रविवार, 14 फ़रवरी 2010

व्‍यंग्‍य- वैलेण्‍टाइन एक स्‍टाइल........इस मुर्दे का वैलण्‍टाइन मना दो

वैलेण्‍टाइन एक स्‍टाइल........इस मुर्दे का वैलण्‍टाइन मना दो

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

वैलेण्‍टाइन की धूम में फंसे लाल बजरंग ।

डाल लाल तौलिया नारि में, डण्‍डा लीनो संग ।।

डण्‍डा लीनो संग जोड़े ढूंढ रहे पार्कन में भीतर ।

लोग लुगाई देख कर देते गीदड़ भभकी तीतर ।।

रस्‍साकस्‍सी चल रही, प्रेमपत्र दिवस पे देखो ।

बजरंगी सब टूट रहे, बिन नाथे सॉंड़ हो जैसे ।।

इक बजरंगी मिल गया नेता बनत भुजंग ।

चुपके से हम पूछ लिये, का बात हुयी है तंग ।।

क्‍या बात हुयी है तंग, क्‍यूं खलनायक बन गये ।

बीवी छोड़ के भागी या फिर बहिन को ले गये ।।

क्‍यूं विचलित हो मित्र, चित्‍त में चैन जो धरिये ।

असल क्‍या है बात भई सो अब हमसे कहिये ।।

बजरंगी शरमा गया, बोला, मुख का खोल कपाट ।

क्‍यूं घुमा फिरा कर रहे व्‍यंग्‍य मजाक सपाट ।।

नहीं यार दादा जरा, बात नहीं कुछ खास ।

इक घरवारी जो मिली, नहीं डालती घास ।।

नहीं डालती घास, न उसका रूप सुहावन ।

सो रोकन वैलण्‍टाइन कों ये फार्मूला है पावन ।।

देखें रूप अपार नव यौवना सब मिलें यहॉं पर ।

जो हम ना कर पा रहे, लेते आ आनंद यहॉं पर ।।

देख के पूरा सीन पाते सुख स्‍वर्ग इसी दिन ।

सो रोकन के वास्‍ते, लेना डण्‍डा तान इसी दिन ।।

जो घरवारी से ना मिला, हम उसे यहॉं तलाशें ।

डर जाते प्रेमी युगल और हम फिर उसे तराशें ।।

छोटा सा ये शहर है, पार्क नहीं ना गार्डन भरपूर ।

इक दिन आता साल में सो आते इतनी दूर ।।

ना ताल कटोरा यहॉं कोई, ना बुद्धा सा मेल ।

बस इक दिन के वास्‍ते देखत आकर खेल ।।

देखत आकर खेल, घर जा किस्‍सा कहते ।

पर बेअसर वो बेखबर उस पे रंग न चढ़ते ।।

जो हम डण्‍डा लाते यहॉं, रोकन वैलण्‍टाइन दिवस ।

धमकाने हड़काने चलें साथ लिये हम ये दिवस ।।

नहीं काम आता यहॉं, पर घर रोज दिखलाता जलवा ।

ससुरी वैलेण्‍टाइन मना दे और खिला दे हलवा ।।

पर वे चौथ पंचमी रटती व्रत बतला कर रोज ।

तब फिर हम पर गुस्‍सा छाता, डण्‍डा बरसाते रोज ।।

इतने में थे आ गये पुलिससिया खाकी वर्दी ।

बजरंगी कूटे सभी, दूर करा दी सर्दी ।।

दूर करा दी सर्दी, जम कर लात लगाईं ।

अस्‍पताल भर्ती किये, हिदायत साथ बताई ।।

खबरदार जो नजर आये किसी पार्क के पास ।

थानेदार सा मना रहे न्‍यू वैलंटाइन खास ।।

अस्‍पताल में पड़े बजरंगी यूं कराहें ।

पूरे अस्‍पताल में गूंज रहीं उनकी ये आहें ।।  

इक बजरंगी के सीने पर डाक्‍टर ने आला आन धरा ।

बजरंगी ने बगल खड़ी इक नर्स पे अपना ध्‍यान धरा ।।

देख नर्स की चंचलता, बजरंगी की सांसे रूक गयीं ।

डाक्‍टर बोला इस मरीज की क्‍यूं हलचल रूक गयीं ।।

सीने में धड़कन नहीं, ना नैनों में चंचलता ।

क्‍यूं इस मुर्दे को पुलिस, लायी यहॉं पे नर्स बता ।।

जाओ इसको मुर्दाघर ले जा ठिकाने पर पहुँचाओ ।

मरा दिमाग और मरा शरीर इन्‍हें यहॉं पे मत लाओ ।।  

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