्‍य है, देश के लोग फालतू ठोकरें खातें फिरते हैं और पैसा दुगुना तिगुना करने के चक्‍कर में मारे मारे फिरते हैं, कभी कोई बाबाजी या तांत्रिक दुगुना तिगुना का चक्‍कर चला कर चूना लगा जाता है तो कभी शेयरबाजी में घर बर्बाद हो कर लोग सड़क के खण्‍डों पर आ जाते हैं, कभी कोई फायनेन्‍स कम्‍पनी चूना लगा जाती है तो कभी कोई बीमा कम्‍पनी या बैंक की योजना में झांसा देकर फांसा जाता है ।

इन देश वासीयों को कोई अक्‍ल दे, अगर धन दूना तिगुना चौगुना सोलह या हजार गुने तक करना है तो एक अखबार निकालो, संस्‍करण बढ़ाओ, या एक ही संस्‍करण पर अलग अलग छाप लगाओ यानि अलग अलग बार मशीन पर चढ़ाओ और लिखो अलां जगह या फलां जगह से प्रकाशित । अरे मूर्ख देशवासीयों संस्‍करण निकालो, अखबार निकालो हर अलग संस्‍करण के लिये एक ही विज्ञापन कई बार मिलता या छपता है । मेरे प्‍यारे बेवकूफ देशवासीयो तुम्‍हारी जेब पर जो तमाम टैक्‍सों से जेब कतरी होती है उसका साठ फीसदी विज्ञापन पर जाता है, अपनी जेब से गये का कई गुना वापस चाहिये तो अखबार निकालो, मल्‍टी संस्‍करण हो जाओ । गरीबी हटाओ, फोर्ब्‍स पत्रिका में नाम लिखाओ ।

आम के आम गुठलियों के दाम, विज्ञापन से आय, ब्‍लैकमेलिंग से धनवृद्धि, ठांसे और झांसे से कार्य सिद्धि, परिशिष्‍ट प्रकाशन से आय वृद्धि, भ्रष्‍टों से रिश्‍तेदारी और नातेदारी जॉब में सुनहरा मौका, कहॉं खोये हो देश वासीयो, कहॉं लफड़े में फंसे हो, बैंक बीमा शेयर और बाबाओं के चक्‍कर में । अखबार निकालो संस्‍करण छापो ।

चुनाव टैम पर वारे न्‍यारे, इलैक्‍शन डेस्‍क निकालो, जो दे उसको नेता बना दो, जो न दो उसे पैदल कर दो, प्रोजेक्‍ट चला दो, विकास पुस्तिका छाप दो हर जिले पर बीस लाख मिलते हैं, अरे कहॉं सोये हो मूर्खो, जागो, उठो, सुनहरी सुबह तुम्‍हारा इन्‍तजार कर रही है, चमकता दिनकर, उगता भास्‍कर तुम्‍हें पुकार रहा है ।  कई अखबार तो केवल विज्ञापन के लिये ही छपा करते हैं, वे विज्ञापन मिलने पर ही अखबार छापा करते हैं, विज्ञापन और गरीबी हटाओ के इस अचूक रिश्‍ते को देख समझ मध्‍यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों ने अपने अपने अखबार निकालने शुरू कर दिये हैं, और कई टी.वी. चैनल चालू कर डाले हैं, सूत्र बताते हैं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह भी कई अखबारों और टी.वी. चैनलों में इस नायाब फार्मूले के लिये पार्टनर शिप हथिया लिये हैं । पहले किसी जमाने में कहते थे कि '' अगर तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो'' आज कहते हैं कि-

अगर गरीबी हो मुकाबिल तो अखबार निकालो ।

चाहिये अकूत सम्‍पत्ति तो अखबार निकालो ।।

अगर टेंशन बने कोई देशभक्‍त तो निपटाना है आसां ।

छापो फर्जी खबर, केस लपेटो, चलो अखबार निकालो ।।

अगर परेशां हो पैसा बढ़ाने की खातिर, नहीं सुनता पुलिस वाला फरियाद जो तेरी ।

अरे मूरख उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अखबार निकालो ।।

अगर नहीं है मुकाबला तेरा वश में भ्रष्‍ट अफसर और नेताओं से ।

अब चेत जा और छाप डाल, बस कर इतना एक अखबार निकालो ।।

नहीं है गर दौलत की मेहरबानी तुझ पर, नहीं बढ़ता पैसा तेरा बैक, बीमा शेयर से अगर ।

फिक्र छोड़, उठ जाग, छाप धड़ाधड़ संस्‍करण अनेक और अखबार निकालो ।।

छोड़ देशभक्ति के चोंचले, छोड़ गरीब की आवाज उठाना, मूरख भूखों मर जायेगा ।

चेत जाग धन की देवी लक्ष्‍मी पुकारती तुझे, उठो और अखबार निकालो ।।

समझ आयोजित और प्रायोजित के अर्थ, अखबार चला ले जायेगा ।

अगर है चमचागिरी और मक्‍खनमारी की कला से सम्‍पन्‍न, ढेरों विज्ञापन पा जायेगा ।।

पुलिस वाले की तरह फरियादी से भी ले, मुल्जिम से भी वसूल ।

इतनी समझ गर आ गयी तुझे तो पक्ष विपक्ष दोनो से मिलेगा धन तुझे, चलो उठो अखबार निकालो ।।

पाठक बना रहेगा, कन्‍जूमर कहलायेगा, जेब पर टैक्‍स ठुकेंगें कई, चौतरफा लुट जायेगा ।

अगर ठिकाने लगाने हैं ब्‍लैक मनी के पैसे तुझे, हजम भ्रष्‍टाचार की कमाई, उठ जाग चलो अखबार निकालो ।।

यदि है परेशान पत्रकारों से नेताओं से और फर्जी शिकायतों से ।

अरे चेत नादान, सीख मंत्र वशीकरन का अब जाग उठ और चलो अखबार निकालो ।।

नहीं सुनेगा देस में कोई बात तेरी, नक्‍कारखाने में तूती बन रह जायेगा ।

बिन नर्राये जो चाहे, कान में मोबाइली मंत्र फूंकना सारे कारज सिद्ध करना तो चलो अखबार निकालो ।।

अखबार निकाला और सिद्ध हो गये हजारों जोगी, शेष सब जोगना हो गये ।

कभी बेचते थे मूंगफली, चराते थे भैंसे, ढोते थे रिक्‍शा, हांके थे तांगे, आज पत्रकार हो गये ।।

नहीं है दो कौड़ी की कदर जो तेरी, चिन्‍ता न कर उनकी भी नहीं थी कभी ।

उन्‍हें भी जलालत झेलनी पड़ी थी कभी, मारा पुलिस ने था अफसरों ने दफ्तरों से भगाया था, पत्रकार बने तो माननीय हो गये ।।

बनेगा पत्रकार, मिटेगा अंधकार, जीवन में उजाला छा जायेगा, गुण्‍डे से माननीय हो जायेगा ।

अरे बेवकूफ फेंक बन्‍दूक आ चम्‍बल के गहरे भंवर तले, लगा मशीन छाप अखबार बिन बन्‍दूक का शाही डकैत हो जायेगा ।।

कहॉं खाक छानता है चम्‍बल के बीहड़ों में दो चार पकड़ में क्‍या कमा पायेगा ।

पौना पुलिस ले जायेगी, चौथाई के लिये मारा जायेगा, फेंक बन्‍दूक बीहड़ की गहरी खाई में चल आ बन जा माननीय, उठ जाग और चलो अखबार निकालो ।।

भटकता फिरता है चोरी भडि़याई करते, किसी दीवाल से फिसलेगा मारा जायेगा ।

केवल दस परसेण्‍ट पर चोरी में क्‍या कर पायेगा, नब्‍बे खाकी खायेगी, छोड़ ये जान का संकट उठ जाग और चलो अखबार निकालो ।।

कई चोर थे, कई पिटे भी थे कई की इज्‍जत तार तार हुयी थी कभी मगर तब जब वे पत्रकार नहीं थे ।

पत्रकार हुये और पुज गये, सारे काम सफेद हो गये, मिलतीं हैं लड़कियां भी शराब और मुर्गे भी उन्‍हें, अरे मूरख जाग उठ और अखबार निकालो ।।

कभी वे तरसते थे, छिपके हसीनाओं के निहोरे करते थे, शराब की बूंद को तरसा करते थे, बोतल खाली कबाड़ी से खरीद कर उन्‍हें उल्‍टी कर नब्‍बे बूंद टपका कर प्‍याला भरते थे जो ।

पत्रकार बने तो दिन फिर गये, अम्‍बाह जौरा और रेशमपुरा तक सरकारी गाड़ी में जायेगा, सुन्‍दरीयों के साथ दिन औ रात बितायेगा, सरकारी शराब और मुर्गे चाटेगा, फिर भी न तू अघायेगा, जाग बेवकूफ उठ चलो अखबार निकालो ।।

क्‍या कलेक्‍टर क्‍या कमिश्र्नर, मंत्री भी क्‍या औ संतरी भी क्‍या ।

अब बेवकूफ खुदी को कर बुलन्‍द इतना कि सब तुझसे पूछें बता तेरी रजा क्‍या है, बस जाग चेत उठ एक अखबार निकालो ।।

वह वक्‍त वह बातें हवा हुयीं, जब अखबार निकलते थे स्‍वतंत्रता की लड़ाई के लिये ।

अब तू छाप अखबार गरीबी हटाने के लिये, चमचागिरी करने के लिये प्रचार साधन के लिये ।।

अरे पगले, भ्रष्‍ट अफसर नेता औ बाबू कीमती ध्‍ारोहर हैं देश के लिये ।

नहीं बढ़ने देते मुद्रा स्‍फीति, नहीं करते वायदा कभी धन बढ़ाने का ।।

चलन में है भ्रष्‍टाचार, संवैधानिक दर्जा है भ्रष्‍टाचार का, इन्‍हें संरक्षण दे, फलीभूत कर, कमाऊ पूत हैं देश के ये कर्णधार ।

इनसे मिल कर चलेगा, अखबार चलेगा, वरना कागज के कोटे को तरस जायेगा, इनके साथ चल विज्ञापन बटोर उठ पागल उठ चलो अखबार निकालो ।।

गोया मामला जरा ज्‍यादा लम्‍बा होता जा रहा है, हम बस इतना कहना चाहते हैं कि प्रसिद्ध मशहूर अखबार कहीं चूक गया, तथ्‍यात्‍मक त्रुटि कर गया चाहे विज्ञापन के चक्‍कर में यह प्रायोजित समाचार प्रकाशन हुआ हो चाहे विज्ञापनार्थ मक्‍खनबाजी के चक्‍कर में चूक गंभीर व अक्षम्‍य है । सही तथ्‍य निम्‍न प्रकार हैं

चम्‍बल विकास प्राधिकरण लगभग 25 -27 साल पहले जब मोतीलाल वोरा म.प्र. के मुख्‍यमंत्री बने, उससे पूर्व जब अर्जुन सिंह म.प्र. के मुख्‍यमंत्री थे, तब तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अर्जुन सिंह ने भिण्‍ड व मुरैना के नगर सुधार न्‍यासों की स्‍थापना की , और चम्‍बल विकास प्राधिकरण का गठन किया । जिसमें स्‍थानीय समस्‍त विधायक, सांसद, जिले के मंत्रीगण, प्रभारी मंत्रीगण तथा तमाम सरकारी अफसरान इसके सदस्‍य हैं । यह वर्तमान में अस्तित्‍व में है । इसकी कुछ बैठकों में मुझे अपनी बुआ के लड़के (जो तत्‍समय भिण्‍ड के विधायक व म.प्र. शासन के मंत्री होकर मुरैना जिला के प्रभारी मंत्री भी रहे) के साथ दो चार बैठकों में शामिल होने का सौभाग्‍य नसीब हुआ । इसके अलावा चम्‍बल कम्श्र्निर का कार्यालय इसका मुख्‍यालय है, वहीं इसकी बैठके होतीं आईं हैं, चम्‍बल विकास प्राधिकरण की बैठकों की कई फाइलें मुझे पढने को नसीब हुयीं हैं ।

इस पूर्व गठित चम्‍बल विकास प्राधिकरण को कभी भंग किया गया हो यह सूचना मेरे मस्तिष्‍क में नहीं है, इस प्राधिकरण और इसकी गतिविधियों पर सरकार करोड़ों रूपये पहले ही खर्च कर चुकी है, मेरी सूचना के मुताबिक अभी भी यह अस्तित्‍व में हैं, प्रश्‍न यह है कि क्‍या एक प्राधिकरण के अस्तित्‍व में रहते उसी प्राधिकरण का गठन दोबारा किया जा सकता है । पुनर्गठन तो सम्‍भव है ले‍किन गठन सम्‍भव नहीं है, मगर खबर गठन के बारे में है । हैरत अंगेज है । अगर नहीं है तो जो करोड़ों पहले खर्च हो चके हैं उसका हिसाब किताब कहॉं गया, क्‍या गरीब की जेब में एक सूराख और बना दिया ।

मामला ठीक उन पर्यावरण क्‍लबों की तरह जिनका गठन सन् 2001 में भारत सरकार की नेशनल ग्रीन कोर (एन.जी.सी.) योजना के तहत म.प्र. शासन ने बाकायदा आदेश जारी करके किया, यह पर्यावरण लम्‍बे समय तक चले भी और पिछले साल तक मुरैना जिले में पढ़ने वाले हर स्‍कूली छात्र से 6 रू प्रति छात्र परिचय पत्र का तथा 5 रू प्रति छात्र पर्यावरण क्‍लब की सदस्‍यता शुल्‍क का वसूलते रहे, मुरैना जिला में औसतन आठ लाख छात्र प्रतिवर्ष अध्‍ययनरत रहे इस हिसाब से 11 का आठ लाख में गुणा कर दीजिये, औसतन सालाना रकम बनती है 88 लाख रूपये, आठ साल तक बाकायदा आदेश निकाल कर (आदेश की प्रतियां और सम्‍बन्धित समस्‍त आदेश व दस्‍तावेजी साक्ष्‍य हमारे पास उपलब्‍ध हैं) जबरन बच्‍चों से पैसे वसूले जाते रहे, अब 88 लाख में फिर आठ का गुणा कर दीजिये 704 लाख रूपये यानि 7 करोड़ 8 लाख रूपये होते हैं । यह एक मोटा हिसाब और आंकड़ा है, असल छात्र संख्‍या और रकम इससे कई गुना अधिक है ।

कलेक्‍टर इस वसूली कमेटी का अध्‍यक्ष था, जिला शिक्षा अधिकारी सचिव । यह पैसा कहॉं जमा होता था कहां खर्च होता था किसी को नहीं पता, कोई मद नहीं फिर भी रकम आती थी, कहां जाती थी किसी को नहीं पता, (विस्‍तृत आलेख इस आपराधिक घटनाक्रम पर पृथक से छापेंगें) जब शिकवे शिकायतें हुयीं और जिला शिक्षा अधिकारी लगभग 10 करोड़ के घोटाले में फंस गये तो, जिला शिक्षा अधिकारी के साढ़ू तत्‍कालीन स्‍कूली शिक्षा मंत्री ने पर्यावरण क्‍लबों की स्‍थापना की घोषणा कर दी और कहा कि स्‍कूलों में पर्यावरण क्‍लब गठित किये जायेंगें । अखबारों में खबर छपी, और लोग भौंचक्‍के थे कि जो पर्यावरण क्‍लब आठ साल से चल रहे हैं, अस्तित्‍व में हैं, उनका गठन कैसे किया जायेगा । आज तक लोग इस राज को समझ नहीं पाये, और दस करोड़ के मामले को धूल में डाल दिया गया (सारा मामला डाक्‍यूमेण्‍ट्री एविडेन्‍सेज, फोटोग्राफ्स, वीडियो फिल्‍मों पर सिद्ध है, ये रहस्‍य हम आगे चल कर खोलेंगे)